भाद्रपद नाग पंचमी: ये है महत्व, कथा और पूजन विधि

Edited By Updated: 20 Aug, 2016 03:33 PM

bhadrapad naga panchami

ज्योतिष शास्त्र के पंचांग खंड अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी सर्प माने जाते हैं। हिन्दू पंचांग का छठा महीना भाद्रपद, श्याम वर्ण को समर्पित है।

ज्योतिष शास्त्र के पंचांग खंड अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी सर्प माने जाते हैं। हिन्दू पंचांग का छठा महीना भाद्रपद, श्याम वर्ण को समर्पित है। भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि काले नागों अर्थात काले सांपों को समर्पित है। शास्त्रानुसार पंचमी तिथि को भूमि खोदना वर्जित है। सांपों को सनातन धर्म में प्रमुख स्थान दिया गया है। त्रिदेवों में से एक भगवान शंकर के गले में स्थान पाने वाले कर्कोटक नाग की हिन्दू धर्म में पूजा की जाती है। नागों की पूजा का विशेष पर्व "भाद्रपद नाग पंचमी" है। स्कन्द पुराण के अनुसार भाद्रपद नाग पंचमी पर नागों की पूजा करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में इस इसी दिन गोगा पंचमी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यतानुसार गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य गोगा को सर्प देवता के रूप में पूजा जाता है। इस दिन लोग गोगा के साथ सर्प पूजन कर लोग सर्पदंश से जीव रक्षण के साथ-साथ सुहाग एवं संतान की लंबी उम्र प्राप्त करते हैं। इस पूजन से निसंतान दंपति को संतान प्राप्त होती है।
 
शास्त्र शिवपुराण के अनुसार कर्कोटक नाग शिवगण व नागराज हैं। पौराणिक मान्यतानुसार नाग-माता ने नागों को वचन भंग करने हेतु श्रापित किया था। श्रापनुसार सब नाग जनमेजय के नागयज्ञ में जल मरेंगे। इससे भयभीत होकर शंखचूड़ नाग मणिपुर में, शेषनाग हिमालय पर, कंबल व एलापत्र नाग ब्रह्मलोक में, कालिया यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, व अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए। कर्कोटक ने ब्रह्मदेव से श्राप मुक्ति का हल पूछ। तब ब्रह्मदेव ने सभी नागों को महाकाल वन जाकर महामाया शिवलिंग की तपस्या करने को कहा। तब कर्कोटक नाग ने महाकालवन स्थित महामाया शिवलिंग की स्तुति कर तपस्या की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर कर्कोटक को वरदान दिया। वर अनुसार "जो नाग धर्म आचरण करेंगे उनका विनाश नहीं होगा।" 
 
इसके उपरांत कर्कोटक नाग वहीं लिंग में प्रविष्ट हो गए। इसी कारण उज्जैन स्थित शिवलिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं व भगवान शंकर को कर्कोटेश्वर। मान्यतानुसार लोग पंचमी, चतुर्दशी व सोमवार को कर्कोटेश्वर पूजन करते हैं।
 
शास्त्र गरुड़ पुराण के अनुसार नागपंचमी पर घर के दोनों ओर नाग की पांच मूर्ति खींचकर कर्कोटक, अनन्त, एलापत्र, कालिया व धृतराष्ट्र इन पांच महानागों का पूजन करें। स्कन्द पुराण के नगरखंड अनुसार पंचमी को चमत्कारपुर स्थित नागों के पूजन से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नारद पुराण में सर्प के डसने से बचने हेतु नाग व्रत करने का विधान है जिसके अनुसार सर्पदंश से सुरक्षित रहने हेतु परिवार के सभी लोगों को भाद्रपद कृष्ण पंचमी पर सर्प को दूध पिलाना चाहिए। नाग पूजन विधि अनुसार इस दिन घर के दक्षिण-पश्चिम कोने मे गोबर में गेरू मिलाकर लीपाना चाहिए। कच्चे सूत को हल्दी चंदन से रंग कर सात गांठें लगाकर सूत के पांच सांप बनाकर स्थापित करें। रोली, चावल कमल, पंचामृत, धूप, नैवेद्य से नागों की विधिवत पूजा करें। दूध, घी, चीनी मिलाकर नागदेव को अर्पित करें। पूजन उपरांत आरती करें। भीगे हुए बाजरे, घी और गुड़ समर्पित करें दक्षिणा चढ़ाएं। तथा घी के दीपक से आरती उतारें। पूजा के बाद ब्राह्मणों को लड्डू व खीर का भोजन कराएं।

आचार्य कमल नंदलाल

ईमेल: kamal.nandlal@gmail.com 

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