भगवान कृष्ण के दर्शन के लिए भोलेनाथ बने साधु, मांगी यशोदा मां से भिक्षा

Edited By Updated: 05 Nov, 2017 03:05 PM

to met shri krishan lord shiva become a prior

लीला पुरुष श्रीकृष्ण जब भी कोई लीला रचते हैं, उसके पीछे कोई आदर्श विद्यमान रहता है। भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु इसलिए जब-जब नारायण ने अवतार लिया तब-तब भगवान शंकर उनके बालरूप के दर्शन के लिए पृथ्वी पर पधारे।

लीला पुरुष श्रीकृष्ण जब भी कोई लीला रचते हैं, उसके पीछे कोई आदर्श विद्यमान रहता है। भगवान शिव के इष्ट हैं विष्णु इसलिए जब-जब नारायण ने अवतार लिया तब-तब भगवान शंकर उनके बालरूप के दर्शन के लिए पृथ्वी पर पधारे। श्रीरामावतार के समय भगवान शंकर श्रीकाकभुशुण्डि के साथ वृद्ध ज्योतिषी के रूप में अयोध्या पधारे। इसी तरह जब जब शंकर भगवान को यह ज्ञात पड़ा कि गोकल में नन्द जी के यहां साक्षात् नारायण ने जन्म लिया है, तो वे भी उनके दर्शनों की लालसा से कैलाश से गोकुल की ओर दौड पड़े। श्री कृष्णावतार की एक झलक पाने के लिए बाबा भोलेनाथ साधु-वेष में गोकुल पहुंचे। जानिए, कैसे शिव शंकर ने यशोदा से मांगी कान्हा के दर्शनों की भीख-

 

शिवजी ने जोगी का रूप सजाया और उनके अपने गण श्रृंगी व भृंगी को अपने शिष्य बना कर गोकुल के लिए निकल गए। ‘श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारे। हे नाथ नारायण वासुदेवाय’ कीर्तन करते हुए वे नंदगांव में माता यशोदा के द्वार पर आकर खड़े हो गए। ‘अलख निरंजन’ शिवजी ने आवाज लगाई। आज परमात्मा कृष्ण रूप में प्रत्यक्ष प्रकट हुए हैं। शिव जी इन साकार ब्रह्म के दर्शन के लिए आए हैं। यशोदा माता को पता चला कि कोई साधु द्वार पर भिक्षा लेने के लिए खड़े हैं। उन्होंने दासी को साधु को फल देने की आज्ञा दी। दासी ने हाथ जोड़कर साधु को भिक्षा लेने व बालकृष्ण को आशीर्वाद देने को कहा।

 

शिवजी ने दासी से कहा कि, ‘मेरे गुरू ने मुझसे कहा है कि गोकुल में यशोदा जी के घर परमात्मा प्रकट हुए हैं इसलिए मैं उनके दर्शन के लिए आया हूं। मुझे लल्ला के दर्शन करने हैं।’ दासी ने भीतर जाकर यशोदा माता को सब बात बताई। यशोदा जी को आश्चर्य हुआ। उन्होंने बाहर झांककर देखा कि एक साधु खड़े हैं। उन्होंने बाघांबर पहना है, गले में सर्प हैं, भव्य जटा हैं, हाथ में त्रिशूल है। 

 

यशोदा माता ने साधु को बारम्बार प्रणाम करते हुए कहा कि, ‘महाराज आप महान पुरुष लगते हैं। क्या भिक्षा कम लग रही है? आप मांगिए, मैं आपको वही दूंगी पर मैं लल्ला को बाहर नहीं लाऊंगी। अनेक मनौतियां मानी हैं तब वृद्धावस्था में यह पुत्र हुआ है। यह मुझे प्राणों से भी प्रिय है। आपके गले में सर्प है। लल्ला अति कोमल है, वह उसे देखकर डर जाएगा।’

 

तब शंकर भगवान बोले, " हे मैया! मैं कुछ और भिक्षा लेकर क्या करुंगा। मुझे तो लल्ला के दर्शन की भिक्षा चाहिए, केवल एक बार मुझे उनकी मुख-माधुरी का दर्शन करा दें, फिर मैं चला जाऊंगा।'

 

मैया डरते-डरते अंदर गईं और लल्ला को गोद में पकड़ कर ले आईं। भगवान शंकर यह छवि देखकर आंनदित हो नाचने लगे।

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