Edited By Mehak,Updated: 27 Oct, 2025 12:37 PM

अगर पति-पत्नी का ब्लड ग्रुप एक जैसा है, तो इससे किसी तरह का नुकसान नहीं होता। यह एक सामान्य जेनेटिक स्थिति है जो बच्चे के ब्लड ग्रुप को प्रभावित कर सकती है, लेकिन कोई गंभीर समस्या नहीं देती। असली परेशानी तब होती है जब महिला Rh नेगेटिव और पुरुष Rh...
नेशनल डेस्क : अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि अगर पति-पत्नी का ब्लड ग्रुप एक जैसा हो, तो क्या इससे कोई नुकसान होता है या बच्चे के जन्म पर कोई असर पड़ता है? मेडिकल एक्सपर्ट्स के मुताबिक, ऐसा बिल्कुल नहीं है। एक जैसा ब्लड ग्रुप होना किसी भी तरह की स्वास्थ्य समस्या का कारण नहीं बनता। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार, 'पति-पत्नी का ब्लड ग्रुप एक जैसा होना किसी भी तरह से नुकसानदायक नहीं है। बल्कि यह एक सामान्य जेनेटिक घटना है जो माता-पिता से बच्चों में विरासत में आती है। समस्या केवल तब होती है जब Rh फैक्टर में अंतर हो।'
एक जैसा ब्लड ग्रुप होने पर कोई नुकसान नहीं
अगर पति-पत्नी दोनों का ब्लड ग्रुप एक ही है, जैसे कि दोनों A+, B+, या O+, तो इसमें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती। इस स्थिति में बच्चे का ब्लड ग्रुप भी आमतौर पर माता-पिता जैसा ही होता है। उदाहरण के लिए -
- अगर मां और पिता दोनों का ब्लड ग्रुप A+ है, तो बच्चे का ब्लड ग्रुप भी A+ होने की संभावना रहती है।
- इस स्थिति में गर्भावस्था या बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ता।
एक जैसा ब्लड ग्रुप होना कभी-कभी फायदे का सौदा भी साबित होता है क्योंकि ऐसे कपल्स एक-दूसरे को जरूरत पड़ने पर ब्लड डोनेट कर सकते हैं।
असली परेशानी Rh फैक्टर से जुड़ी होती है
ब्लड ग्रुप के अलावा, एक और महत्वपूर्ण तत्व होता है जिसे Rh फैक्टर कहा जाता है। यह एक प्रकार का प्रोटीन है जो हमारे ब्लड सेल्स पर पाया जाता है।
- अगर किसी के खून में यह प्रोटीन मौजूद है, तो उसे Rh पॉजिटिव (Rh+) कहा जाता है।
- और अगर यह प्रोटीन नहीं है, तो उसे Rh नेगेटिव (Rh–) कहा जाता है।
अब दिक्कत तब होती है जब महिला Rh– (नेगेटिव) हो और उसका पति Rh+ (पॉजिटिव)।
Rh नेगेटिव महिला और Rh पॉजिटिव पुरुष के मामले में क्या होता है?
ऐसे मामलों में गर्भावस्था के दौरान कुछ जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। दरअसल, अगर Rh– मां के गर्भ में Rh+ बच्चे का विकास होता है (क्योंकि बच्चे में पिता का Rh फैक्टर आ जाता है), तो मां का शरीर बच्चे के खून की कोशिकाओं को 'विदेशी' मानकर उसके खिलाफ Rh एंटीबॉडीज बनाना शुरू कर देता है।
पहली गर्भावस्था के दौरान आमतौर पर कोई बड़ी समस्या नहीं होती, लेकिन दूसरी या अगली प्रेग्नेंसी में यही एंटीबॉडीज बच्चे की रेड ब्लड सेल्स पर हमला कर सकती हैं, जिससे बच्चे को एनिमिया (खून की कमी), जॉन्डिस या गंभीर मामलों में ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत जैसी दिक्कतें हो सकती हैं।
मेडिकल साइंस में इस स्थिति से निपटने का उपाय भी है
अगर किसी महिला का ब्लड ग्रुप Rh– है, तो डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान विशेष इंजेक्शन Rh Immunoglobulin (RhIg) देते हैं। यह इंजेक्शन शरीर में Rh एंटीबॉडी बनने से रोकता है, जिससे अगली प्रेग्नेंसी में बच्चे को किसी भी तरह का नुकसान नहीं होता। इसलिए, ऐसे कपल्स को शादी से पहले या गर्भधारण से पहले ब्लड ग्रुप और Rh फैक्टर की जांच जरूर करवानी चाहिए।
बच्चे का ब्लड ग्रुप कैसे तय होता है?
बच्चे का ब्लड ग्रुप पूरी तरह माता-पिता के जेनेटिक कॉम्बिनेशन (Genetic Combination) पर निर्भर करता है। यह कुछ सामान्य उदाहरणों से समझा जा सकता है:
- अगर माता पिता दोनों का ब्लड ग्रुप O हो तो बच्चे का भी O होने की संभावना होती है।
- अगर माता पिता दोनों का ब्लड ग्रुप A हो तो बच्चे का A या O होने की संभावना होती है।
- अगर माता पिता दोनों का ब्लड ग्रुप B हो तो बच्चे का B या O होने की संभावना होती है।
- अगर पिता का A और मां का B हो तो बच्चे का A, B, AB या O होने की संभावना होती है।
- अगर पिता का B और मां का O हो तो बच्चे का B या O होने की संभावना होती है।
- अगर पिता का A और मां का O हो तो बच्चे का A या O होने की संभावना होती है।
इसलिए ब्लड ग्रुप का मेल बच्चे की सेहत को सीधे प्रभावित नहीं करता, बल्कि Rh फैक्टर की संगति ज्यादा मायने रखती है।