Jugnuma Review: स्लो पेस और धुंधली रोशनी में उलझती ‘जुगनुमा’ की रहस्यमयी दुनिया

Updated: 12 Sep, 2025 09:37 AM

jugnuma review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है फिल्म जुगनुमा...

फिल्म- जुगनुमा (Jugnuma)
स्टारकास्ट- मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee), प्रियंका बोस (Priyanka Bose), दीपक डोबरियाल (Deepak Dobriyal), तिलोत्तमा शोम (Tillotama Shome),  हिरल सिद्धु (Hiral Sidhu) और अवान पूकोट (Awan Pookot)
डायरेक्टर- राम रेड्डी (Ram Reddy)
रेटिंग- 2.5*

जुगनुमा-
निर्देशक और लेखक राम रेड्डी की फिल्म जुगनुमा जिसमे राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता मनोज बाजपेयी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। इस फिल्म में प्रियंका बोस, दीपक डोबरियाल, तिलोत्तमा शोम, हिरल सिद्धु और अवान पूकोट जैसे कई दमदार कलाकार भी अहम किरदारों में नजर आ रहे हैं। जुगनुमा का निर्माण प्रताप रेड्डी, सुनमिन पार्क, राम रेड्डी और जूही अग्रवाल ने Prspctvs Productions के बैनर तले किया है। खास बात यह है कि फिल्म को पूरी तरह सेलुलॉइड पर शूट किया गया है, जिससे यह अपनी सिनेमाई भाषा में एक अलग ही काव्यात्मक और सौंदर्यपूर्ण अनुभव पेश करती है।

कहानी 
फिल्म की कहानी 1989 के दशक के उत्तरार्ध के हिमालयी पृष्ठभूमि पर आधारित है। यह कहानी है देव (मनोज बाजपेयी) की जो एक बागान के मालिक हैं। देव की जिंदगी तब विचित्र रहस्यों से भर जाती है जब अचानक उनकी बगिया के पेड़ रातों-रात रहस्यमयी तरीके से जल उठते हैं। इस अजीब घटना के पीछे का सच जानने की उनकी जद्दोजहद उन्हें परिवार के दफन रहस्यों और स्थानीय लोककथाओं की डरावनी परतों तक ले जाती है। इसके आगे फिल्म में क्या होता है वो तो फिल्म देखने के बाद ही पता चलेगा। 

एक्टिंग
फिल्म जुगनुमा में मनोज बाजपेयी ने देव के किरदार में अपनी अद्भुत अदाकारी से दर्शकों का दिल जीत लिया है। उनका गंभीर और गहन प्रदर्शन फिल्म की आत्मा जैसा महसूस होता है। प्रियंका बोस ने भी अपने किरदार को पूरी निष्ठा और सहजता से निभाया है। वहीं, दीपक डोबरियाल अपने अंदाज़ से एक बार फिर छाप छोड़ते हैं। तिलोत्तमा शोम और हिरल सिद्धु ने भी अपने-अपने किरदारों में बेहतरीन काम किया है।

डायरेक्शन
जुगनुमा का निर्देशन राम रेड्डी ने किया है जबकि फिल्म को अकादमी अवॉर्ड विजेता गुनीत मोंगा और अनुराग कश्यप ने प्रोड्यूस किया है। इस फिल्म का निर्देशन राम रेड्डी ने किया है। हालांकि, फिल्म की कहानी कमजोर प्रतीत होती है और इसकी गति बेहद धीमी है जिससे दर्शकों को बोरियत महसूस होने लगती है। फिल्म में आखिरकार क्या दिखाने की कोशिश की जा रही है यह स्पष्ट नहीं हो पाता, जिससे सस्पेंस के बजाय उलझन और रुचि की कमी महसूस होती है। आज के समय में इतनी धीमी गति और डिम लाइट में फिल्म बनाना एक जोखिम भरा कदम है खासकर तब जब कहानी दर्शकों को बांधकर रखने में असफल हो। राम रेड्डी चाहते तो इस फिल्म को और भी रोचक और प्रभावशाली बना सकते थे, लेकिन कहीं न कहीं वे चूक गए हैं।

 

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