NARI Index 2025: भारत के ये शहर महिलाओं के लिए खतरनाक... और ये शहर है बिल्कुल सेफ, देखें लिस्ट

Edited By Updated: 29 Aug, 2025 05:20 PM

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NARI Index 2025 ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है। जहां कुछ शहर महिला सुरक्षा के सेफ माने जा सकते हैं, वहीं कई बड़े महानगर आज भी महिलाओं के लिए डर का साया बन चुके हैं। रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के कुछ शहर ऐसे हैं,...

नेशनल डेस्क: NARI Index 2025 ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक चौंकाने वाली तस्वीर पेश की है। जहां कुछ शहर महिला सुरक्षा के सेफ माने जा सकते हैं, वहीं कई बड़े महानगर आज भी महिलाओं के लिए डर का साया बन चुके हैं। रिपोर्ट में सामने आया है कि देश के कुछ शहर ऐसे हैं, जहां महिलाएं रात तो दूर, दिन में भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करतीं। पब्लिक ट्रांसपोर्ट से लेकर अपने ही मोहल्ले तक - यहां की महिलाए हर जगह डर महसूस करती है।

टाॅप शहर कौन कौन?
नारी इंडेक्स में कोहिमा, विशाखापट्टनम, भुवनेश्वर, आइजोल, गंगटोक, ईटानगर और मुंबई जैसी जगहों को सर्वश्रेष्ठ शहरों में शामिल किया गया है। इनके बेहतर रैंक का श्रेय सशक्त पुलिस तंत्र, सशक्त शहर नियोजन, लैंगिक समानता की सोच और नागरिकों की सक्रिय भागीदारी को जाता है।

असुरक्षा वाले शहर
दूसरी ओर, पटना, जयपुर, फरीदाबाद, दिल्ली, कोलकाता, श्रीनगर और रांची ऐसे नाम हैं जो महिलाओं की सुरक्षा के मामले में सबसे नीचे आए हैं। इन शहरों में पितृसमाज की सोच, कमजोर कानून व्यवस्था और आधारभूत सुविधाओं की कमी जैसी चुनौतियों ने उन्हें कमजोर स्थिति में रखा।

महिलाओं की आत्मसंतुष्टि कैसी है?
रिपोर्ट में यह खबर तकलीफदेह है कि सर्वे में शामिल 10 में से केवल 6 महिलाएं अपने शहर को ‘सुरक्षित’ मानती हैं, जबकि मुश्किल से 40% ने खुद को असुरक्षित या कम सुरक्षित बताया। विशेष समस्या रात के समय सार्वजनिक स्थानों और परिवहन में सुरक्षा को लेकर रही।

Education and Workplace : जहां महिलाओं को राह दिखाई देती है…

Educational institution: दिन में लगभग 86% महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं, लेकिन रात को उनकी धारणा बदल जाती है।

Workplace: 91% महिलाएं कार्यालय में सुरक्षित महसूस करती हैं — लेकिन केवल आधी महिलाओं को ही पता है कि वहाँ पोश (POSH) नीति लागू है या नहीं।

2024 में 7% महिलाओं ने सार्वजनिक जगहों पर उत्पीड़न का सामना किया। यह आंकड़ा 24 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में बढ़कर 14% हो जाता है। 38% घटनाएं आस-पास और 29% मामले सार्वजनिक परिवहन में दर्ज हुईं। लेकिन सिर्फ हर तीन में से एक पीड़िता ने ही शिकायत दर्ज करवाई। इससे स्पष्ट होता है कि एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो) के आंकड़ों में असल कहानी कहीं-कहीं दिखाई नहीं देती।

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