Edited By Niyati Bhandari,Updated: 01 Nov, 2025 07:08 AM

Shubh Muhurat: 4 महीने शयन करने के बाद 1 नवम्बर को देवउठनी एकादशी के दिन देवता जाग जाएंगे और इसके साथ ही मांगलिक कार्यों का श्री गणेश हो जाएगा। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से लगन...
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Shubh Muhurat: 4 महीने शयन करने के बाद 1 नवम्बर को देवउठनी एकादशी के दिन देवता जाग जाएंगे और इसके साथ ही मांगलिक कार्यों का श्री गणेश हो जाएगा। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह एकादशी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी दिन से लगन शुरू हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार देवशयनी एकादशी के साथ शुरू हुए इन 4 महीनों को चातुर्मास कहा जाता है। इस दौरान किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित बताए गए हैं।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवउठनी एकादशी पर भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं और विष्णु तथा तुलसी का विवाह होता है इसलिए यह दिन सनातन धर्म के शुभ दिनों में से एक माना जाता है। तुलसी विवाह एकादशी के दिन से विवाह, यज्ञोपवीत व मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश जैसे शुभ और मांगलिक कार्यों की शुरुआत हो जाती है।
कहा जाता है कि शुभ संयोग में अपने घर में शालिग्राम-तुलसी विवाह रचाने वाले व्यक्ति को अपार धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होगी। मान्यता है कि इस एकादशी पर लोग अपने घरों में तुलसी और शालिग्राम का विवाह रचाते हैं। विधि-विधान सहित तुलसी विवाह सम्पन्न करने वाले परिवार के सदस्यों का भाग्य सुधरता है और श्रीवृद्धि होती है।

शिव महापुराण में न केवल देवउठनी एकादशी के बारे में बताया गया है, बल्कि इस दिन तुलसी विवाह क्यों किया जाता है, इसका भी विस्तार से वर्णन है। शिव महापुराण के अनुसार एक समय में दैत्यों का राजा दंभ हुआ करता था। वह बहुत बड़ा विष्णु भक्त था। कई सालों तक उसके यहां संतान नहीं होने के कारण उसने शुक्राचार्य को अपना गुरु बनाकर उनसे श्रीकृष्ण मंत्र प्राप्त किया। यह मंत्र प्राप्त करके उसने पुष्कर सरोवर में घोर तपस्या की। भगवान विष्णु उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे संतान प्राप्ति का वरदान दे दिया।
एक अन्य कथा के अनुसार शंखासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों में बहुत उत्पात मचाया हुआ था। सभी देवताओं के आग्रह करने पर भगवान विष्णु ने उस राक्षस से युद्ध किया और यह युद्ध कई वर्षों तक चला। युद्ध में वह असुर मारा गया और इसके बाद भगवान विष्णु विश्राम करने चले गए। कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान विष्णु की निद्रा टूटी थी और सभी देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की थी।
