Edited By Parveen Kumar,Updated: 06 Dec, 2025 10:16 PM

देश में एक ओर 70 घंटे काम करने को लेकर गरम बहस छिड़ी है- कुछ इसके समर्थन में हैं, तो GenZ इसका कड़ा विरोध कर रहा है। इस पीढ़ी की दलील है: पर्सनल लाइफ, मी टाइम और वर्क- लाइफ बैलेंस भी कोई चीज होती है। इसी माहौल के बीच लोकसभा में ऐसा बिल पेश हुआ है...
नेशनल डेस्क: देश में एक ओर 70 घंटे काम करने को लेकर गरम बहस छिड़ी है- कुछ इसके समर्थन में हैं, तो GenZ इसका कड़ा विरोध कर रहा है। इस पीढ़ी की दलील है: पर्सनल लाइफ, मी टाइम और वर्क- लाइफ बैलेंस भी कोई चीज होती है। इसी माहौल के बीच लोकसभा में ऐसा बिल पेश हुआ है जिसने ऑफिस- गोअर्स का ध्यान खींच लिया- एक ऐसा कानून, जो कहता है कि ऑफिस के बाद बॉस का फोन उठाना ज़रूरी नहीं!
‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’- सांसद सुप्रिया सुले की पहल
लोकसभा में शुक्रवार को एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ पेश किया। यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है, जिसका मकसद कर्मचारियों को यह अधिकार देना है कि: ऑफिस टाइम के बाद, छुट्टी के दिन, वीकेंड पर। वे काम से जुड़े फोन, ईमेल या मैसेज का जवाब न दें- और इस पर उन पर कोई कार्रवाई न हो। बिल में प्रस्ताव है कि कर्मचारियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए एक वेलफेयर अथॉरिटी बनाई जाए, जो इस अधिकार को लागू करने में अहम भूमिका निभाएगी।
बिल में क्या-क्या है खास?
कर्मचारी को यह अधिकार होगा कि वह ऑफिस टाइम के बाहर काम से संबंधित किसी कॉल, ईमेल या मैसेज का जवाब न दे। कंपनी यदि इस नियम का पालन नहीं करती, तो उस संस्था पर कुल कर्मचारियों के पारिश्रमिक का 1% जुर्माना लगाया जा सकता है। लक्ष्य है कि कर्मचारी डिजिटल कम्युनिकेशन से कटकर अपनी निजी जिंदगी में राहत पा सकें।
क्यों चर्चा में है यह बिल?
क्योंकि आज की तेज़ रफ्तार नौकरी में ऑफिस टाइम और पर्सनल टाइम की लाइनों का धुंधला होना एक बड़ी समस्या बन चुका है। और यह बिल उन लोगों के लिए उम्मीद की किरण है जो कहते हैं- “ऑफिस खत्म मतलब काम खत्म… फोन नहीं।”