Edited By Niyati Bhandari,Updated: 14 Jun, 2021 02:11 PM
एक संत ने बचपन में ही घर-बार छोड़कर संन्यास ले लिया था। उन्होंने घोर तपस्या की, गृहस्थ जीवन को भी वह जीवन का बंधन मानते थे और अपना अधिक से अधिक समय भगवान की उपासना
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Yamraj Story: एक संत ने बचपन में ही घर-बार छोड़कर संन्यास ले लिया था। उन्होंने घोर तपस्या की, गृहस्थ जीवन को भी वह जीवन का बंधन मानते थे और अपना अधिक से अधिक समय भगवान की उपासना में व्यतीत करते और भिक्षाटन से भोजन करते थे। एक दिन उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया। उन्हें लेकर यमदूत, चित्रगुप्त के पास गए। चित्रगुप्त जी को देख कर उन्होंने कहा, ‘‘मैंने मोह, माया, अहंकार आदि तमाम बुराइयों को तिलांजलि देकर शुद्ध मन से भगवान की आराधना की है। प्रभु की उपासना के सिवा मैंने अपनी जिंदगी में कुछ नहीं किया ताकि मुझे दोबारा जन्म न लेना पड़े। कृपया मुझे मोक्ष प्रदान करें।’’
चित्रगुप्त जी ने कहा, ‘‘यह सही है कि आपने मोह, माया त्याग कर सच्चे मन से प्रभु की आराधना की है। किसी को दुख नहीं पहुंचाया, फिर भी आपको मोक्ष नहीं मिल सकता।’’
यह बात सुनकर संत ने पूछा ऐसा क्यों तो चित्रगुप्त ने कहा कि इसका जवाब तो धर्मराज ही दे सकते हैं। यमदेव उन्हें लेकर धर्मराज के पास पहुंचे। धर्मराज ने भी उनका बही-खाता देख कर कहा, ‘‘वत्स, चित्रगुप्त का निर्णय सही है, आपको मोक्ष नहीं मिल सकता।’’
संत ने कहा कि यह उनके साथ अन्याय है।
धर्मराज ने कहा, ‘‘वत्स, यहां किसी के साथ अन्याय नहीं होता। सभी को उचित न्याय मिलता है। आप यही जानना चाहते हैं न कि आपको मोक्ष क्यों नहीं मिल रहा है?’’
संत बोले, ‘‘हां, मैं जानना चाहता हूं कि मुझमें क्या कमी रह गई थी कि मैं मोक्ष से वंचित हो रहा हूं?’’
यमराज बोले, ‘‘वत्स, पृथ्वी पर जितने प्राणी जन्म लेते हैं, उनका कुछ न कुछ समाज के प्रति उत्तरदायित्व होता है। मनुष्य योनि में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति का सबसे बड़ा धर्म है, सबसे पहले मानवता की सेवा करे। अपने परोपकार से दूसरों का दुख दूर करे। आपने तो इसमें से एक भी कर्म नहीं निभाया। आपका ध्यान तो सिर्फ अपने मोक्ष पर था इसलिए अपना कर्म पूरा करने के लिए मैं आपको पुन: पृथ्वी पर भेज रहा हूं।’’