Edited By Mansa Devi,Updated: 08 Dec, 2025 05:23 PM
दिल्ली एनसीआर का प्रदूषण कोई नई समस्या नहीं है, बल्कि ये हर साल की समस्या बन गई है। जैसे ही सर्दियां दस्तक देती हैं ठीक वैसे ही दिल्ली- एनसीआर में प्रदूषण उछाल देखने को मिलता है। हर साल प्रदूषण के लिए हरियाणा- पंजाब में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली...
नेशनल डेस्क: दिल्ली एनसीआर का प्रदूषण कोई नई समस्या नहीं है, बल्कि ये हर साल की समस्या बन गई है। जैसे ही सर्दियां दस्तक देती हैं ठीक वैसे ही दिल्ली- एनसीआर में प्रदूषण उछाल देखने को मिलता है। हर साल प्रदूषण के लिए हरियाणा- पंजाब में किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली के धुंए को जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है, लेकिन वर्ष 2025 के आंकड़ों से पता चलता है कि पंजाब- हरियाणा में पराली जलाने के मामलों में 50 फीसदी से ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। 15 सितंबर से 30 नवंबर के बीच हरियाणा में सिर्फ़ 662 घटनाएं दर्ज की गईं, जो छह सालों में सबसे कम है। जबकि; पंजाब में 5,114 मामले रिपोर्ट हुए हैं। वहीं मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में पिछले छह सालों में पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं।
2025 में राज्यों में दर्ज पराली के मामले
राज्य मामले
मध्य प्रदेश 1,7067
उत्तर प्रदेश 7,290
पंजाब 5,114
राजस्थान 2,890
हरियाणा 662
श्रोत: आईसीएआर
इस साल पंजाब में रिकॉर्ड 50 प्रतिशत की गिरावट
खास बात ये है कि, हरियाणा में 2021 में आग लगने की सबसे ज्यादा 6,969 घटनाओं से 85% कम है। राज्य में 2020 में 4,185 मामले रिपोर्ट किए गए थे, जबकि 2022 में यह संख्या 3,647, 2023 में 2,296 और 2024 में 1,389 थी। इसी तरह मध्य प्रदेश में 2024 में 15,261 और 2022 में 13,947 थे। उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह का ट्रेंड रहा, 2023 में 3,737 केस, जो 2024 में 5,248 और 2025 में 7,290 हो गए। जबकि राजस्थान में भी 2023 में 1,769 से बढ़कर 2024 में 2,709 और अब संख्या 2,890 हो गई है। इसके उलट, पंजाब में 5,114 मामले रिपोर्ट हुए हैं, जो 2024 में 10,780 और 2023 में 36,614 से काफी कम है।
पराली के मामले घटे, प्रदूषण का AQI क्यों बढ़ा?
