Mannu Kya Karega Review: नई पीढ़ी की पुरानी उलझनों पर एक ताजा फिल्म मन्नू क्या करेगा?, यहां पढ़े रिव्यू

Updated: 11 Sep, 2025 10:47 AM

mannu kya karega review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है फिल्म मन्नू क्या करेगा?

फिल्म- मन्नू क्या करेगा? (Mannu Kya Karega?)
स्टारकास्ट - व्योम यादव (Vyom Yadav), साची बिंद्रा(Saachi Bindra), कुमुद मिश्रा (Kumud Mishra), विनय पाठक (Vinay Pathak), चारु शंकर (Charu Shankar), राजेश कुमार (Rajesh Kumar), बृजेंद्र काला (Brijendra Kala), नमन गोर (Naman Gaur), आयत मेमन (Aayat Memon), डिंपल शर्मा (Dimple Sharma), लवीना टंडन (Lavina Tandon)
डायरेक्टर - संजय त्रिपाठी (Sanjay Tripathi)
राइटर - सौरभ गुप्ता (Saurabh Gupta), राधिका मल्होत्रा (Radhika Malhotra)
रेटिंग- 3.5*

मन्नू क्या करेगा?: संजय त्रिपाठी द्वारा निर्देशित मन्नू क्या करेगा? आज के दौर की ऐसी फिल्म है जिससे हर कोई कहीं न कहीं खुद को जोड़ पाएगा। बड़ी स्टारकास्ट और भारी बजट की फिल्मों के बीच यह फिल्म नए चेहरों को मौका देने का साहसिक कदम उठाती है और इसे एक खूबसूरत अनुभव में बदल देती है। लीड पेयर के रूप में डेब्यू कर रहे व्योम यादव और साची बिंद्रा अपनी सशक्त परफॉर्मेंस से कहानी को मजबूती देते हैं जिसकी वजह से यह फिल्म सिर्फ युवाओं ही नहीं बल्कि हर उम्र के दर्शकों के लिए देखने लायक बन जाती है। 

कहानी
देहरादून के एक कॉलेज में पढ़ने वाला मानव चतुर्वेदी उर्फ मन्नू हर चीज़ में अच्छा है स्पोर्ट्स, पढ़ाई, डिबेट और एक्टिंग लेकिन उसे नहीं पता कि ज़िंदगी में वाकई क्या करना है। इसी उलझन के बीच उसकी मुलाकात होती है जिया रस्तोगी से जो आत्मविश्वासी और अपने सपनों को लेकर बिल्कुल साफ़ है। दोस्ती प्यार में बदलती है लेकिन जिया को लगता है कि मन्नू अपने करियर को लेकर गंभीर नहीं है। खुद को साबित करने की कोशिश में मन्नू एक झूठ गढ़ता है “नथिंग” नाम का फेक स्टार्टअप, जिसके पीछे नकली ऑफिस और झूठ की दीवार खड़ी हो जाती है। सच सामने आने पर उसका रिश्ता टूट जाता है और मन्नू बिखर जाता है। तभी उसकी ज़िंदगी में आता है प्रोफेसर डॉन (विनय पाठक), जो उसे Ikigai की सोच से रूबरू करवाते हैं। यही विचार मन्नू को भीतर से झकझोर देता है जिससे वह अपनी गलतियों से सीखकर खुद को पहचानता है और आगे कहानी में क्या होता है इसके लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी। 

एक्टिंग
व्योम यादव ने मन्नू के किरदार में एक आम लड़के की उलझन, मासूमियत और फिर आत्मबोध को सहजता से निभाया है, हालांकि उनकी परफॉर्मेंस में और गहराई की गुंजाइश थी जिसे बेहतर किया जा सकता था। साची बिंद्रा जिया के रोल में नेचुरल लगीं और उनकी आंखों में आत्मविश्वास और दृढ़ता साफ झलकी उनका किरदार भी अच्छा लिखा गया था लेकिन स्क्रीन पर और असरदार हो सकता था। कुमुद मिश्रा और चारु शंकर मन्नू के माता-पिता के रूप में बिल्कुल असली लगे। विनय पाठक इस फिल्म का असली रत्न हैं ‘डॉन’ के रूप में उनका किरदार मज़ेदार भी है और सोचने पर मजबूर भी करता है। वहीं राजेश कुमार, बृजेंद्र काला, नमन गोर, आयत मेमन और डिंपल शर्मा जैसे सह-कलाकार भी अपनी-अपनी भूमिकाओं में छाप छोड़ते हैं।

डायरेक्शन
निर्देशक संजय त्रिपाठी ने इस फिल्म को बेहद संवेदनशीलता और बारीकी से गढ़ा है। उनकी डायरेक्शन की खासियत है कि कहानी कहीं भी खिंची हुई नहीं लगती और हर सीन अपने आप में नेचुरल एहसास कराता है। इनके बावजूद कहानी में दम थोड़ा कम लगा और इसे और भी बेहतर बनाया जा सकता था। सौरभ गुप्ता और राधिका मल्होत्रा की सटीक लेखनी फिल्म को मजबूती देती है और अंत तक दर्शकों को जोड़े रखती है लेकिन वही अंत थोड़ा कंफ्यूज भी कर देता है। शरद मेहरा के निर्माण में क्यूरियस ऑय फिल्म्स के बैनर तले बनी यह फिल्म ड्रामा से भरपूर सिनेमा से थके दर्शकों के लिए ताज़गी भरा अनुभव है। खासकर उन लोगों के लिए जो कभी मन्नू की तरह अपनी राह को लेकर उलझे रहे हैं, यह फिल्म उन्हें ज़रूर कुछ नया सोचने पर मजबूर करेगी।

 

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