अहमदाबाद में 2008 का सिलसिलेवार विस्फोट: जब लोगों का हुआ आतंक से सामना...पीड़ित बोले आज भी दहल उठता है दिल

Edited By Updated: 08 Feb, 2022 07:19 PM

2008 serial blasts in ahmedabad

यश व्यास महज 10 साल के थे, जब जुलाई 2008 में अहमदाबाद के असारवा इलाके में एक अस्पताल का एक वार्ड बम विस्फोट से दहल उठा था। वह ईश्वर के शुक्रगुजार हैं कि उनकी जान बच गई

नेशनल डेस्क: यश व्यास महज 10 साल के थे, जब जुलाई 2008 में अहमदाबाद के असारवा इलाके में एक अस्पताल का एक वार्ड बम विस्फोट से दहल उठा था। वह ईश्वर के शुक्रगुजार हैं कि उनकी जान बच गई, लेकिन एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता कि वह अपने पिता और बड़े भाई को याद नहीं करते, जिनकी विस्फोट में मृत्यु हो गई थी। व्यास अब 24 साल के हैं। वह विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं। उनके परिवार का संघर्ष इस भयावह घटना के 13 साल बाद भी जारी है और इससे मिले मानसिक आघात से वे अब तक नहीं उबर पाए हैं। उनकी तरह, कई अन्य पीड़ितों ने भी 26 जुलाई 2008 को शहर में हुए 21 सिलसिलेवार विस्फोटों के बाद के मंजर को याद किया।

 

इस घटना में 56 लोग मारे गये थे और 200 से अधिक लोग घायल हो गए थे। यहां की एक विशेष अदालत ने मंगलवार को मामले के 49 आरोपियों को दोषी करार दिया और 28 अन्य को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। मामले के दोषियों की सजा की अवधि पर सुनवाई बुधवार से शुरू होगी। व्यास ने घटना में 50 प्रतिशत से अधिक झुलसने के बाद यहां एक अस्पताल की गहन देखभाल इकाई (ICU) में बिताए चार महीनों के समय को याद किया और कहा कि वह आज तक पूरी तरह नहीं उबर पाए हैं। उन्होंने कहा कि विस्फोट के चलते मुझे अब भी सुनने में कुछ दिक्कत पेश आ रही है।

 

सदर अस्पताल के ट्रॉमा वार्ड के बाहर विस्फोट में घायल हुए गुजरात के मंत्री प्रदीप परमार ने घटना का दृश्य याद किया, जिस दौरान उन्होंने खून से लथपथ लोगों को देखा था, वहीं कुछ लोग झुलस गए थे और घटना के बाद अस्पताल में शरीर के अंग बिखरे पड़े थे। वर्तमान में राज्य के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री परमार उस वक्त असारवा विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ता थे, जहां यह अस्पताल स्थित है। उन्होंने बताया कि वह और भाजपा के अन्य कार्यकर्ता जब अन्य विस्फोटों के घायलों की मदद करने अस्पताल पहुंचे तभी ट्रॉमा वार्ड के पास एक और विस्फोट हुआ। असारवा सीट से विधायक परमार ने कहा कि कई लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। मेरे एक पैर में गंभीर चोट आई। पैर को करीब 90 प्रतिशत नुकसान पहुंचा था और चिकित्सक मेरी जान बचाने के लिए इसे काटने तक की सोच रहे थे। लेकिन सौभाग्य से वे मेरा पैर बचाने में सफल रहें।

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