CM बने रहने के लिए अलग पार्टी बना सकते हैं कमलनाथ!

Edited By Anil dev,Updated: 24 Jun, 2019 11:59 AM

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कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व जिस तरह बचकाना व्यवहार कर रहा है और भाजपा शीर्ष नेतृत्व जिस तरह से आक्रामक है उसके चलते मध्य प्रदेश कांग्रेस में हताशा है। कांग्रेस के नेताओं को डर है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व जब संकेत करेगा म.प्र. में कमलनाथ की सरकार गिर जाएगी,...

नई दिल्ली: कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व जिस तरह बचकाना व्यवहार कर रहा है और भाजपा शीर्ष नेतृत्व जिस तरह से आक्रामक है उसके चलते मध्य प्रदेश कांग्रेस में हताशा है। कांग्रेस के नेताओं को डर है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व जब संकेत करेगा म.प्र. में कमलनाथ की सरकार गिर जाएगी, भाजपा की सरकार बन जाएगी। इधर कमलनाथ के व्यवहार के कारण अंदर ही अंदर उनके विरुद्ध कांग्रेसी नेताओं व विधायकों की नाराजगी बढ़ती जा रही है। 

कमलनाथ गुट के विधायकों की संख्या है लगभग 30
सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ जिस तरह से अपने सांसद बेटे को साथ लेकर दिल्ली प्रधानमंत्री से मिलने-मिलवाने गए।  अकेले उनके (कमलनाथ) गुट के विधायकों की संख्या लगभग 30 है। इतने को लेकर अलग होने पर दल-बदल कानून लागू होने से विधानसभा सदस्यता खत्म हो जाएगी। ऐसे में कमलनाथ यदि भाजपा से सैटिंग करके अपने विधायकों का इस्तीफा दिलवा देते हैं और खुद भी इस्तीफा देकर अलग पार्टी बना लेते हैं और भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बन जाते हैं, हरियाणा या झारखंड विधानसभा चुनाव के साथ राज्य के 30 विधानसभा सीटों का उपचुनाव करा लेते हैं, तब तो कांग्रेस को बहुत नुक्सान होगा लेकिन पेंच यह है कि भाजपा द्वारा उनको समर्थन देकर मुख्यमंत्री बनाने में शिवराज गुट व संघ नाराज हो सकता है।

संसद में इस हफ्ते तीन तलाक पर होगी चर्चा
संसद के चालू बजट सत्र के दौरान इस सप्ताह जम्मू-कश्मीर से संबंधित 2 महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर चर्चा होगी जिनमें से एक जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति द्वारा लगाए गए अनुच्छेद 356 को जारी रखने का प्रस्ताव है जबकि दूसरा जम्मू-कश्मीर आरक्षण संशोधन विधेयक 2019 है। संसद के दोनों सदनों में तीन तलाक पर रोक का प्रावधान करने वाले मुस्लिम महिला विवाद अधिकार संरक्षण विधेयक पर चर्चा होगी जो संसद से पारित होने के बाद अध्यादेश का स्थान लेगा। 17वीं लोकसभा के गठन के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का यह पहला विधेयक है। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में भारी हंगामे के बीच यह विधेयक पेश किया था। सरकार के पिछले कार्यकाल में भी तीन तलाक पर विधेयक लाया गया था लेकिन लोकसभा से पारित हो जाने के बाद यह राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था।  

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