दिल्ली- एनसीआर में एयर क्वालिटी पर ज्यादातर असर उत्तर-पश्चिमी हवाओं की वजह से पड़ता है, जो पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पराली जलाने वाली जगहों से दूषित होकर दिल्ली आती है।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट में रिसर्च और एडवोकेसी की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुमिता रॉय चौधरी के अनुसार, जब दिल्ली-NCR की ओवरऑल एयर क्वालिटी में पराली जलाने का हिस्सा कम हुआ है, तब भी प्रदूषण का लेवल बहुत खराब से लेकर गंभीर लेवल तक बढ़ गया है, जो लोकल प्रदूषण सोर्स के ज़्यादा असर को दिखाता है। यह इलाका अब पराली के धुएं के पीछे नहीं छिप सकता।
पराली के मामलों में गिरावट दर्ज करने के बाद एक बात स्पष्ट है कि दिल्ली- एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण के लिए गाड़ियों से निकलने वाला धुआं, पॉवर प्लांट, निर्माण कार्य आदि के अलावा एक कारण ईंट भट्टों से निकलने वाला धुआं भी है। सीपीसीबी के मुताबिक दिल्ली- एनसीआर में 4608 ईंट के भट्टे हैं. हरियाणा में 1762 भट्टे, यूपी में 1024 और राजस्थान में 217 भट्टे समेत कुल 4608 ईंट भट्टों में से 3003 जिग-जैग तकनीक में परिवर्तित हो गए हैं। जिन ईंट भट्टों को जिग-जैग तकनीक में परिवर्तित नहीं किया गया है, उन्हें संचालन की अनुमति नहीं है। हालांकि, हकीकत ये है कि इनमें ज्यादातर भट्टों में ग्रेविटी सेटलिंग चैंबर नहीं होते हैं जो स्टैक से निकलने वाली गैस को साफ करते हैं। अगर भट्टे के मालिकों ने चैंबर लगाए भी हैं, तो वे या तो काम नहीं कर रहे हैं या खराब हो गए हैं।
ईंट भट्ठों से निकलते हैं ये खतरनाक रसायन
पराली जलाने के साथ साथ ईंट के भट्टों से निकलने वाले धुएं से भी काफी खतरनाक रसायन हवा में घुल कर आपके फेफड़ों तक पहुंचते हैं। भट्टों से निकलने वाले धुएं में पार्टिकुलेट मैटर, सल्फर डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, और नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसें न केवल हवा बल्कि सतही जल गुणवत्ता को भी प्रभावित करती हैं। कई अध्ययनों में यह भी सामने आया है कि ईंट भट्टों के आसपास सतही जल का पी.एच. स्तर 4.6 से 5.7 तक पाया गया है, जो धात्विक प्रदूषण खासकर आर्सेनिक से जुड़ा हुआ है। इन इलाकों में काम करने वाले मजदूरों में फेफड़ों की क्षमता कम होना और लगातार सांस संबंधी समस्याएं आम हैं, जो इस उद्योग के स्वास्थ्य प्रभावों को लेकर गंभीर सवाल उठाते हैं।
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) की नई रिपोर्ट कहती है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए ट्रैफिक और स्थानीय कारण जिम्मेदार हैं और इसमें पराली का योगदान न के बराबर है. रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के 22 प्रदूषण निगरानी स्टेशनों पर 59 में से 30 से ज्यादा दिन कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) की मात्रा तय सीमा से ऊपर रही. द्वारका सेक्टर-8 में सबसे ज्यादा 55 दिन, जहांगीरपुरी और दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ कैंपस में 50-50 दिन हवा में CO की मात्रा तय मानकों से ज्यादा रही. जबकि जहांगीरपुरी दिल्ली का सबसे प्रदूषित हॉटस्पॉट बनकर उभरा है, जहां सालाना PM2.5 औसत 119 µg/m³ दर्ज किया गया. इसके बाद बवाना-वजीरपुर 113 µg/m³ और आनंद विहार 111 µg/m³ का नंबर आता है. सीएसई की ताजा रिपोर्ट भी इस बात पर मुहर लगाती है कि दिल्ली- एनसीआर में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के लिए पराली जिम्मेदार नहीं है। बल्कि स्थानीय स्तर पर होने वाला प्रदूषण है।
साढ़े चार हजार प्रदूषणकारी उद्योगों की पहचान
प्रदूषण की एक बड़ी वजह प्रदूषणकारी उद्योग भी हैं। राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में जल शक्ति राज्य मंत्री राज भूषण चौधरी ने बताया कि, सीपीसीबी के अनुसार, जीपीआइ के तहत देशभर में कुल 4,493 उद्योग हैं। इनमें से 3,633 उद्योग चालू थे और 860 उद्योग अपने आप बंद हो गए थे। चालू उद्योगों में से, 3,031 उद्योगों के पर्यावरण मानकों का पालन करने की रपट मिली, जबकि 572 उद्योगों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए और पालन न करने वाली 29 इकाइयों को बंद करने के निर्देश दिए गए हैं।