Vrindavan: आज भी वृंदावन से जुड़े हैं गहरे राज, जिनसे जनमानस है अनजान

Edited By Updated: 16 Sep, 2025 09:36 AM

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Vrindavan: चैतन्य महाप्रभु प्रणीत गौड़िय संप्रदाय के वरिष्ठतम गोस्वामियों रूप-सनातन ने महाप्रभु के आशीर्वाद एवं उनकी आज्ञा से ब्रज क्षेत्र के लुप्त हो चुके स्थलों की खोज प्रारंभ की तथा अपनी अध्यात्मिक शक्ति के बल पर उन्होंने मथुरा से 7 मील दूर यमुना...

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Vrindavan: चैतन्य महाप्रभु प्रणीत गौड़िय संप्रदाय के वरिष्ठतम गोस्वामियों रूप-सनातन ने महाप्रभु के आशीर्वाद एवं उनकी आज्ञा से ब्रज क्षेत्र के लुप्त हो चुके स्थलों की खोज प्रारंभ की तथा अपनी अध्यात्मिक शक्ति के बल पर उन्होंने मथुरा से 7 मील दूर यमुना किनारे के एक वनप्रदेश को पौराणिक वृंदावन घोषित किया तथा वहां धीरे-धीरे अनेक देवालयों की स्थापना होने लगी। जब महाप्रभु ब्रजभूमि पर आए तो उन्होंने बरसाना एवं गोवर्धन के मध्य एक खेत में रहे पानी के खड्ड को प्राचीन पावन राधाकुंड घोषित किया।

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यहां यदि सनातन रूप आदि षड् गोस्वामियों द्वारा उत्खनित वृंदावन की बात करें तो निश्चित रूप से यह स्थल प्राचीन काल में भी ब्रज के पुण्य वनों में से एक था और चूंकि वहां भूगर्भ से अनेक विग्रह भी प्राप्त हुए तो यह माना गया कि ईसा पश्चात के समय में यहां एक बड़ा धार्मिक नगर बसा हुआ था। संतों ने इसे श्रीकृष्ण की लीलाओं से जोड़ कर रखा तथा इसी क्रम में अनेक लीला स्थलों का प्राकट्य भी किया।

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अब यदि थोड़ा विवेकशील होकर मनन करें तो यह एक प्रश्न है कि जब कंस के अत्याचारों से पीड़ित होकर नंद बाबा गांव परिवार सहित मथुरा से चार मील दूरी पर बसे गोकुल को छोड़कर तीस मील दूर नंदगांव की पहाड़ी पर जाकर बस जाते हैं, तो कैसे वे बालकृष्ण को अपने संग साथियों सहित मथुरा के ही निकट के वृंदावन में गाय चराने जाने देंगे?

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यहां हम गर्ग संहिता में गर्ग मुनि द्वारा लिखे गए एक श्लोक पर ध्यान केंद्रित करते हैं। गर्ग मुनि ने वृंदावन का महत्व और भौगोलिक स्थिति बतलाते हुए लिखा है -
‘अहो रम्य वृंदावनम् अत्र गोवर्धन गिरी’।
यानी -
उस सुरम्य वृंदावन के पास गोवर्धन पर्वत है।

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अब गोवर्धन से अभी के वृंदावन की दूरी लगभग 30 कि.मी. है। नंदगांव से वृंदावन लगभग 45 कि.मी. है। बरसाना से वृंदावन भी लगभग 40 कि.मी. है। नंदगांव से गोवर्धन लगभग 28 कि.मी. है। बरसाना से गोवर्धन की दूरी लगभग 19 कि.मी. है, तो हर हालत में बरसाना और नंदगांव के लोगों के लिए गोवर्धन अति निकट है और वृंदावन अति दूर।

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श्रीमद्भागवत के अनुसार श्रीकृष्ण गोप-गोपिकाओं के रास की पृष्ठभूमि वृंदावन, यमुना और गोवर्धन गिरी हैं। अब आज के वृंदावन में यमुना तो है, किंतु गोवर्धन पर्वत नहीं।

यहीं हम थोड़ा भ्रमित होते हैं और फिर यदि ब्रज चौरासी परिक्रमा के रास्ते के कुछ स्थलों पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि गोवर्धन से 2 कि.मी. दूरी पर एक गांव आता है सौंख रोड़ पर, जिसका नाम है परासौली।

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कुछ जोर भाषा विज्ञान पर देंगे तो इसका शुद्ध उच्चारण निकालकर आता है ‘परमरास स्थली’। यही वह स्थल है जहां श्री कृष्ण ने शरद पूर्णिमा पर महारास रचाया था।  महाकवि सूरदास ने यहीं पर रहकर अपनी अधिकांश पद रचनाएं की थीं। यहीं पौराणिक चंद्र सरोवर अभी भी विद्यमान है जिसका जल चन्द्रमा द्वारा अपनी आंखों से देखे गए महारास की चौंध में निकली चांदनी किरणों के द्रवीभूत हो जाने से बना था। यहीं बल्लभाचार्य जी की बैठक है।

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अब तलाश करते हैं यमुना जी की। द्वापर में  यमुना का प्रवाह आगरा से गोवर्धन होते हुए मथुरा की ओर था। इसका प्रमाण गोवर्धन से एक कि.मी. बाहर पुराने यमुना घाट पर बसा गांव है, जिसका नाम जमुनावती है। 2021 में प्राचीन जलस्रोतों के खोज अभियान में यहां खुदाई की गई तो नीचे जलधारा मिली जिसे यमुना से जोड़ कर देखा जा रहा है। अभी यमुना की मुख्य धारा गोवर्धन से 20 कि.मी. दूर गऊ घाट से बह रही है। यह वही गऊ घाट है, जहां सूरदास जी और बल्लभाचार्य जी की भेंट हुई थी।

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तो श्रीमद्भागवत में और शुक्र संहिता में जिस महारास का जिक्र है, उस रास की स्थली परासौली गांव में ही ठहरती है, अभी के वृंदावन में नहीं। आज जो वृंदावन है, वह संतों एवं ऋषियों की भजन और तप स्थली रही है और ब्रज के संपूर्ण 84 कोस में विस्तृत श्री कृष्ण के लीला स्थलों में से एक बड़ा और पावन स्थल है, जहां निश्चित ही उन्होंने गोप-गोपिकाओं और गायों के संग विचरण किया होगा और अठखेलियां की होंगी।

लेकिन जब महारास की बात आती है तो परम रास स्थली परासौली ही ठहरती है। कुछ मान्यताओं में परासौली को ऋषि पराशर की जन्मस्थली के तौर पर भी माना गया है, किंतु भारत में ऐसे बहुत से स्थल हैं जिन्हें पराशर मुनि से जोड़ा गया है। एक और बात, जब ह्वेनसांग स्थानेश्वर होता हुआ कन्नौज जा रहा था तो मार्ग में पड़े मथुरा और यहां के विशाल देवालयों का तो उसने जिक्र किया, किंतु आश्चर्यजनक रूप से उसने वृंदावन या वहां के मंदिरों का उल्लेख नहीं किया, जबकि थानेसर, दिल्ली-मथुरा का रास्ता वृंदावन होकर ही यमुना के साथ-साथ रहा है।  

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