आंबेडकर को हिंदू धर्म छोड़ने का 'कड़वा फैसला' करना पड़ा था : पवार

Edited By Pardeep,Updated: 21 May, 2022 01:46 AM

ambedkar had to take  bitter decision  to leave hinduism pawar

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने शुक्रवार को कहा कि डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को 1930 के दशक में हिंदू धर्म छोड़ने का ''''कड़वा फैसला'''' करना पड़ा था क्योंकि देश की सामाजिक

पुणेः राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने शुक्रवार को कहा कि डॉ बाबासाहेब आंबेडकर को 1930 के दशक में हिंदू धर्म छोड़ने का ''कड़वा फैसला'' करना पड़ा था क्योंकि देश की सामाजिक स्थिति उन्हें स्वीकार्य नहीं थी। पवार ने यहां अधिवक्ता जयदेव गायकवाड़ द्वारा आंबेडकर पर लिखित एक पुस्तक के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए यह बात कही। राकांपा प्रमुख ने कहा कि जीवन भर आंबेडकर ने अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई और कई अन्य चीजों के साथ ही उन्होंने महिलाओं के लिए समान अधिकार की मांग की। 

पवार ने कहा कि जब आंबेडकर ने 1930 में नासिक के कलाराम मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए एक सत्याग्रह शुरू किया, तो उन्होंने सहभागियों से यह लिखित रूप में देने को कहा कि वे 'चतुर्वर्ण' व्यवस्था में विश्वास नहीं करते हैं और छुआछूत के उन्मूलन की दिशा में काम करेंगे जो हिंदू धर्म पर एक धब्बा था। 

पवार ने कहा, हालांकि, आखिरकार आंबेडकर को हिंदू धर्म को पूरी तरह से छोड़ने का फैसला लेना पड़ा था। राकांपा नेता ने कहा कि जब दलितों के लिए राजनीतिक आरक्षण के लिए आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच पूना समझौता हुआ था जब दोनों के बीच वार्ता हुई थी। 

उन्होंने कहा, ‘‘ कुछ बिंदुओं पर वह उनसे (गांधीजी से) सहमत थे लेकिन कुछ बिंदुओं पर उनके बीच मतभेद थे। लेकिन इन सब बातों के बाद भी बाबासाहब एक निर्णय पर पहुंचे और 13 अक्टूबर, 1935 को उन्होंने घोषणा की कि वह हिंदू के रूप में पैदा हुए लेकिन वह हिंदू के रूप में नहीं मरेंगे।'' उन्होंने कहा कि आखिर में 1956 में अंबेडकर औपचारिक रूप से बौद्ध बन गये। 

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