मैं हर फिल्म में 500% देता हूं, यही मेरी असली करेंसी है- इमरान हाशमी

Updated: 31 Oct, 2025 11:40 AM

emraan hashmi exclusive interview for haq with punjab kesari

फिल्म हक के बारे में एक्टर इमरान हाशमी ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश...

नई दिल्ली/टीम डिजिटल। साल 1985 में हुए एक ऐतिहासिक केस से प्रेरित फिल्म ‘हक’ 7 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने जा रही है। इस फिल्म में इमरान हाशमी  और यामी गौतम लीड रोल निभा रहे हैं। फिल्म समाज में औरत की गरिमा और इंसाफ की लड़ाई पर आधारित है। फिल्म हक को सुपर्ण एस वर्मा ने डायरेक्ट किया है। फिल्म के बारे में एक्टर इमरान हाशमी ने पंजाब केसरी, नवोदय टाइम्स, जगबाणी और हिंद समाचार से खास बातचीत की। पेश हैं मुख्य अंश... 

इमरान हाशमी

सवाल: जिस केस पर यह फिल्म आधारित है, क्या आप पहले से इस केस से फैमिलियर थे?
जवाब:
थोड़ा बहुत पता था लेकिन सिर्फ सतही तौर पर। मुझे इस केस की बारीकियां या उसकी असली गहराई के बारे में जानकारी नहीं थी। हमने स्कूल या अखबारों में इसके बारे में पढ़ा था लेकिन जो रिसर्च इस फिल्म के लिए की गई वो काफी डीटेल्ड है। यह केस सिर्फ इंस्पिरेशन है फिल्म में कुछ ड्रैमेटाइजेशन भी किया गया है। लेकिन असल में यह एक इंसानी कहानी है शादी, मतभेद, और आखिरकार कोर्ट रूम में होने वाली जंग की।

सवाल: आपने केस की डिटेल्स पढ़ीं तो क्या आपको रियल लाइफ में ऐसे अनुभव याद आए जहां लोगों के रिश्ते टूटते देखे हों?
जवाब:
हां कुछ लोग हैं मेरे करीब या जान-पहचान में जिन्होंने ऐसे मुश्किल दौर देखे हैं। डिवोर्स कभी आसान नहीं होता। कभी-कभी ये 10-15 साल तक चल जाता है। जब बच्चों की जिम्मेदारी बीच में होती है तो हालात और पेचीदा हो जाते हैं। ऐसे रिश्तों में जो इमोशनल ट्रॉमा रह जाता है वो बहुत गहरा होता है।

सवाल: आपका किरदार अब्बास खान काफी मुश्किल लगता है। तो आपने इस किरदार के लिए कैसे तैयारी की?
जवाब: 
जब मैं किसी किरदार को निभाता हूं तो कोशिश करता हूं कि उसे समझूं। कभी-कभी शुरुआत में किरदार समझ नहीं आता लेकिन जैसे-जैसे स्क्रिप्ट पढ़ते हैं सीन्स जीते हैं उसकी सच्चाई समझ में आने लगती है। अब्बास खान जैसा व्यक्ति शायद ग्रे लगे लेकिन हर इंसान अपनी कहानी में हीरो होता है। कोई भी खुद को गलत नहीं मानता। हर कॉन्फ्लिक्ट दो राइट पॉइंट्स ऑफ व्यू के बीच होता है न कि एक राइट और रॉन्ग के बीच।

सवाल: लोग कह रहे हैं कि ‘हक’ किसी धर्म पर नहीं बल्कि न्याय की लड़ाई पर आधारित है। आप क्या कहेंगे?
जवाब:
बिलकुल सही कहा। फिल्म किसी कम्युनिटी को टारगेट नहीं करती। असली केस जरूर एक खास समुदाय से जुड़ा था लेकिन फिल्म का मकसद इससे ऊपर है। ये एक औरत की गरिमा की लड़ाई की कहानी है। समाज में कई बार एक आदमी की तथाकथित ‘राइटियसनेस’ की कीमत एक औरत चुकाती है। यह हमारी समाज की सच्चाई है। और यही बात फिल्म बहुत सेंसिटिव तरीके से दिखाती है।

सवाल: आपने कभी किसी एक प्रोडक्शन कैंप से खुद को नहीं जोड़ा। क्या इंडस्ट्री में न्यूट्रल रहना मुश्किल है?
जवाब: 
मुझे कभी मुश्किल नहीं लगा। मैं हमेशा अपने काम से पहचान बनाता हूं। मैं हर फिल्म में 500% देता हूं। यही मेरी करेंसी और मेरी गुडविल है। अगर कोई प्रोड्यूसर मुझे चुनता है तो उसे भरोसा होता है कि मैं अपना पूरा देना जानता हूं। प्रोफेशनल रहना ही असली रिलेशनशिप है।

सवाल: क्या आप आगे भी ‘घनचक्कर’ जैसी वॉकी कॉमेडी या ‘एक थी डायन’ जैसे नॉन-कमर्शियल रोल करना चाहेंगे?
जवाब:
बिलकुल! मैं हर स्क्रिप्ट को एक नए नजरिए से देखता हूं। मुझे एक्सपेरिमेंट करना पसंद है। कॉम्प्लेक्स फिल्में करने से आपको बॉक्स ऑफिस पर नुकसान हो सकता है, लेकिन आपको एक नया अनुभव और संतोष मिलता है। मेरा मानना है कि एक एक्टर को हमेशा एक ‘मिक्स्ड बैग’ बनाए रखना चाहिए कमर्शियल और परफॉर्मेंस-ड्रिवन दोनों तरह की फिल्में।

सवाल: क्या फिल्म की रिलीज के वक्त आप भी डिटैचमेंट महसूस करते हैं, जैसे कई एक्टर्स कहते हैं?
जवाब:  
हां मेरे हिसाब से डिटैचमेंट जरूरी है। जब आपकी फिल्म रिलीज होती है और आप उसी वक्त किसी नई फिल्म की शूटिंग कर रहे होते हैं तो खुद को डिटैच करना ही पड़ता है। वरना अगर आपकी एक फिल्म उस स्तर पर नहीं चली तो उस एक फिल्म का असर दूसरी पर पड़ जाएगा। एक्टिंग बहुत इमोशनल प्रोसेस है, लेकिन साथ ही एक माइंड गेम भी है। बैलेंस बनाए रखना जरूरी है।

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