बार-बार कसम खाने की आदत पर प्रेमानंद जी महाराज ने कह दी ये बड़ी बात, जानकर उड़ जाएंगे होश

Edited By Updated: 15 Nov, 2025 01:04 PM

premanand ji maharaj said this big thing about the habit of swearing repeatedly

प्रेमानंद महाराज ने एक सवाल के जवाब में बताया कि बार-बार कसम खाना या कसम तोड़ देना व्यक्ति के पुण्य को कम कर देता है और जीवन में नकारात्मक प्रभाव लाता है। उन्होंने कहा कि बिना सोचे-समझे कसम लेने से हृदय में ग्लानि बढ़ती है, अवनति होती है और समाज में...

नेशनल डेस्क : अक्सर कई लोग छोटी-छोटी बातों पर कसम खाने लगते हैं। कुछ लोग ऐसा इसलिए करते हैं ताकि सामने वाला उन पर विश्वास कर ले, जबकि कुछ के लिए यह आदत बन जाती है। इसी विषय से जुड़ा एक सवाल एक व्यक्ति ने हाल ही में प्रेमानंद महाराज से पूछा कि बार-बार कसम खाने वाले व्यक्ति के साथ आखिर क्या होता है?

इस सवाल का जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज ने समझाया कि बिना सोचे-समझे कसम खाना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि जो लोग जल्दी-जल्दी कसम लेते हैं और फिर उसे निभा नहीं पाते, वे अपने ही अच्छे कर्मों को कम करते जाते हैं। महाराज के अनुसार, ऐसी आदत से व्यक्ति के पुण्य क्षीण हो जाते हैं, उसके मन में ग्लानि बढ़ती है और समाज में उसकी निंदा होने लगती है।

महाराज ने यह भी कहा कि अगर किसी की कोई आदत गलत है, तो वह कसम लेने की बजाय एक छोटा संकल्प बनाए कि वह आज से कोशिश करेगा कि यह व्यवहार न दोहराए। यह प्रयास एक महीने या दो महीने तक जारी रखना चाहिए। यदि बीच में चूक हो जाए, तो दोबारा प्रयास करते रहें। लेकिन तुरंत कसम न लें, क्योंकि टूटने पर अपराधबोध और समस्याएं बढ़ती हैं।

कब लेनी चाहिए कसम?

प्रेमानंद महाराज ने बताया कि कसम तभी लेनी चाहिए जब व्यक्ति कुछ महीनों तक स्वयं पर नियंत्रण रखकर यह साबित कर दे कि वह उस आदत से दूर रह सकता है। जब दो-चार महीने तक कोई गलत काम न दोहराया जाए, तब कसम लेना उचित होता है। इससे उसके टूटने की संभावना भी कम रहती है और मानसिक बोझ भी पैदा नहीं होता।

प्रवचन में मिल रहे हैं जीवन से जुड़े सवालों के जवाब

अपने प्रवचनों के दौरान प्रेमानंद महाराज लोगों के रोजमर्रा के जीवन से जुड़े सवालों का जवाब देते रहते हैं। हाल ही में एक महिला ने उनसे पूछा था कि भगवान से जो कुछ भी मांगा जाता है, वह पूरा क्यों नहीं होता? इस पर महाराज ने कहा कि लोग भगवान से ठीक तरीके से मांगना नहीं जानते। उन्होंने कहा कि भगवान को रिश्वत की तरह मिठाई या पैसे का लालच देकर कुछ पाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। भगवान को अपना मित्र मानकर, पूरे भरोसे और हक के साथ अपनी बात रखनी चाहिए। तभी इच्छाएं पूरी होने का मार्ग बनता है।


 

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