भारत और नेपाल के बीच कमजोर होता जा रहा रोटी-बेटी का रिश्ता

Edited By Updated: 13 Feb, 2023 06:23 PM

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पहले कोरोना महामारी और अब  चीन की बढ़ती दखलअंदाजी के चलते भारत और नेपाल के बीच रिश्ते  पहले जैसे सामान्य व मधुर नहीं रहे।...

इंटरनेशनल डेस्कः   पहले कोरोना महामारी और अब  चीन की बढ़ती दखलअंदाजी के चलते भारत और नेपाल के बीच रिश्ते  पहले जैसे सामान्य व मधुर नहीं रहे। दोनों देशों के बीच बेटी-रोटी के संबंध अब कमजोर पड़ने लगे हैं। नेपाल और भारत के बीच सरहद जितनी कमज़ोर रही है, सरहद के दोनों ओर रहने वाले लोगों के रिश्ते उतने ही मज़बूत रहे हैं  लेकिन रिश्तो की जमीन अब कमजोर हो रही है।  भारत और नेपाल के बीच रिश्तों की गर्माहट के केंद्र रहे बीरगंज और रक्सौल की दूरी बढ़ रही है।  कहा जा रहा है कि संबंध बीरगंज और रक्सौल के बदले दिल्ली और काठमांडू में शिफ़्ट हो गया है। काम कर वापस जा रहे मज़दूरों की साइकिल में टंगे खाद के बोरे से बने थैले की जाँच सरहद पर सख़्ती से की जा रही है। सब्ज़ियों के थैले में सुरक्षा बल अफ़ीम खोज रहे हैं। साइकिल पर सवार दोनों तरफ़ के मज़दूर अपने ही इलाक़े में अनजान से लगने लगे हैं लेकिन इन सबके बावजूद प्रेम पनप ही जाता है। पाबंदियों से अरेंज मैरेज पर गहरा असर पड़ा है।

 

इतिहास  से जुड़ा है ये कनैक्शन
नेपाल और भारत के बीच रोटी-बेटी का संबंध जितना आम है, उतना ही खास।  कहा जाता है कि इसकी शुरुआत राजा जनक की बेटी सीता और अयोध्या के राजकुमार राम के विवाह से होती है। सीता और राम का विवाह भले इतिहास में कम दर्ज है लेकिन जनमानस में रचा बसा है। ग्वालियर राजघराने के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया की पत्नी लेखा दिव्येश्वरी यानी विजयाराजे सिंधिया हों या जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह की पत्नी यशोराज्य लक्ष्मी या फिर माधवराव सिंधिया की पत्नी, सबका नेपाल कनेक्शन है।  नेपाल और भारत के बीच दिलों का रिश्ता भगवान से लेकर राजा-महाराजा और फिर मज़दूर-किसान तक जाता है  लेकिन यह रिश्ता अब तेजी से कमजोर पड़ रहा है । 

 

SSB जवानों की सख्ती बन रही बाधक
नेपाल के मधेसी समुदाय और भारत में सीमा के नजदीक रहने वाले लोगों में एक-दूसरे के यहां शादी करना आम बात है। लेकिन कोरोना महामारी में दो साल सीमा बंद होने के बाद  नए संबंध को लेकर लोगों ने अब सोचना बंद कर दिया है। जब महामारी समाप्त हुई तो सीमा को फिर से खोल दिया गया ताकि दोनों देश के सीमावासियों का आवागमन रिश्तेदारों से मधुर मिलाप और रोजमर्रे की जरूरत पूरा हो सके। इसमें सीमा पर तैनात SSB जवानों की सख्ती बाधक बन रही है। आवागमन करने वालों के साथ इस तरह से सख्ती बरती जा रही है कि दोनों ओर के लोग अब आवागमन से कतराने लगे हैं।

 

सीमावर्ती क्षेत्रों का व्यापार हुआ ठप्प  
पहले की तरह सीमा पर आवाजाही में लोगों के साथ नरमी नहीं देखी जा रही है, जिससे सीमावर्ती क्षेत्र का व्यापार ठप्प होता जा रहा है। सीमावासियों का कहना है कि कस्टम चेक पोस्ट के कर्मियों द्वारा बिना लोगों को परेशान किए विधिवत जांच की जाती है मगर एसएसबी अपने सेवा, सुरक्षा व बंधुत्व भावना से भटक कर जांच इतनी सख्त कर दी है कि नेपाल के शांति प्रिय व अच्छे लोग दो-चार सौ रुपये का अपने रोजमर्रे की जरूरत का सामान भी नहीं खरीदते हैं जिससे छोटे-छोटे व्यवसाय भी प्रभावित हो रहे हैं। यदि आवागमन कर रहे दो पहिया वाहन में पीछे बैठा व्यक्ति अगर बिना हेलमेट है तो उसे उतारकर एसएसबी द्वारा पैदल सीमा पार भेजी जाती है, जिससे भारत-नेपाल के संबंधों में खटास पैदा हो रही है।

 

बिना किसी परमिट आने-जाने की अनुमति की मांग
किशनगंज जिले के गलगलिया-भद्रपुर सीमा पर नेपाल भंसार कार्यालय के आंकड़े के अनुसार पहले लगन के दिनों में भारतीय क्षेत्र से करीब 25 से 30 बारात नेपाल जाती थी। इतनी ही संख्या में बरात नेपाल से भारत भी आती थी, मगर अब यह घटती जा रही है।  इन हालात के चलते  सन 1960 के दशक में भारत-नेपाल समझौता के अनुसार नेपाली वाहन को बिना किसी परमिट के निशुल्क लोकल थाना क्षेत्र, रेलवे स्टेशन, बाजार आने जाने की अनुमति सहित अन्य मांग की गई है। हालांकि गलगलिया-भद्रपुर सीमा से पूर्व की भांति वाहनों का आवागमन दो दिन पूर्व ही सामान्य कर दिया गया है। इंडो-नेपाल मैत्री संघ, उद्योग संघ झापा नेपाल, नेपाल-इंडो मैत्री संघ के सदस्यों ने गलगलिया कस्टम के इस फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि इससे भारत-नेपाल मैत्री संघ के संबंध को बल मिलेगा। मगर एसएसबी के कार्य प्रणाली से अब भी सीमावासी नाखुश देखे जा रहे हैं।

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