Same Gotra Marriage : एक ही गोत्र में शादी करने से क्यों बचना चाहिए ? कारण जानकर बदल जाएगी सोच

Edited By Updated: 24 Dec, 2025 01:20 PM

same gotra marriage

Same Gotra Marriage : भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और परंपराओं का संगम माना जाता है। हिंदू धर्म में विवाह से जुड़ी कई वर्जनाएं और नियम हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है सगोत्र विवाह निषेध यानी एक ही गोत्र...

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

Same Gotra Marriage : भारतीय समाज में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं, बल्कि दो परिवारों और परंपराओं का संगम माना जाता है। हिंदू धर्म में विवाह से जुड़ी कई वर्जनाएं और नियम हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है सगोत्र विवाह निषेध यानी एक ही गोत्र में विवाह न करना। अक्सर युवा पीढ़ी के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर एक ही गोत्र में शादी क्यों नहीं करनी चाहिए ? क्या यह केवल एक रूढ़िवादी परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरा तर्क है ? आइए, इसके पीछे के धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक कारणों को विस्तार से समझते हैं।

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गोत्र क्या है और इसका महत्व क्या है ?
गोत्र शब्द का अर्थ होता है वंश या कुल। प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के नाम पर गोत्र का निर्धारण किया गया था। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, हम सभी किसी न किसी ऋषि की संतान हैं। मुख्य रूप से सात ऋषियों को गोत्र का प्रवर्तक माना गया है: कश्यप, अत्रि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज।

सगोत्र होने का अर्थ है कि उस स्त्री और पुरुष के पूर्वज एक ही ऋषि थे। इस प्रकार, एक ही गोत्र के लोग आपस में भाई-बहन माने जाते हैं, भले ही उनके बीच कोई सीधा पारिवारिक संबंध न दिख रहा हो।

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सगोत्र विवाह न करने के धार्मिक कारण

भाई-बहन का रिश्ता
धर्मशास्त्रों के अनुसार, एक ही गोत्र में जन्म लेने वाले स्त्री और पुरुष सपिंड या सगोत्री होने के कारण भाई-बहन माने जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि भाई-बहन के बीच विवाह करना अधर्म है और यह प्रकृति के नियमों के विरुद्ध है।

पितरों की शुद्धि
माना जाता है कि विवाह का मुख्य उद्देश्य वंश को आगे बढ़ाना और पितरों का तर्पण करना है। यदि विवाह सगोत्र होता है, तो रक्त की शुद्धता समाप्त हो जाती है, जिससे पितृ दोष लगने की आशंका रहती है। मनुस्मृति के अनुसार, जिस कुल में सगोत्र विवाह होता है, वह कुल धीरे-धीरे पतन की ओर अग्रसर होने लगता है।

आध्यात्मिक ऊर्जा का ह्रास
हिंदू धर्म में माना जाता है कि प्रत्येक गोत्र की अपनी एक विशिष्ट आध्यात्मिक ऊर्जा और कुल देवता होते हैं। एक ही ऊर्जा के मेल से नई ऊर्जा का सृजन नहीं हो पाता, जिससे आने वाली पीढ़ियों के तेज और ओज में कमी आती है।

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