Edited By Niyati Bhandari,Updated: 12 Aug, 2025 06:37 AM

Bahula Chaturthi Vrat Katha: बहुला चतुर्थी का आध्यात्मिक और भावनात्मक महत्व है। यह पर्व मातृत्व की निस्वार्थ शक्ति को सम्मान देता है। बहुला चतुर्थी यह सिखाता है कि कर्तव्य, प्रेम और निष्ठा यदि सच्चे हों तो ईश्वर भी विनम्र हो जाते हैं। गाय को धरती की...
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Bahula Chaturthi Vrat Katha: बहुला चतुर्थी का आध्यात्मिक और भावनात्मक महत्व है। यह पर्व मातृत्व की निस्वार्थ शक्ति को सम्मान देता है। बहुला चतुर्थी यह सिखाता है कि कर्तव्य, प्रेम और निष्ठा यदि सच्चे हों तो ईश्वर भी विनम्र हो जाते हैं। गाय को धरती की मां माना गया है और इस दिन की पूजा से हमारी प्रकृति से एकत्व की भावना मजबूत होती है। बहुला चतुर्थी का दिन गाय और उसके बछड़े की रक्षा, मातृत्व की गरिमा और त्याग की भावना को समर्पित होता है। व्रती (अधिकतर स्त्रियां, विशेषकर ग्रामीण महिलाएं) इस दिन उपवास रखती हैं, गाय की पूजा करती हैं और बहुला देवी की कथा सुनती हैं।
Story of Bahula Chaturthi Vrat बहुला चतुर्थी व्रत कथा
बहुला एक गऊ माता थी। एक दिन वह चरते-चरते जंगल में दूर निकल गई, जहां भगवान शिव एक तपस्वी ब्राह्मण के वेश में उसकी परीक्षा लेने आए। उन्होंने बहुला को रोक लिया और कहा, "मुझे भूख लगी है, मैं तुम्हें खाऊंगा।"
बहुला विनम्र होकर बोली, “हे प्रभु, मुझे अपने बछड़े को एक बार दूध पिलाने दो, फिर मैं लौट आऊंगी, आप मुझे खा लेना।”
शिव उसकी सच्चाई और मातृत्व भावना से अत्यंत प्रभावित हुए और प्रकट होकर उसे वरदान दिया, “तू बहुला देवी के रूप में पूजी जाएगी और जो भी तुझ पर विश्वास से व्रत रखेगा, उसके घर में कभी गाय की कमी नहीं होगी।”

Story of Bahula Chauth बहुला चौथ की कथा
किवंदतियों के अनुसार श्री कृष्ण की गौशाला में एक बहुला नामक कामधेनु गाय थी। ये गाय श्री कृष्ण को बहुत प्रिय थी। एक बार उन्होंने बहुला की परीक्षा लेने के बारे में सोचा। बहुला वन में घास चरने गई। तभी श्री कृष्ण शेर का रूप बदलकर कामधेनु गाय के पास गए और उसके ऊपर हमला बोल दिया। शेर को देखकर गाय बहुत परेशान हो गई। अपनी जान बचाने के लिए वो शेर से प्रार्थना करने लगी लेकिन उस शेर ने बहुला की एक न सुनी।
फिर बहुला ने कहा कि मेरा बछड़ा भूखा होगा, उसको दूध पिला कर कल में फिर आपके पास वापिस आ जाऊंगी, तब आप मेरा शिकार कर लेना। अपने बच्चे के प्रति प्रेम देखकर शेर के मन में दया आ गई और उसे जाने की आज्ञा दे दी। अगले दिन अपने वादे को पूरा करते हुए बहुला शेर के पास वापिस आ गई। शेर के रूप में श्री कृष्ण उसकी वचन बद्धता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए और कहा कि कलियुग में तुम्हारी भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को पूजा होगी। इस पूजा को करने के बाद महिलाओं को संतान सुख की प्राप्ति होगी। इसी वजह से आज के दिन बहुत से ग्वाले अपनी गाय का दूध नहीं निकालते और उसे बछड़े के लिए छोड़ देते हैं।
