इस्राएली सेना में नई जगह पा रहे हैं ऑटिज्म वाले सैनिक

Edited By Updated: 26 Jan, 2023 04:21 PM

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इस्राएली सेना में नई जगह पा रहे हैं ऑटिज्म वाले सैनिक

इस्राएली सेना में ऑटिज्म वाले सैनिकों को शामिल करने के लिए 2021 में एक नई योजना शुरू की गई थी. उसके तहत अब तक सेना में करीब 200 ऐसे लोग शामिल हो चुके हैं जिन्हें ऑटिज्म है.नेथन सादा तेल अवीव के एक सैन्य अड्डे में अपने कंप्यूटर पर व्यस्त हैं. वो यहां आटिज्म से प्रभावित सैन्य कर्मियों के लिए विशेष रूप से डिजाइन किए गए एक कार्यक्रम का हिस्सा हैं. 'तितकदमु' (आगे बढ़ो) नाम की इस योजना को जुलाई 2021 में शुरू किया गया था. इसका उद्देश्य ऑटिज्म से प्रभावित सैनिकों को सेना में शामिल करना था. इसके तहत अभी तक करीब 200 ऐसे सैनिक सेना से जुड़ चुके हैं जिन्हें हाई-फंक्शनिंग आटिज्म है, यानी जो अपने सभी काम बिना किसी तकलीफ के कर सकते हैं. उन पर सिर्फ विशेष परिस्थितियों में ही आटिज्म के लक्षण सामने आते हैं. अपनी खाकी वर्दी पर गर्व से 'तितकदमु' का बैज लगाए सादा कहते हैं, "मैं सेना में शामिल होना चाहता था क्योंकि इस्राएल में सैन्य सेवा महत्वपूर्ण है. यह एक ऐसी चीज है जिसे हर युवा को करना चाहिए और मैं भी इस तजुर्बे को महसूस करना चाहता था. 2008 से बुला रही है सेना 20 साल के सादा एक प्रशासनिक भूमिका में हैं और अपनी कुर्सी पर बैठे एक चार्ट बनाने का काम पूरा कर रहे हैं. उत्तरी शहर हाइफा के रहने वाले सादा कहते हैं, "मेरे पास जिम्मेदारियां हैं; वो मुझ पर भरोसा करते हैं." इस्राएल में 18 साल की उम्र के बाद अधिकांश लोगों के लिए सैन्य सेवा अनिवार्य है. पुरुष 32 महीनों के लिए सेना को अपनी सेवाएं देते हैं और महिलाएं दो सालों के लिए. करीब एक-तिहाई नागरिकों को इससे छूट है. इनमें करीब 13 प्रतिशत आबादी वाले अति-ऑर्थोडॉक्स यहूदी और करीब 20 प्रतिशत आबादी वाले अरब-इस्राएली शामिल हैं. जो सेना में भर्ती होते हैं, उनके लिए सैन्य सेवा एक उनके जीवन का एक यादगार हिस्सा बन जाती है. 1948 में इस्राएल के बनने के बाद अपने सभी पड़ोसी देशों से युद्ध लड़ चुके इस देश में सेना का केंद्रीय स्थान है. ऑटिज्म से प्रभावित लोगों को सैन्य सेवा से छूट है, लेकिन 2008 से छोटे कोर्सों में उनका स्वागत किया जा रहा है. सेना के मानव संसाधन विभाजन के ब्रिगेडियर-जनरल आमिर वदमानी बताते हैं कि कई सालों तक बहुत कम लोग भर्ती होने आते थे. लेकिन तितकदमु को लाने के बाद यह स्थिति बदल गई. इस योजना को लाने का आईडिया आटिज्म से प्रभावित एक अफसर का था. वदमानी ने बताया कि लड़ाकू भूमिका को छोड़ कर "आप उन्हें हर विभाग में पाएंगे. वायु सेना में, नौसेना में, थल सेना में, खुफिया इकाई में, हर जगह." उन्होंने यह भी कहा, "ऑटिज्मवाले सैनिकों में बहुत बड़ी क्षमता है और वो सेना के लिए एक असली एसेट हैं. वो ये साबित करना चाहते हैं कि वो भी बाकी सबकी तरह सफल हो सकते हैं." जिंदगी के लिए तैयारी वदमानी ने यह भी बताया कि आटिज्म से प्रभावित लोगों को सेना में समाहित करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उनकी संख्या बढ़ती जा रही है. इस्राएली सोसाइटी फॉर चिल्ड्रन एंड एडल्ट्स विद आटिज्म (एएलयूटी) के मुताबिक इस बीमारी से प्रभावित लोगों की संख्या सालाना 13 प्रतिशत के औसत से बढ़ती जा रही है. एएलयूटी की प्रवक्ता लितल पोरात ने बताया कि इसका एक कारण यह भी है कि मानदंडों को और विस्तृत कर दिया गया है. समूह का कहना है कि देश में हर 78वां बच्चा आटिज्म से प्रभावित पाया जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक वैश्विक औसत हर 100वे बच्चे का है. पोरात कहती हैं कि आटिज्म वाले लोगों को सेना में शामिल होने से फायदा हो सकता है क्योंकि सेना "एक संरचना प्रदान करती है जो उन्हें जितना संभव हो सके उतना आत्मनिर्भर बनने के लिए तैयार करती है." तितकदमु कार्यक्रम के लिए सेना ने अपने प्रशिक्षण के तरीकों को कार्यक्रम के अनुकूल बनाया है और एक सपोर्ट नेटवर्क भी तैयार किया है. हफ्ते में एक बार सादा के साथी लिरि शहर उनके सैन्य अड्डे पर उनसे मिलने आते हैं. शहर को उनसे संपर्क में रहनी की जिम्मेदारी सौंपी गई है. 19 साल के शहर सादा और उनके कमांडर के बीच प्रतिनिधि का काम करते हैं. वो कहते हैं, "हम एक दूसरे को बताते हैं कि हमारा बीता हफ्ता कैसा रहा और कहीं कुछ विशेष हुआ हो तो वो भी बताते हैं." जन्म ले रही आकांक्षा सादा को चार साल की उम्र में आटिज्म से प्रभावित पाया गया था. उन्होंने बताया कि उन्हें कभी कभी लोगों से मिलने जुलने और बातचीत करने में संघर्ष करना पड़ता है. वो कहते हैं, "मेरे पास एक ऐसा व्यक्ति होने से मुझे काफी मदद मिलती है जिससे में बात कर सकूं, जो मुझे सलाह दे सके और मेरी मदद कर सके." यह कार्यक्रम अभी अपने शुरूआती दौर में ही है, लेकिन वदमानी कहते हैं इसमें शामिल होने वालों के लिए लंबी अवधि के लक्ष्य हैं. उन्होंने बताया, "उद्देश्य यह है कि उन्हें लेबर मार्किट मैं समाहित होने में मदद की जाए ताकि वो सैन्य सेवा में हासिल किए गए कौशल का आगे चल कर फायदा उठा सकें." सादा अगले साल अपने सैन्य अड्डे से छोड़ दिए जाएंगे और उनके पास उसके बाद अड्डे से बाहर अपनी जिंदगी के लिए अभी से स्पष्ट आकांक्षाएं हैं. वो मुस्कुराते हुए कहते हैं, "मुझे एक फिल्मकार बन कर बहुत अच्छा लगेगा. मैंने तो अभी से कई पटकथाएं लिख ली हैं." सीके/एए (एएफपी)

यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे DW फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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