Birthday: कहां से हुई थी जन्मदिन मनाने की शुरुआत, जानें किसने मनाया था सबसे पहले अपना बर्थडे

Edited By Updated: 25 Aug, 2025 07:42 PM

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आज के दौर में बच्चे हों या बड़े, हर कोई अपने जन्मदिन को खास अंदाज में मनाना चाहता है। केक काटना, मोमबत्तियां बुझाना और दोस्तों के साथ जश्न मनाना अब आम बात हो गई है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जन्मदिन मनाने की यह परंपरा कब और कहां से शुरू हुई थी?

नेशनल डेस्क: आज के दौर में बच्चे हों या बड़े, हर कोई अपने जन्मदिन को खास अंदाज में मनाना चाहता है। केक काटना, मोमबत्तियां बुझाना और दोस्तों के साथ जश्न मनाना अब आम बात हो गई है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जन्मदिन मनाने की यह परंपरा कब और कहां से शुरू हुई थी?

दरअसल, जन्मदिन पर केक काटने और मोमबत्तियां जलाने की परंपरा की जड़ें पश्चिमी देशों में छिपी हुई हैं, जो सदियों पुरानी है।

मोमबत्तियां जलाने की परंपरा: शुरुआत प्राचीन यूनान से

जन्मदिन पर मोमबत्तियां जलाने और उन्हें बुझाने की परंपरा प्राचीन ग्रीस (यूनान) से जुड़ी हुई है। उस समय लोग जलती हुई मोमबत्तियों को लेकर ग्रीक देवी-देवताओं के मंदिरों में जाते थे। वहां जाकर वे मोमबत्तियों से भगवान का प्रतीक चिन्ह बनाते थे और फिर उन्हें बुझा देते थे।

ऐसा माना जाता था कि मोमबत्तियों का धुआं ऊपर जाकर भगवान तक पहुंचता है और इससे प्रार्थनाएं स्वीकार होती हैं।

केक काटने और बर्थडे मनाने की शुरुआत: जर्मनी से

जन्मदिन पर केक काटने और उस पर मोमबत्तियां लगाने की परंपरा की शुरुआत 18वीं सदी के मध्यकालीन जर्मनी से मानी जाती है। इतिहासकारों के अनुसार, सन् 1746 में पहली बार जन्मदिन पर केक और मोमबत्तियों का उपयोग किया गया था।

यह जश्न एक धार्मिक और सामाजिक सुधारक "जिंजोनडॉर्फ" के जन्मदिन के अवसर पर आयोजित किया गया था। उस समय जर्मनी में बच्चों के जन्मदिन पर "किंडरफेस्ट" नामक विशेष समारोह होता था।

इस समारोह में:

  • केक पर मोमबत्तियां लगाई जाती थीं।
  • ये मोमबत्तियां पूरे दिन जलती रहती थीं।
  • शाम को बच्चे अपनी इच्छा मांगकर मोमबत्तियां बुझाते थे।
  • ऐसा विश्वास था कि मोमबत्तियों से निकला धुंआ इच्छाओं को भगवान तक पहुंचा देता है।

आज की परंपरा उसी इतिहास की झलक

आज भले ही जन्मदिन मनाने का तरीका थोड़ा बदल गया हो, लेकिन मोमबत्तियां बुझाना और केक काटना उसी ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा हैं जो वर्षों पहले यूरोप से शुरू हुई थी। अब यह परंपरा सिर्फ पश्चिमी देशों तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गई है — और भारत में भी हर उम्र के लोग इसे बड़े उत्साह के साथ अपनाते हैं।

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