Nicobar Project: क्या है 72,000 करोड़ का ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट जिसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी में मचा है घमासान

Edited By Updated: 10 Sep, 2025 08:12 PM

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नीति आयोग के ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर सियासी विवाद गहराया है। सोनिया गांधी ने इसे पर्यावरण और आदिवासियों के लिए खतरा बताया, जबकि बीजेपी ने इसे रणनीतिक दृष्टिकोण से जरूरी बताया। 72,000 करोड़ की इस परियोजना में पोर्ट, एयरपोर्ट, टाउनशिप और सौर...

नेशनल डेस्क : नीति आयोग द्वारा 2021 में प्रस्तावित ग्रेट निकोबार आइलैंड डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को लेकर सियासी घमासान तेज हो गया है। कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने इस परियोजना को "पर्यावरणीय और आदिवासी आपदा" करार देते हुए केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। दूसरी ओर, बीजेपी प्रवक्ता अनिल के. एंटनी ने पलटवार करते हुए कांग्रेस पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को कमजोर करने का आरोप लगाया है। 72,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली यह महत्वाकांक्षी परियोजना निकोबार द्वीप समूह के दक्षिणी छोर पर केंद्रित है और इसे 30 साल में पूरा करने की समयसीमा तय की गई है।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट: भारत का रणनीतिक दांव
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट का उद्देश्य भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में रणनीतिक और आर्थिक रूप से मजबूत बनाना है। इस परियोजना के तहत गैलेथिया बे में एक अंतरराष्ट्रीय कंटेनर ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक आधुनिक टाउनशिप और एक सौर ऊर्जा संयंत्र विकसित किया जाएगा। टाउनशिप में 3 से 4 लाख लोगों के लिए आवासीय, वाणिज्यिक और संस्थागत क्षेत्र होंगे, जो स्मार्ट सिटी जैसी सुविधाओं से लैस होंगे। अंडमान और निकोबार द्वीप एकीकृत विकास निगम लिमिटेड (ANIIDCO) को इस परियोजना की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

परियोजना का लक्ष्य ग्रेट निकोबार को वैश्विक व्यापार, परिवहन और पर्यटन का केंद्र बनाना है। इसकी रणनीतिक स्थिति - इंडोनेशिया से 150 मील और मलक्का स्ट्रेट के पश्चिमी प्रवेश द्वार के पास - इसे भारत की नौसैनिक क्षमताओं और क्षेत्रीय प्रभाव के लिए एक महत्वपूर्ण संपत्ति बनाती है।

प्रोजेक्ट की प्रगति: पर्यावरणीय मंजूरी से लेकर सौर ऊर्जा तक
ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट चरणबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है। नवंबर 2022 में इसे पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त हो चुकी है, और मॉनिटरिंग के लिए 80 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया है। सितंबर 2024 में गैलेथिया बे को प्रमुख बंदरगाह घोषित किया गया, और इसके संचालन के लिए एक दर्जन से अधिक कंपनियों ने रुचि दिखाई है। अप्रैल 2025 में एनटीपीसी ने सौर ऊर्जा परियोजना के लिए बोली आमंत्रित की थी। टाउनशिप विकास के लिए पेड़ों की गिनती और कटाई का काम भी जारी है।

सोनिया गांधी का बयान "आदिवासियों और पर्यावरण के लिए खतरा"
कांग्रेस ने इस परियोजना के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों को लेकर कड़ा विरोध जताया है। 8 सितंबर 2025 को 'द हिंदू' में प्रकाशित अपने लेख में, सोनिया गांधी ने इसे "योजनाबद्ध कुप्रयास" और "पर्यावरणीय आपदा" करार दिया। उन्होंने कहा कि यह परियोजना शोम्पेन और निकोबारी आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा है, जो 2004 के सुनामी के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन पर लौटने की उम्मीद कर रहे थे। इसके अलावा, परियोजना से 8.5 लाख से 58 लाख पेड़ों की कटाई और जैव-विविधता को नुकसान की आशंका है। सोनिया गांधी ने इसे संवैधानिक और पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की। राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी इस मुद्दे पर केंद्र सरकार की आलोचना की है।

बीजेपी का पलटवार: "कांग्रेस रणनीतिक हितों को कमजोर कर रही"
बीजेपी प्रवक्ता अनिल के. एंटनी ने कांग्रेस के विरोध को "राजनीतिक नौटंकी" करार दिया और कहा कि यह परियोजना भारत की रणनीतिक और आर्थिक प्रगति के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने तर्क दिया कि ग्रेट निकोबार की स्थिति मलक्का स्ट्रेट के पास भारत को वैश्विक समुद्री व्यापार में एक मजबूत स्थिति प्रदान करती है। एंटनी ने कांग्रेस पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को कमजोर करने और राष्ट्रीय विकास को बाधित करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि पर्यावरणीय मंजूरी और चरणबद्ध विकास के साथ यह परियोजना पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन बनाए रखेगी।

प्रोजेक्ट के फायदे और चुनौतियां

फायदे:

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति मजबूत होगी।

वैश्विक व्यापार और पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।

सौर ऊर्जा और स्मार्ट सिटी जैसी टिकाऊ पहलें।

स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन।

चुनौतियां:

शोम्पेन और निकोबारी आदिवासियों का विस्थापन।

जैव-विविधता और वर्षावनों को नुकसान।

प्राकृतिक आपदाओं की संवेदनशीलता।

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