Edited By Shubham Anand,Updated: 08 Dec, 2025 02:08 PM
वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर संसद में बहस तेज हो गई है। प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में इसके इतिहास और महत्व पर बात की तथा कांग्रेस पर गीत के हिस्से हटाने का आरोप लगाया। यूपी सरकार ने इसे स्कूलों में अनिवार्य करने का ऐलान किया, जिस पर विपक्ष और...
नेशनल डेस्क : ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर विशेष चर्चा की शुरुआत की। इसके साथ ही राज्यसभा में भी मंगलवार से इस विषय पर बहस की संभावना जताई जा रही है।
पीएम मोदी ने कहा कि “वंदे मातरम के पचास वर्ष पूरे होने पर देश गुलामी की जंजीरों में कैद था और जब 100 वर्ष हुए, तब देश आपातकाल के दौर से गुजर रहा था। उस समय संविधान का गला घोंटा गया था। अब 150 वर्ष पूरे होने पर यह गौरवपूर्ण अध्याय पुनःस्थापित करने का अवसर है।” उन्होंने बताया कि यह गीत ऐसे समय में लिखा गया जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद अंग्रेज सरकार बेहद कठोर रवैया अपनाए हुए थी और भारतीयों पर तरह-तरह के अत्याचार हो रहे थे।
सत्ता पक्ष बनाम विपक्ष: पुराना विवाद फिर गर्माया
वंदे मातरम पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लंबे समय से खिंचा विवाद एक बार फिर उभर आया है। भाजपा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया है कि उसने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गीत के महत्वपूर्ण हिस्से को हटाया था, जबकि कांग्रेस ने इन आरोपों को पूरी तरह निराधार बताया। भाजपा के कई नेताओं ने इसे शैक्षणिक संस्थानों में अनिवार्य रूप से गाने की मांग की है, वहीं समाजवादी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने इसके जबर्दस्ती थोपे जाने पर आपत्ति जताई है।
'वंदे मातरम' का इतिहास
बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में रचा गया यह गीत बांग्ला और संस्कृत मिश्रित भाषा में था। बाद में उन्होंने इसे अपनी प्रसिद्ध कृति ‘आनंदमठ’ (1885) में शामिल किया। रबीन्द्रनाथ टैगोर ने इसकी धुन तैयार की, जिसे देशभर में विशेष पहचान मिली।
गीत में जिन प्राकृतिक सौंदर्य-स्थलों और प्रतीकों का उल्लेख है, वे सभी बंगाल से जुड़े हैं। बंकिम ने इसमें लगभग सात करोड़ जनसंख्या का उल्लेख किया था, जो उस समय के बंगाल प्रांत (ओडिशा-बिहार सहित) की कुल आबादी थी। बाद में अरबिंदो घोष ने इसका अंग्रेज़ी अनुवाद करते समय इसे “बंगाल का राष्ट्रगीत” कहा।
1905 में बंगाल विभाजन के समय यह गीत आंदोलनकारियों के लिए अंग्रेज़ शासन के विरुद्ध एक शक्तिशाली नारा बन गया। हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के लोगों ने इसे स्वर दिया और यह पूरे भारत में स्वतंत्रता आंदोलन की आवाज़ बनकर फैल गया। बारीसाल अधिवेशन में अंग्रेज़ सेना द्वारा गीत गाने वालों पर हुए हमले ने इसे और अधिक लोकप्रिय बना दिया। भगत सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफ़ाक़ुल्लाह खां, सुखदेव और राजगुरु जैसे क्रांतिकारियों ने भी इसे अपनी आवाज़ दी।
क्यों उठा था विवाद?
कांग्रेस ने 1937 में गांधी, नेहरू, सुभाष चंद्र बोस और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की समिति गठित की और गीत पर आपत्तियाँ आमंत्रित कीं। प्रमुख आपत्ति यह थी कि गीत के कुछ हिस्से धार्मिक संदर्भ प्रस्तुत करते हैं, जो सभी समुदायों के लिए समान रूप से स्वीकार्य नहीं थे। केवल मुसलमान ही नहीं, बल्कि सिख, ईसाई, जैन और बौद्ध संगठनों ने भी इस पर सवाल उठाए।
समिति ने समाधान के तौर पर यह तय किया कि गीत के केवल पहले दो अंतरे ही अपनाए जाएंगे, जिनमें धार्मिक तत्व नहीं हैं। हालांकि, आरएसएस और हिंदू महासभा ने पूरा गीत अपनाने की मांग की जबकि मुस्लिम लीग ने पूरे गीत का विरोध किया।
1937 और 2024: फिर हो रहा विवाद
प्रधानमंत्री मोदी ने 7 नवंबर को कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए आरोप लगाया कि कांग्रेस ने 1937 के फ़ैज़ाबाद अधिवेशन से ठीक पहले ‘वंदे मातरम’ के महत्वपूर्ण पदों को हटा दिया। उन्होंने कहा कि यह एक “अन्याय” था जिसने “विभाजन के बीज बोए"।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने दावा किया कि नेहरू जी इस गीत के प्रति सहज नहीं थे। कांग्रेस के जयराम नरेश ने इसका जवाब रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1937 में नेहरू को लिखे पत्र का हवाला देकर दिया, जिसमें टैगोर ने स्वयं गीत के पहले दो अंतरे अपनाने का सुझाव दिया था।
योगी सरकार का निर्णय और विरोध
10 नवंबर को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की कि राज्य के स्कूल-कॉलेजों में ‘वंदे मातरम’ को गाना अनिवार्य किया जाएगा। उन्होंने कहा कि “जो वंदे मातरम का विरोध करता है, वह भारत माता का विरोध करता है।”
इस बयान के बाद समाजवादी पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया दी। अखिलेश यादव ने कहा कि मुख्यमंत्री साम्प्रदायिक मुद्दों को उठाते हैं और यह सवाल उठाया कि जब संविधान निर्माताओं ने इसे अनिवार्य नहीं किया, तो आज यह बहस क्यों खड़ी की जा रही है। सपा सांसद ज़ियाउर्रहमान बर्क और विधायक इक़बाल महमूद ने भी अनिवार्यता पर आपत्ति जताते हुए कहा कि संविधान ने सभी को स्वतंत्रता दी है और किसी को किसी गीत को गाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।