भागवत पुराण में किए वर्णन से जानें कौन हैं श्राद्धदेव?

Edited By Updated: 25 Sep, 2021 07:23 PM

shradh devta mandir

प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध पिंडदान आदि जैसे कार्यों को अंजाम दिया जाता है। कहा जाता है कि यह एकमात्र ऐसा सटीक समय माना जाता है जब व्यक्ति अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकता है।

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प्रत्येक वर्ष पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध पिंडदान आदि जैसे कार्यों को अंजाम दिया जाता है। कहा जाता है कि यह एकमात्र ऐसा सटीक समय माना जाता है जब व्यक्ति अपने पूर्वजों को प्रसन्न कर सकता है। अतः इसी के चलते लोग पितृपक्ष के दौरान ना केवल पिंडदान वरसाद आधी करते हैं बल्कि साथ ही साथ श्राद्ध देवता की उपासना भी करते हैं। परंतु आज भी ऐसे कई लोग हैं जिन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है कि आखिर सा देवता कौन हैं? धार्मिक ग्रंथों में इनसे जुड़े रहस्य वर्णन क्या हैं? देश में इन से जुड़े मंदिर व धार्मिक स्थल हैं, अगर है तो कहां हैं? यदि आपको भी इन तमाम बातों के बारे में नहीं पता है तो चलिए जानते हैं कि श्राद्ध देवता की आना क्यों की जाती है तथा कई बातें-

सबसे पहले आपको बता दें कि श्राद्ध देवता किसी और को नहीं बल्कि यमराज देवता को माना गया है। बताया जाता है कि श्राद्ध देवता एक मंदिर कुरुक्षेत्र के समीप पिहोवा में स्थित है जिसे पृथुदक तीर्थ के नाम से जाना जाता है। इस धार्मिक मान्यताओं से जुड़ी मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल के दौरान पांडवों ने इसी स्थान पर अपने कुछ सगे संबंधियों का श्राद्ध था पिंड दान आदि किया था। तो वहीं यह भी बताया जाता है कि इसी स्थान पर सरस्वती तट पर एक मंदिर है जिसमें श्राद्ध देवता अर्थात यमराज जी की भव्य मूर्ति स्थापित है। श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध में महात्मा विदुर की जाने वाली तीर्थ यात्रा में इस बात का वर्णन मिलता है।

धार्मिक व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गया में सबसे पहले इन्हीं की ही पूजा की जाती है। यहां पर यानी पिहोवा तीर्थ में पिंडदान और श्राद्ध का अधिक महत्व है। कहा जाता है कि अगर कोई पिहोवा में पिंडदान और श्राद्ध न करें और सीधे गया चला जाए तो वहां भी उसे पहले पृथुदक की पूजा-अर्चना संपन्न करनी पड़ती है। इसके बाद ही उसके द्वारा किया गया श्राद्ध और पिंडदान व स्वीकृत होता है।

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