Yogini Ekadashi: कब है योगिनी एकादशी ? जानें तिथि, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

Edited By Updated: 15 Jun, 2020 06:38 AM

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त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने जगत कल्याण के लिए अपने-अपने कार्य निर्धारित किए हुए हैं जैसे ब्रह्मा जी जगत का निर्माण करते हैं, विष्णु जी पालन करते हैं और महेश संहार करते हैं।

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Yogini Ekadashi 2020: त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) ने जगत कल्याण के लिए अपने-अपने कार्य निर्धारित किए हुए हैं जैसे ब्रह्मा जी जगत का निर्माण करते हैं, विष्णु जी पालन करते हैं और महेश संहार करते हैं। पालनकर्ता विष्णु भगवान ने कई बार धरती पर अधर्म को समाप्त करने और धर्म की स्थापना के लिए अवतार लिया है। उन्हीं पालनकर्ता विष्णु को प्रसन्न करने के लिए श्री कृष्ण और मार्कण्डेय ऋषि ने योगनी एकादशी व्रत का महत्व बताया है। इस व्रत की महत्वता का बखान पद्मपुराण के उत्तराखंड से प्राप्त होता है।

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हिन्दू पंचाग के अनुसार एक वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं। इस तरह से हर माह में दो एकादशी आती हैं, एक शुक्ल पक्ष के बाद और एक कृष्ण पक्ष के बाद। हर एकादशी का अपना अलग महत्व है। योगिनी एकादशी व्रत आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस वर्ष यह व्रत 17 जून को पड़ रहा है।

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एकादशी व्रत का शुभ मुहूर्त
एकादशी आरंभ तिथि: 16 जून प्रात: 5:40 बजे
तिथि समाप्त: 17 जून सुबह 7:50 तक
पारण: 18 जून प्रात: 5.28 बजे के बाद

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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से इस व्रत के बारे में पूछा। तब भगवान कृष्ण ने बताया कि इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और इस लोक को भोगने के बाद वह मुक्ति पा कर परलोक को प्राप्त होता है।

पुराणों में वर्णित एक कथा को बताते हुए श्री कृष्ण कहते हैं कि एक समय स्वर्गधाम में अलकापुरी नामक एक नगरी थी। जिसके राजा का नाम कुबेर था। वह बहुत बड़ा शिव भक्त था। वह प्रतिदिन अपने बन्धु-बाधुओं के साथ शिव की आराधना किया करता था। उस राजा के यहां एक माली था, जिस का नाम हेम था। हेम रोज़ राजा के लिए सुन्दर पुष्प तोड़ कर लाता था। जिस से राजा भगवान शिव की आराधना करते थे। हेम की पत्नी विशालाक्षी बहुत ही सुन्दर थी। एक दिन हमेशा की तरह हेम मानसरोवर से पुष्प ले तो आया, परन्तु कामास्त होने के कारण अपनी पत्नी के साथ रमण करने लगा।

यहां राजा उसका इंतज़ार करते रहे। जब पूजा का समय निकल गया तो राजा ने अपने सैनिकों हेम के घर भेजा और बोला पता लगाओ की आज हेम पुष्प ले कर क्यों नहीं आ पाया। सैनिक हेम को पकड़ कर ले आये और बताया कि यह महाकामी अपने पत्नी के साथ रमण कर रहा था। राजा क्रोधित हो गए और हेम को श्राप दिया की वो धरती लोक में कोढ़ी रोग से ग्रस्त हो कर जन्में और पत्नी का वियोग सहे। श्राप के कारण हेम ने भूलोक में जन्म लिया अनेक प्रकार के कष्ट सहे, भयंकर जंगल में भूखा प्यासा भटकता रहा।

पूर्व जन्म की शिव भक्ति के कारण घूमते-घूमते वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम पहुंच गया। वहाँ ऋषि ने हेम को योगिनी एकादशी के व्रत का विधान बताया और कहां इस व्रत से सब पापों का नाश होता है। इस व्रत को विधिपूर्वक कर के हेम सब कष्टों से मुक्त हो कर अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। श्री कृष्ण बताते हैं कि इस व्रत का फल, 88 हज़ार ब्राहमणों को भोजन करवाने के बराबर होता है।

इसी प्रकार जो भी व्यक्ति श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करता है, उसको हर प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

आचार्य लोकेश धमीजा
वेबसाइट – www.goas.org.in

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