BRS में वारिस की जंग: केटीआर बनाम के. कविता, क्या पार्टी दो धड़ों में बंट जाएगी?

Edited By Updated: 30 May, 2025 08:08 PM

battle of heirs in brs ktr vs k kavitha

तेलंगाना की राजनीति में बड़ा घमासान मचा हुआ है। बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) की रजत जयंती के मौके पर जहां एक ओर पार्टी जश्न मना रही है, वहीं दूसरी ओर इसके भीतर गहराता पारिवारिक संकट सामने आ गया है।

नेशनल डेस्क: तेलंगाना की राजनीति में बड़ा घमासान मचा हुआ है। बीआरएस (भारत राष्ट्र समिति) की रजत जयंती के मौके पर जहां एक ओर पार्टी जश्न मना रही है, वहीं दूसरी ओर इसके भीतर गहराता पारिवारिक संकट सामने आ गया है। पूर्व मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (KCR) की गैरमौजूदगी या निष्क्रियता के बीच उनकी पार्टी में उत्तराधिकार की जंग शुरू हो गई है। ये जंग उनके बेटे केटी रामा राव (KTR) और बेटी के. कविता (K. Kavitha) के बीच दिख रही है। आइए समझते हैं कि आखिर बीआरएस में यह खींचतान क्यों हो रही है, कौन किसके साथ है और इससे पार्टी पर क्या असर पड़ सकता है?बीआरएस के दो बड़े चेहरे अब आमने-सामने नजर आ रहे हैं। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष केटीआर जहां संगठन के तमाम निर्णय ले रहे हैं वहीं के. कविता खुद को नजरअंदाज महसूस कर रही हैं। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह सिर्फ राजनीतिक नेतृत्व की लड़ाई नहीं बल्कि एक पारिवारिक संघर्ष भी है जिसमें यह तय किया जाना बाकी है कि केसीआर के बाद पार्टी की कमान कौन संभालेगा।

जब कविता ने लिखी चिट्ठी, खुल गया विवाद

पार्टी में असहमति की चिंगारी उस वक्त सामने आई जब के. कविता ने वारंगल की बीआरएस जनसभा के बाद अपने पिता केसीआर को एक फीडबैक लेटर लिखा। इस चिट्ठी में उन्होंने केसीआर के भाषण को लेकर नाराजगी जताई कि उन्होंने बीजेपी को खुलकर निशाने पर नहीं लिया, पिछड़ा वर्ग आरक्षण पर बात नहीं की और कार्यकर्ताओं से जुड़ाव भी कम हो गया है। इस पत्र के बाद यह साफ हो गया कि पार्टी के भीतर दो खेमे तैयार हो चुके हैं।

केटीआर के पास जिम्मेदारी, कविता को किया गया सीमित

केटीआर को पार्टी में कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर तमाम जिम्मेदारियां सौंपी गई जबकि कविता को सिर्फ निजामाबाद जिले तक सीमित कर दिया गया। विधान परिषद में भी उन्हें नजरअंदाज कर पूर्व स्पीकर मधुसूदन चारी को नेता नियुक्त किया गया। इससे कविता और उनके समर्थकों में नाराजगी बढ़ गई है। हाल ही में मीडिया से बातचीत करते हुए कविता ने भावुक बयान दिया। उन्होंने कहा कि उन्होंने 2006 से पार्टी में न सिर्फ मेहनत की बल्कि अपने निजी संसाधन भी झोंके। गर्भावस्था के दौरान भी उन्होंने तेलंगाना आंदोलन में हिस्सा लिया और "तेलंगाना जागृति" के बैनर तले जागरूकता कार्यक्रम चलाए। कविता के नजदीकी लोग मानते हैं कि उन्हें पिछले एक साल से साइडलाइन किया जा रहा है। उन्होंने अपने कार्यक्रमों में बीआरएस के झंडे और नेताओं की तस्वीरें लगाना बंद कर दिया। अब वो अपने स्तर पर पिछड़ी जातियों के आरक्षण, जाति जनगणना और फुले जी की प्रतिमा स्थापित करने जैसे मुद्दों पर कार्यक्रम चला रही हैं। कविता के समर्थकों का आरोप है कि जब उन्होंने कामारेड्डी, मंथनी, पेड्डापल्ली जैसे इलाकों में जनहित कार्यक्रम किए, तो स्थानीय बीआरएस नेता वहां पहुंचे ही नहीं। यहां तक कि पूर्व मंत्री कोप्पुला ईश्वर और पूर्व विधायक पुट्टा मधु भी कविता के बुलावे पर नहीं आए।

 

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