Edited By Tanuja,Updated: 21 Dec, 2025 02:44 PM

सोशल मीडिया पोस्ट में पाकिस्तान में 17 वर्षीय ईसाई लड़की के कथित अपहरण, जबरन धर्मांतरण और विवाह के आरोप लगाए गए हैं। मानवाधिकार समूह वर्षों से ऐसे मामलों पर चिंता जताते रहे हैं, हालांकि ताज़ा दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई। अमेरिका में इस मुद्दे...
International Desk: सोशल मीडिया पोस्ट में पाकिस्तान में 17 वर्षीय ईसाई लड़की के कथित अपहरण, जबरन धर्मांतरण और विवाह के आरोप लगाए गए हैं। मानवाधिकार समूह वर्षों से ऐसे मामलों पर चिंता जताते रहे हैं, हालांकि ताज़ा दावे की स्वतंत्र पुष्टि नहीं हुई। अमेरिकी सोशल मीडिया अकाउंट Amy Mek की एक पोस्ट ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ दी है। पोस्ट में दावा किया गया है कि पाकिस्तान में 17 वर्षीय ईसाई लड़की ‘हन्ना’ का दिनदहाड़े अपहरण किया गया, क्योंकि उसने कथित तौर पर धर्मांतरण और 46 वर्षीय व्यक्ति से विवाह से इनकार कर दिया था।
पोस्ट में यह भी आरोप लगाया गया कि घटना के समय मौजूद लोगों ने हस्तक्षेप नहीं किया। हालांकि, इस विशेष घटना की स्वतंत्र पुष्टि अभी तक किसी आधिकारिक एजेंसी या विश्वसनीय मीडिया रिपोर्ट से नहीं हुई है। पाकिस्तान सरकार या स्थानीय पुलिस की ओर से भी इस दावे पर तत्काल प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है। यह मामला ऐसे समय सामने आया है जब अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों, अमेरिकी विदेश विभाग की धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट्स, और कई एनजीओ पाकिस्तान में अल्पसंख्यक लड़कियों के अपहरण, जबरन धर्मांतरण और विवाह के मामलों पर वर्षों से चिंता जताते रहे हैं। इन रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि कुछ मामलों में पीड़िताओं के बयान दबाव में दर्ज होते हैं,अदालतों में “स्वैच्छिक धर्मांतरण” के दावे सामने आते हैं और परिवारों को धमकियों का सामना करना पड़ता है।
विशेषज्ञों के अनुसार, बाल विवाह और जबरन धर्मांतरण से जुड़े मामलों में कानूनी प्रक्रिया, पुलिस की भूमिका और सामाजिक दबाव अक्सर जटिल हो जाते हैं। पाकिस्तान में मौजूद कानूनों और उनके क्रियान्वयन को लेकर अंतरराष्ट्रीय निगरानी लगातार जारी रही है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि स्वतंत्र जांच, पारदर्शिता और पीड़ितों की सुरक्षा ही ऐसे मामलों में भरोसेमंद निष्कर्ष तक पहुंचने का रास्ता है। पोस्ट में अमेरिका के टेक्सास में पाकिस्तानी झंडे या कार्यक्रमों को लेकर भी तीखी प्रतिक्रिया दी गई है। इससे अमेरिका में प्रवासी समुदाय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और विदेश नीति पर नई बहस शुरू हो गई है। हालांकि अमेरिकी अधिकारियों की ओर से इस विशेष पोस्ट पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है।