सावधान! दिल्ली की हवा में मौत का नया वायरस: रिसर्च ने किया खुलासा, गर्मी में बढ़ रहा कैंसर का खतरा

Edited By Updated: 01 Sep, 2025 03:19 PM

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दिल्ली की हवा अब सिर्फ धूल और धुएं से ही नहीं, बल्कि प्लास्टिक के बारीक कणों से भी प्रदूषित हो चुकी है। हाल ही में हुई एक नई स्टडी ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि गर्मियों में लोग सर्दियों की तुलना में लगभग दोगुने माइक्रोप्लास्टिक सांस के जरिए...

नेशनल डेस्क: दिल्ली की हवा अब सिर्फ धूल और धुएं से ही नहीं, बल्कि प्लास्टिक के बारीक कणों से भी प्रदूषित हो चुकी है। हाल ही में हुई एक नई स्टडी ने चौंकाने वाला खुलासा किया है कि गर्मियों में लोग सर्दियों की तुलना में लगभग दोगुने माइक्रोप्लास्टिक सांस के जरिए अपने शरीर में ले रहे हैं, जिससे सांस और फेफड़ों से जुड़ी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है।

गर्मी में क्यों ज्यादा है खतरा?
भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा की गई इस स्टडी के अनुसार, पहले दिल्ली में प्रदूषण मुख्य रूप से सर्दियों में बढ़ता था, लेकिन अब माइक्रोप्लास्टिक के कण गर्मियों में कहीं ज्यादा पाए गए हैं। इसका सीधा असर लोगों की सेहत पर दिख रहा है।

सर्दियों की तुलना में दोगुना जोखिम: स्टडी में पता चला कि दिल्ली का एक वयस्क सर्दियों में औसतन 10.7 माइक्रोप्लास्टिक कण रोज़ाना सांस लेता था, जो गर्मियों में बढ़कर 21.1 कण हो गया। इसका मतलब है कि गर्मियों में यह जोखिम लगभग 97% बढ़ गया है।
अस्पतालों में बढ़े मरीज: रिसर्च में यह भी सामने आया है कि गर्मी के दिनों में सांस संबंधी बीमारियों के लिए अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है।


हवा में कौन से प्लास्टिक मिले?
पुणे के IITM और सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मिलकर यह स्टडी की। उन्होंने दिल्ली की हवा के नमूनों की जाँच की, जिसमें कुल 2,087 माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए। ये कण पांच तरह के प्लास्टिक से बने थे:
पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (41%): बोतलों और पैकेजिंग में इस्तेमाल होने वाला प्लास्टिक।
पॉलीइथिलीन (27%): शॉपिंग बैग और प्लास्टिक कवर में उपयोग होने वाला।
पॉलिएस्टर (18%): कपड़ों और फैब्रिक से निकलने वाले रेशे।
पॉलीस्टाइरीन (9%): डिस्पोजेबल कप और थर्मोकोल से निकलने वाला।
पीवीसी (5%): पाइप और वायर में इस्तेमाल होने वाला।


छोटे कण, बड़ा खतरा
रिसर्च के मुताबिक, ये प्लास्टिक कण अलग-अलग आकार के हैं, जो सेहत के लिए गंभीर खतरा बन सकते हैं:
PM10: ये बड़े कण होते हैं जो नाक और गले में फंस सकते हैं।
PM2.5: ये सबसे खतरनाक माने जाते हैं क्योंकि ये सीधे फेफड़ों में जा सकते हैं, जिससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और दिल की बीमारियां हो सकती हैं।
PM1: ये सबसे छोटे कण होते हैं जो खून में मिलकर शरीर के किसी भी हिस्से तक पहुंच सकते हैं, जिससे दिमाग की समस्याएं और कैंसर जैसी घातक बीमारियां हो सकती हैं।

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