Story of Shani and Lakshmi: शनि कृपा के बिना लक्ष्मी नहीं हो सकती प्रसन्न, पढ़ें पौराणिक कथा

Edited By Updated: 13 Sep, 2025 07:38 AM

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Story of Shani and Lakshmi: शनि को क्रूर ग्रह कहते हैं लेकिन यह बात सच नहीं है। शनि न्यायप्रिय हैं। वे गलत कार्य करने वालों को दंडित करते हैं और अच्छे कार्य करने वालों को पुरस्कृत। हां, उन्हें इतनी शक्ति प्राप्त है कि मानव तो क्या, देवता भी उनसे...

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Story of Shani and Lakshmi: शनि को क्रूर ग्रह कहते हैं लेकिन यह बात सच नहीं है। शनि न्यायप्रिय हैं। वे गलत कार्य करने वालों को दंडित करते हैं और अच्छे कार्य करने वालों को पुरस्कृत। हां, उन्हें इतनी शक्ति प्राप्त है कि मानव तो क्या, देवता भी उनसे डरें। ज्योतिषशास्त्र के खगोल खंड के अनुसार शनि नवग्रहों में से एक हैं व इनके चारों तरफ एक रिंग नुमा आकृति है। शनि धीमे चलते हैं अतः इन्हें शनैश्चर भी कहा जाता है। ज्योतिष में शनि के प्रभाव का साफ संकेत मिलता है।

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शनिदेव किसी भी व्यक्ति को उसके कर्मों के अनुसार फल देते हैं, जबकि माता लक्ष्मी को धन और वैभव की देवी कहा जाता है। इस संपूर्ण ब्रह्मांड में मात्र कर्म ही प्रधान हैं और सारे जग का मूल भी कर्म ही हैं। संसार के सभी जीव-जंतु, पेड़- पौधे, कीट-पतंगे सूक्ष्मजीव भी कर्म का फल भोगने के लिए विवश हैं। पूर्वजन्मों के कर्मों के अनुरूप ही व्यक्ति दरिद्र अथवा धनवान बनता है। जो लोग परोपकारी, सुकर्मी, तपस्वी, सदाचारी, दानी, दूसरों की भलाई करने वाले होते हैं वे ही पूर्व जन्मों के कर्मों को काटकर अपने अगले जन्म में ऐश्वर्यवान और संतानवान बनते हैं।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मां लक्ष्मी ने शनिदेव से पूछा, शनिदेव मैं लोगों की गरीबी दूर करके उन्हें धनवान बनाने के साथ-साथ सुख-समृद्धि प्रदान करती हूं पर आप लोगों से धन छीन कर फिर उन्हें उसी स्थिति में कर देते हैंं। इसके पीछे क्या कारण है तब शनिदेव ने माता का प्रश्न सुनकर कहा कि मां इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं क्योंकि लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती हैं और जो लोग स्वयं खुश रहकर दूसरों को दुख पहुंचाते है और क्रूर व बुरे कर्म करते हैं उन्हें दंड देने के लिए परमात्मा ने मुझे ही ये काम सौंपा है। इसलिए वे जैसा कर्म करते है मैं उन्हें वैसा ही फल देता हूं।

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दुष्टों के साथ वैसा ही व्यवहार किया जाता है जैसा वो दूसरों के साथ करते हैं। लक्ष्मी जी ने शनिदेव की बात पर विश्वास न करते हुए कहा अभी मैं एक निर्धन व्यक्ति को अपने प्रताप से धनवान व पुत्रवान बना देती हूं और माता के वरदान से एक निर्धन व्यक्ति धनवान बन गया। तब लक्ष्मी जी बोली, अब आप अपना कार्य करें जैसे ही उस धनवान व्यक्ति पर शनिदेव की दृष्टि पड़ी वो धनवान व्यक्ति पहले जैसा निर्धन बन गया और भीख मांगने को मजबूर हो गया, फिर लक्ष्मी जी ने शनिदेव से इसका कारण पूछा। 

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शनिदेव ने बताया कि ये व्यक्ति इतना अत्याचारी, पापी व निर्लज्ज था कि इसने पहले गांव के गांव तबाह कर डाले थे और जगह-जगह पर आग लगाई थी। पापी मनुष्य के जीवन में सुख-समृद्धि के लिए कोई जगह नहीं है और आपके वरदान से ये व्यक्ति धनवान, पुत्रवान तो बन गया पर इसके कर्म ऐसे थे कि इसको फिर से गरीबी की स्थिति में रहना पड़ेगा क्योंकि जीवन में कर्म ही प्रधान है और हमें अपने कर्मों के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। मां इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं ये उसके पूर्व जन्म के कर्मों का फल है।

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शनिदेव जी बोले मां जो लोग किसी का बुरा नहीं सोचते और जो सदा दूसरों की भलाई करते हैं और भगवान के भक्त होते हैं, वे ही अगले जन्म में ऐश्वर्यवान होते हैं। उनके शुभ कर्मों के अनुसार ही मैं उनके धन-धान्य में वृद्धि करता हूं। मां कई लोग बढ़िया जीवन जीने के लिए अपने जीवन में कुछ ऐसे कर्म कर बैठते हैं जो उन्हें नहीं करने चाहिए, जिससे उन्हें जीवन में आगे चलकर दुख ही प्राप्त हो। 

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अपना जीवन यापन करने के लिए मनुष्य को कम खाकर ही गुजारा कर लेना चाहिए लेकिन बुरे कर्म करने से पहले हर मनुष्य को यह सोच लेना चाहिए इसका परिणाम भी उसे खुद ही भोगना पड़ेगा। शनिदेव के वचन सुनकर माता लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और कहने लगी शनिदेव आप धन्य हैं जो प्रभु ने आपको इतनी बढ़ी जिम्मेदारी सौंपी हैं और ऐसा कहते हुए लक्ष्मी जी अंतर्ध्यान हो गई।

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