पब्लिक टॉयलेट में दो पुरुषों को आपत्तिजनक हालत में पाया, कोर्ट ने 80 कोड़े मारने की सजा सुनाई

Edited By Updated: 27 Aug, 2025 02:26 PM

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इंडोनेशिया के आचे प्रांत से एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां दो पुरुषों को एक-दूसरे को चूमने की कीमत सार्वजनिक पिटाई के रूप में चुकानी पड़ी। शरिया कानूनों का उल्लंघन करने पर स्थानीय अदालत ने दोनों को 80-80 कोड़े मारने की सजा सुनाई, जिसमें...

नेशनल डेस्क:  इंडोनेशिया के आचे प्रांत से एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां दो पुरुषों को एक-दूसरे को चूमने की कीमत सार्वजनिक पिटाई के रूप में चुकानी पड़ी। शरिया कानूनों का उल्लंघन करने पर स्थानीय अदालत ने दोनों को 80-80 कोड़े मारने की सजा सुनाई, जिसमें से 76 कोड़े सार्वजनिक रूप से एक भीड़ के सामने लगाए गए।

घटना बांदा आचे की है, जहां एक भीड़ भरे पार्क में मंच पर यह सजा दी गई। धार्मिक पुलिस के मुताबिक, अप्रैल में इन दोनों को एक सार्वजनिक टॉयलेट में आपत्तिजनक हालत में पाया गया था। एक स्थानीय नागरिक की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने उन्हें हिरासत में लिया था। चार महीने की हिरासत को ध्यान में रखते हुए कोड़ों की संख्या कम की गई। लेकिन ये दो ही नहीं थे-- उसी दिन कुल दस लोगों को विभिन्न 'अपराधों' के लिए शारीरिक दंड दिया गया, जिनमें 3 महिलाएं और 5 पुरुष भी शामिल थे। उनके 'अपराधों' में विवाहेतर संबंध, विपरीत लिंग के साथ नजदीकी और ऑनलाइन जुए में लिप्त होना शामिल था।

कानून से डर या बर्बरता की तस्वीर?
शरिया पुलिस के अनुसार, इस तरह की सजा से लोगों में अनुशासन और धार्मिक चेतना बनी रहती है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी आलोचना होती रही है।

मानवाधिकार संगठनों की कड़ी प्रतिक्रिया
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस पूरी प्रक्रिया को अमानवीय और बर्बर बताते हुए इसकी कड़ी निंदा की है। संगठन के अनुसार, व्यक्तिगत पसंद और सहमति से जुड़े व्यवहारों को अपराध की श्रेणी में रखना किसी भी सभ्य समाज के मूल्यों के खिलाफ है। आचे प्रांत को 2001 में विशेष स्वायत्तता मिली थी, जिसके बाद वहां शरिया कानून को प्रभावी ढंग से लागू किया गया। तब से अब तक शराब पीना, जुआ खेलना, और 'अनैतिक आचरण' जैसे मामलों में सार्वजनिक पिटाई आम होती जा रही है।

प्रशासन का रुख और जनता की प्रतिक्रिया
स्थानीय प्रशासन का दावा है कि इस तरह के कदम से समाज में नैतिकता और धार्मिकता बनी रहती है, वहीं दूसरी ओर मानवाधिकार कार्यकर्ता इसे मध्यकालीन बर्बरता करार देते हैं।
 

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