जन्मदिन मुबारक, अमिताभ बच्चन, 24 फ्रेम प्रति सेकंड में लार्जर दैन लाइफ बनने वाले आख़िरी हीरो

Updated: 16 Oct, 2025 04:58 PM

birthday wishes to legendary amitabh bachchan

बॉलीवुड के शहंशाह को जन्मदिन की शुभकामनाएं देना जितना सहज लगता है, उतना ही जटिल है जब आप निजी तौर पर उन्हें जानते हों और जानते हों कि कब वे एक आत्मीय मुस्कान दे सकते हैं।

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। बॉलीवुड के शहंशाह को जन्मदिन की शुभकामनाएं देना जितना सहज लगता है, उतना ही जटिल है जब आप निजी तौर पर उन्हें जानते हों और जानते हों कि कब वे एक आत्मीय मुस्कान दे सकते हैं और कब आपको "भ्रमित मूर्ख" कहकर टाल सकते हैं। इसलिए यह सीधी बातचीत नहीं, एक सार्वजनिक पत्र है। आज, Downton Abbey के ग्रैंड फिनाले में एक संवाद सुनने को मिला: “कभी-कभी मुझे लगता है कि अतीत भविष्य से ज़्यादा आरामदायक जगह है।” बच्चन को अतीत में जीना पसंद नहीं, लेकिन इस देश के सिनेमा का भविष्य अगर आज भी कुछ बनने की कोशिश कर रहा है, तो उसकी सबसे ऊँची चोटी का नाम है अमिताभ।

बच्चन ने हीरोइज़्म को तकनीक से पहले महान बना दिया
आज के दौर में हीरो को स्लो मोशन में 90 फ्रेम प्रति सेकंड की एंट्री मिलती है, लेकिन बच्चन सिर्फ़ 24 फ्रेम में परदे पर उतरते थे और हॉल में सीटियाँ गूंजती थीं। उन्होंने कभी अपने संवादों को ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर या धुआँधार एंट्री लेकर नहीं बोला, फिर भी हर लाइन आइकॉनिक बन गई। असल परेशानी यही है बच्चन ने जो बेंचमार्क सेट किया, वह इतना ऊँचा है कि अब नई पीढ़ी को वहाँ तक पहुँचने के लिए फ्रेम रेट बढ़ाने पड़ते हैं, संगीत तेज़ करना पड़ता है, और हर इमोशन को एक्सटेंड करना पड़ता है।

आपके बिना भी हर फ्रेम में आप की छाया है
आपके दौर के लोग या अगली पीढ़ी के सितारे सभी ने कोशिश की कि आपकी तरह गूँज सकें, आपकी तरह “महसूस” कराए बिना चीखे। लेकिन आपके पास जो संयम, जो गहराई और जो आवाज़ थी वो विरासत बनी, नकल नहीं। आपने सिनेमा को तकनीक से पहले आत्मा दी। और जब कैमरा एक लंबे, चुप खड़े आदमी पर ट्रैक करता है, तो आज भी कोशिश यही होती है कि कहीं वो बच्चन-जैसी ‘व Presence’ पकड़ पाए।

 हमें आपकी वापसी नहीं, आपकी स्थायी उपस्थिति चाहिए
तो जन्मदिन मुबारक हो उस उम्मीद को, जो हर उभरते कलाकार के दिल में पलती है कि एक दिन हम भी बच्चन जैसे बनेंगे। और नहीं बन पाए, तो कम से कम ऐसा होने का अभिनय तो कर सकें। बच्चन साहब, कृपया केबीसी से उठिए, और फिर से पर्दे पर उतरिए। इस तेज़ रफ्तार, हाई-फ्रेम, लो-गहराई वाले सिनेमा में हमें फिर से 24 फ्रेम प्रति सेकंड वाला बच्चन चाहिए  बिना किसी स्लो मो एंट्री के, सिर्फ़ आत्मा और आवाज़ के सहारे।

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