‘पूरी दुनिया नहीं जानती अंग्रेज़ी’, जब पत्रकार को महात्मा गांधी ने दिया था दो- टूक जवाब; जानिए कैसे उन्होंने हिंदी को बनाया राष्ट्र- भाषा

Edited By Updated: 02 Oct, 2025 02:40 PM

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आज यानि की 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर लोगों द्वारा उन्हें याद किया जा रहा है और श्रध्दांजलि अर्पित की जा रही है। महात्मा गांधी से ज़ुड़ी ऐसी कई बाते हैं जो आज भी याद की जाती है। उनके कथन आज भी लोगों के जहन में बसे हुए हैं। ऐसा बताया जाता...

नेशनल डेस्क: आज यानि की 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर लोगों द्वारा उन्हें याद किया जा रहा है और श्रध्दांजलि अर्पित की जा रही है। महात्मा गांधी से ज़ुड़ी ऐसी कई बाते हैं जो आज भी याद की जाती है। उनके कथन आज भी लोगों के जहन में बसे हुए हैं। ऐसा बताया जाता है कि गांधी जी को राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति गहरा लगाव था। वे कहते थे कि "राष्ट्रीय व्यवहार में हिंदी का प्रयोग देश की प्रगति के लिए आवश्यक है।" वह हिंदी को जन-जन की भाषा मानते थे और इसे राष्ट्र की राष्ट्रभाषा बनाने की बात कहते थे।

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हिंदी और हिंदुस्तानी की शक्ति

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गांधीजी की सबसे बड़ी ताकत उनकी सादगी और विचारों में थी और इस शक्ति को लोगों तक पहुँचाने का काम हिंदी और हिंदुस्तानी भाषा ने किया। साल 1931 में लंदन की कड़कड़ाती ठंड में एक 62 वर्षीय व्यक्ति, जो अपने हाथों से काते गए खादी के वस्त्र पहने था, मामूली चप्पल पहनकर 'भारत के संवैधानिक सुधारों' पर होने वाली कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लेने जा रहा था। वह और कोई नहीं ब्लकि महात्मा गांधी थे। गांधीजी को यह अदम्य साहस और ऊर्जा हिंदी और हिंदुस्तानी भाषा से मिली, जिसने उन्हें 20वीं सदी की आंधी बना दिया।

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जब गांधीजी ने हिंदी सीखी

मोहनदास करमचंद गांधी 1915 में दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उन्होंने अपना पहला आंदोलन बिहार के चंपारण से शुरू करने का फैसला किया। यहाँ उनके सामने सबसे बड़ी समस्या भाषा की थी। एक गुजराती व्यक्ति जो बैरिस्टरी की पढ़ाई करके आया था, उसे गुजराती और अंग्रेजी तो आती थी, लेकिन हिंदी उनकी राह का रोड़ा बन रही थी। गांधीजी ने अपनी लगन और बिहार के स्थानीय सहयोगियों की मदद से हिंदी सीखी।

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'पूरी दुनिया नहीं जानती अंग्रेजी'

पूरे भारत का भ्रमण करने के बाद गांधीजी इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जो पूरे देश को आपस में जोड़ सकती है। यही कारण था कि उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बात की और इसे पूरे राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा। एक बार आज़ादी के बाद एक विदेशी पत्रकार ने जब उनसे अंग्रेजी में दुनिया को संदेश देने के लिए कहा, तो गांधीजी ने साफ कहा कि पूरी दुनिया अंग्रेजी नहीं जानती।

गांधीजी के हिंदुस्तानी का अर्थ

गांधीजी के संबंध हिंदी लेखकों और कवियों से भी बहुत अच्छे थे। कवि प्रेमचंद ने भी स्वीकार किया था कि हिंदी और राष्ट्रीय आंदोलन से उनका जुड़ाव गांधीजी के कारण ही हुआ। गांधीजी जिस हिंदी को लिखते और बोलते थे, उसे वह हिंदी नहीं, बल्कि हिंदुस्तानी कहते थे। यह उस समय की संस्कृत-प्रधान हिंदी से अलग थी। उनकी हिंदुस्तानी से आशय हिंदी और उर्दू के मेल से बनी एक सरल और सहज भाषा से था। महात्मा गांधी ने इसी हिंदुस्तानी को संपर्क भाषा के रूप में इस्तेमाल किया और जीवन भर इसे अपनाया।

हिंदी में निकाले अखबार और लिखे पत्र

गांधीजी ने हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती भाषाओं में कई समाचार पत्र निकाले। उन्होंने हिंदी में दो प्रमुख समाचार पत्र नवजीवन और हरिजन सेवक निकाले थे। गांधीजी अपने अधिकांश पत्रों का उत्तर हिंदी में ही देना पसंद करते थे। उनके हिंदी अखबारों की सदस्यता एक लाख से भी अधिक थी। गांधीजी खुद दोनों अखबारों का संपादन करते थे। उन्होंने अपने जीवन में 35 हज़ार से ज़्यादा पत्र लिखे, जिनमें से अधिकांश के उत्तर वे हिंदी में ही देते थे।

 

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