Ram mandir: भगवान श्री राम को क्यों कहा जाता है मर्यादा पुरुषोत्तम

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 07 Aug, 2020 07:43 AM

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम आदर्श एवं सदाचार  के प्रतीक हैं। उनका स्वरूप ही कुछ ऐसा है कि ‘चित्र लिखे जनु जहं-तहं ढाडे, पुलक शरीर नयन जल बाढे।’

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मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम आदर्श एवं सदाचार  के प्रतीक हैं। उनका स्वरूप ही कुछ ऐसा है कि ‘चित्र लिखे जनु जहं-तहं ढाडे, पुलक शरीर नयन जल बाढे।’

खर-दूषण भी उन्हें देख कर कह उठे ‘देखी नहीं असि सुंदरताई’।

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भक्त वत्सल भगवान राम अपने भक्तों के दुखों का निदान करने वाले हैं। वह मन, वचन और कर्म से लोकधर्म और वेद मर्यादा का पालन करने वाले हैं। अपने प्रिय भक्तों को सुख देने के लिए उन्होंने मानव वेश धारण किया। वह ज्ञान गुण, शील, सौंदर्य एवं शक्ति के प्रतीक हैं। उनका सौंदर्य अनुपम है। वह जिस राह से भी गुजरते हैं लोग उन्हें देखते रह जाते हैं। भगवान श्री राम का पूरा जीवन आदर्शों एवं संघर्षों से युक्त है। उसे यदि सामान्य जन अपना ले तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए।

श्री राम को भगवान विष्णु का अवतार माना गया है जो पृथ्वी पर अजेय रावण (मनुष्य रूप में असुर राजा) से युद्ध लड़ने के लिए आए। राम राज्य शांति और समृद्धि का पर्यायवाची बन गया है। भगवान विष्णु ने राम रूप में असुरों का संहार करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया और जीवन में मर्यादा का पालन करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाए।

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अयोध्या के राजकुमार होते हुए भी भगवान राम ने अपने पिता के वचन पूरे करने को सम्पूर्ण वैभव त्याग कर 14 वर्ष के लिए वनगमन किया। भगवान श्री राम ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बतलाया। इससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके।

भगवान राम चंद्रमा के समान अति सुंदर, समुद्र के समान गंभीर, पृथ्वी के समान अत्यंत धैर्यवान थे और इतने शील सम्पन्न थे कि दुखों के आवेग के बावजूद कभी किसी को कटु वचन नहीं बोले।

अपने माता-पिता, गुरुजनों, भाइयों, सेवकों, प्रजाजनों अर्थात हर किसी के प्रति अपने स्नेहपूर्ण दायित्वों का निर्वाह किया करते थे। साक्षात परमेश्वर स्वरूप होते हुए भी बाल्यकाल से ही श्री राम ने जीवों को सत्यपथ पर चलने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से लीलाएं कीं।

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गुरु वशिष्ठ के प्रियतम शिष्य श्री राम ने ऋषि विश्वामित्र के यज्ञ की राक्षसों के विध्वंस से रक्षा करके उनकी कृपा, अनेक आशीर्वाद एवं मौलिक शस्त्रों की प्राप्ति की और रावण से मुक्ति दिला कर धर्मनिष्ठत विभीषण को लंकेश बनाया।

राम आदर्श प्रजापालक हैं। वह अपने शत्रु से जीता हुआ राज्य भी उसी को लौटा देते हैं। अन्य विजेताओं ने केवल अपने स्वार्थों के लिए युद्ध किए, परंतु भगवान राम ने लोक कल्याण के लिए युद्ध किए।

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भगवान राम और राम राज्य का उद्भव 10 हजार वर्ष पहले हुआ था। विश्व में यह अनुपम उदाहरण है कि हम इतने वर्षों के बाद भी ऐसे राजा को नीतियों और आदर्शों के लिए याद कर रहे हैं जिसके राज्य में शांति, सुख एवं समृद्धि के अलावा हर छोटे बड़े नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त थे। किसी देश में ऐसा सम्राट आज तक नहीं हुआ जिसका अनुसरण इतने वर्षों बाद भी किया जा सके। उस काल के वातावरण की कल्पना आज के आधुनिक युग में भी की जाए।

भगवान राम अयोध्या के राज सिंहासन पर बैठे तो प्रजा के भाग्य का क्या कहना। महाराज श्री राम की प्रतिज्ञा थी कि अपनी प्रजा की भलाई के लिए मैं अपने समस्त सुखों को, यहां तक कि सीता को भी प्रसन्नतापूर्वक त्याग सकता हूं।

प्रजाजन कहा करते थे कि श्री राम जहां के राजा न होंगे, वह राज्य राज्य नहीं रह जाएगा, जंगल हो जाएगा तथा श्री राम जहां निवास करेंगे, वह वन एक स्वतंत्र राष्ट्र बन जाएगा। श्री रामायण का पठन-श्रवण श्री राम के साक्षात दर्शन हैं, इसमें तनिक संदेह नहीं।

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