बाजार में आखिर कहां से आएगी तेजी? ₹83,000 करोड़ विदेशी निवेशक ने निकाला, रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा

Edited By Updated: 21 Jul, 2025 10:54 AM

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भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों (FPI) का भरोसा एक बार फिर कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। 2025 के जुलाई महीने में एफपीआई ने ₹5,524 करोड़ की बिकवाली कर डाली है। इससे पूरे साल की निकासी का आंकड़ा ₹83,245 करोड़ तक पहुंच चुका है। बाजार में लगातार बनी...

नेशनल डेस्क: भारतीय शेयर बाजार में विदेशी निवेशकों (FPI) का भरोसा एक बार फिर कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। 2025 के जुलाई महीने में एफपीआई ने ₹5,524 करोड़ की बिकवाली कर डाली है। इससे पूरे साल की निकासी का आंकड़ा ₹83,245 करोड़ तक पहुंच चुका है। बाजार में लगातार बनी अस्थिरता और वैश्विक तनावों के बीच यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है।

तीन महीने की खरीद के बाद फिर बिकवाली की राह पर एफपीआई

अप्रैल, मई और जून 2025 के महीनों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने भारतीय शेयर बाजार में वापसी के संकेत दिए थे। अप्रैल में उन्होंने ₹4,223 करोड़, मई में ₹19,860 करोड़ और जून में ₹14,590 करोड़ का शुद्ध निवेश किया। इन तीन महीनों के सकारात्मक प्रवाह से लगने लगा था कि विदेशी निवेशक भारत के इक्विटी बाजार में दोबारा भरोसा जता रहे हैं। हालांकि जुलाई की शुरुआत से ही परिस्थितियां बदलती नजर आईं। 1 से 18 जुलाई के बीच एफपीआई ने ₹5,524 करोड़ की शुद्ध बिकवाली की, जिससे यह स्पष्ट होता है कि बाजार में फैली अनिश्चितता और बाहरी दबावों ने एक बार फिर उनके विश्वास को डगमगा दिया है।

अब तक 2025 में कितना पैसा निकाला गया?

अगर पूरे साल की बात करें तो आंकड़े चौंकाने वाले हैं:

महीना एफपीआई की निकासी/निवेश
जनवरी ₹78,027 करोड़ (निकासी)
फरवरी ₹34,574 करोड़ (निकासी)
मार्च ₹3,973 करोड़ (निकासी)
अप्रैल ₹4,223 करोड़ (निवेश)
मई ₹19,860 करोड़ (निवेश)
जून ₹14,590 करोड़ (निवेश)
जुलाई (अब तक) ₹5,524 करोड़ (निकासी)

इस तरह 2025 में अब तक कुल ₹83,245 करोड़ की शुद्ध निकासी हो चुकी है।

बाजार से भागने के पीछे की वजहें

मॉर्निंगस्टार इंडिया के एसोसिएट डायरेक्टर हिमांशु श्रीवास्तव का मानना है कि एफपीआई की बिकवाली के पीछे दो प्रमुख कारण हैं। पहला, भारत और अमेरिका के बीच बढ़ता व्यापारिक तनाव और दूसरा, घरेलू कंपनियों के तिमाही नतीजों में स्पष्टता की कमी। इन दोनों कारणों ने विदेशी निवेशकों के बीच अनिश्चितता को बढ़ा दिया है, जिससे वे बाजार में सतर्क रुख अपना रहे हैं। जब तक व्यापारिक रिश्तों में स्थिरता नहीं आती और कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन में मजबूती नजर नहीं आती, तब तक एफपीआई का रुझान कमजोर ही बना रह सकता है।

ग्लोबल संकेत भी नहीं दे रहे राहत

एंजेल वन के विश्लेषक वकार जावेद खान ने बताया कि विदेशी निवेशकों की सतर्कता के पीछे कई वैश्विक संकेत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनमें डॉलर की मजबूती, फेडरल रिजर्व की नीतियों को लेकर बनी अनिश्चितता और BRICS देशों को लेकर अमेरिका की रणनीतियां शामिल हैं। ये सभी कारक एफपीआई को रक्षात्मक रणनीति अपनाने पर मजबूर कर रहे हैं, जिससे वे जोखिम कम करने की कोशिश कर रहे हैं और भारतीय बाजार में निवेश को लेकर सावधानी बरत रहे हैं।

इक्विटी में बिकवाली पर बॉन्ड सेगमेंट में थोड़ी रुचि

जहां एक तरफ एफपीआई ने शेयर बाजार से बड़ी मात्रा में पैसा निकाला है, वहीं उन्होंने बॉन्ड मार्केट में हल्की-फुल्की दिलचस्पी भी दिखाई है। जुलाई के पहले 18 दिनों में एफपीआई ने सामान्य सीमा के तहत ₹1,850 करोड़ और स्वैच्छिक प्रतिधारण मार्ग (VRR) के तहत ₹1,050 करोड़ का निवेश किया है। इसका यह मतलब है कि विदेशी निवेशक पूरी तरह से भारत से बाहर नहीं जा रहे हैं, बल्कि वे फिलहाल अपने निवेश पोर्टफोलियो में संतुलन बनाए रखने और जोखिम को कम करने की कोशिश कर रहे हैं।

 

क्या बाजार में फिर से आ सकती है तेजी?

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव सुलझ जाते हैं, कंपनियों के तिमाही नतीजे बेहतर आते हैं और वैश्विक आर्थिक संकेत स्थिर होते हैं, तो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारतीय बाजार में फिर से सक्रिय हो सकते हैं। हालांकि, तब तक बाजार में उतार-चढ़ाव जारी रहने की संभावना बनी रहेगी, क्योंकि निवेशकों की रणनीतियां वैश्विक और घरेलू परिस्थितियों के अनुसार बदलती रहेंगी।

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