Review: काम्या पंजाबी की शानदार वापसी, ‘Me No Pause Me Play’ महिलाओं की अनसुनी भावनाओं को देती है आवाज़

Edited By Updated: 28 Nov, 2025 05:51 PM

me no pause me play review in hindi

यहां पढ़ें कैसी है फिल्म मी नो पॉज मी प्ले...

फिल्म- मी नो पॉज मी प्ले (Me No Pause Me Play)
स्टारकास्ट- काम्या पंजाबी (Kamya Punjabi), मनोज कुमार शर्मा (Manoj Kumar Sharma), दीपशिखा नागपाल (Deepshikha Nagpal)
डायरेक्शन- समर के मुखर्जी (Samar K Mukherjee)
रेटिंग- 3.5*

Me No Pause Me Play केवल एक फिल्म नहीं बल्कि वह बातचीत है जिसे समाज ने लंबे समय से अनदेखा किया है। मेनोपॉज एक ऐसा शब्द जिसे महिलाएं झेलती हैं पर समाज शायद ही समझता है। निर्देशक समर के मुखर्जी और निर्माता-अभिनेता मनोज कुमार शर्मा ने इस ‘अनकही उम्र’ को सिनेमा की रोशनी में लाकर दर्शकों के सामने एक बेहद संवेदनशील, साहसिक और जरूरी विषय पेश किया है। यह फिल्म मनोरंजन के साथ-साथ एक चर्चित और आवश्यक संवाद की तरह सामने आती है।

कहानी
कहानी डॉली खन्ना (काम्या पंजाबी) की है जिसकी ज़िंदगी अचानक शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक उथल-पुथल से घिरने लगती है। मेनोपॉज उसके लिए सिर्फ एक मेडिकल फेज नहीं बल्कि एक ऐसा दौर बनकर सामने आता है जहां उसकी पहचान, आत्मविश्वास और वैवाहिक समीकरण नई चुनौतियों से गुजरते हैं। डॉली के पति रजत (मनोज कुमार शर्मा) का किरदार शुरुआत में रूखा और उदासीन दिखता है जिसकी वजह धीरे-धीरे सामने आती है और फिल्म के आगे बढ़ने के साथ उसके व्यवहार में गहरा परिवर्तन दिखता है। डॉली की ज़िंदगी में डॉक्टर जसमोना (दिपशिखा नागपाल) एक गाइड और हिम्मत देने वाली शख्सियत के रूप में आती हैं, जो कहानी को संतुलन देती हैं और डॉली की आंतरिक यात्रा को और मजबूती प्रदान करती हैं।

अभिनय
काम्या पंजाबी फिल्म की आत्मा हैं। उनके चेहरे पर डर, टूटन, उलझन और हिम्मत… हर भाव सहजता से उतरता है।  मनोज कुमार शर्मा निर्माता और अभिनेता दोनों भूमिकाओं में बेहद सधे हुए नज़र आते हैं। उनके अभिनय में अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि एक स्थिरता है जो फिल्म को ज़रूरी भावनात्मक ताकत देती है। रजत के रूप में उनका परिवर्तन फिल्म की सबसे मजबूत परतों में से एक है। दिपशिखा नागपाल कहानी की हीलिंग एनर्जी की तरह हैं शांत, संतुलित और प्रभावी।
सह-कलाकार भी अपनी-अपनी भूमिकाओं में सटीक बैठते हैं और कथा को मजबूत बनाते हैं।

निर्देशन
समर के मुखर्जी का निर्देशन इस फिल्म की सबसे विशेष खूबियों में से एक है। उन्होंने एक संवेदनशील विषय को न बोझिल बनने दिया और न ही इसे सामाजिक भाषण में बदलने दिया। फिल्म की रफ्तार संतुलित है, भावनात्मक दृश्य असर छोड़ते हैं और बैकग्राउंड स्कोर कई दृश्यों को और वजनी बना देता है। निर्माता के रूप में मनोज शर्मा का विज़न साफ दिखाई देता है यह फिल्म जागरूकता, समझ और संवाद के लिए बनाई गई है, सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं।

 

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