Edited By Anu Malhotra,Updated: 13 Nov, 2025 02:21 PM

कभी-कभी एक छोटी सी बैंकिंग गलती किसी आम ग्राहक के लिए बरसों का संघर्ष बन जाती है। ऐसा ही हुआ राजधानी की एक महिला के साथ, जिसने अपने ही बैंक से न्याय पाने में पूरे 17 साल लगा दिए। दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने हाल ही में भारतीय स्टेट...
नई दिल्ली: कभी-कभी एक छोटी सी बैंकिंग गलती किसी आम ग्राहक के लिए बरसों का संघर्ष बन जाती है। ऐसा ही हुआ राजधानी की एक महिला के साथ, जिसने अपने ही बैंक से न्याय पाने में पूरे 17 साल लगा दिए। दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक (SBI) को आदेश दिया है कि वह उपभोक्ता को ₹1.7 लाख का मुआवज़ा दे — क्योंकि बैंक ने उसके खाते में पर्याप्त रकम होने के बावजूद हर महीने ईसीएस बाउंस शुल्क वसूला था। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने उस महिला के खाते से महज़ ₹4,400 बतौर “ECS बाउंस चार्ज” गलत तरीके से वसूले थे। अब अदालत ने उसी बैंक को ₹1.7 लाख लौटाने का आदेश दिया है।
कैसे शुरू हुआ विवाद
महिला ने वर्ष 2008 में HDFC बैंक से कार लोन लिया था। उन्होंने यह सुविधा दी थी कि उनकी हर महीने की EMI सीधे उनके SBI खाते से कट जाए। सबकुछ ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक कई महीनों तक उनकी EMI “बाउंस” बताई गई। नतीजतन, SBI ने हर बार ₹400 बतौर पेनल्टी काट लिए — जबकि उनके खाते में हर बार पर्याप्त राशि मौजूद थी।
बैंक की दलील और उपभोक्ता का संघर्ष
महिला ने बैंक को खाता विवरण देकर यह साबित करने की कोशिश की कि गलती उनकी नहीं थी, फिर भी बैंक ने कोई सुधार नहीं किया। आखिरकार उन्होंने 2010 में जिला उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई। वहां से राहत न मिलने पर मामला राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग (NCDRC) पहुंचा, जहाँ से इसे दोबारा दिल्ली राज्य आयोग को भेजा गया। लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, आखिर 9 अक्टूबर 2025 को महिला के पक्ष में फैसला आया।
SBI की ओर से यह तर्क दिया गया कि ECSए मैंडेट में दर्ज जानकारी गलत थी, इसलिए भुगतान असफल रहा। परंतु महिला की ओर से यह सवाल उठाया गया कि अगर मैंडेट में गलती थी, तो उसी विवरण के आधार पर अन्य महीनों की किस्तें कैसे सफल रहीं? आयोग ने इस तर्क को सही माना और बैंक की दलील को खारिज कर दिया।
आयोग की टिप्पणी
दिल्ली राज्य उपभोक्ता आयोग ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता पिछले कई वर्षों से केवल बैंक की लापरवाही के कारण कानूनी लड़ाई झेल रही है। 2008 में लिए गए ऋण के बाद से वह 2010 में मामला दर्ज कर चुकी थीं, और इतने वर्षों तक उन्हें परेशानी झेलनी पड़ी। आयोग ने इसे “सेवा में स्पष्ट कमी” करार देते हुए एसबीआई को न केवल शुल्क लौटाने बल्कि मानसिक उत्पीड़न और कानूनी खर्च के रूप में कुल ₹1.7 लाख अदा करने का निर्देश दिया।