अगर RBI के पास नोट छापने की मशीन है, तो हर किसी को अमीर क्यों नहीं बना देती सरकार? इस गलती से ये दो देश हो चुके बर्बाद

Edited By Updated: 05 Sep, 2025 11:25 AM

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क्या आपने कभी सोचा है कि जब भारतीय रिज़र्व बैंक के पास नोट छापने की मशीन है, तो फिर सरकार हर किसी को पैसा क्यों नहीं देती? अगर सबके पास खूब सारा पैसा हो, तो गरीबी भी खत्म हो सकती है और हर कोई अमीर बन सकता है-  ऐसा लग सकता है। लेकिन सच्चाई बेहद...

नेशनल डेस्क: क्या आपने कभी सोचा है कि जब भारतीय रिज़र्व बैंक के पास नोट छापने की मशीन है, तो फिर सरकार हर किसी को पैसा क्यों नहीं देती? अगर सबके पास खूब सारा पैसा हो, तो गरीबी भी खत्म हो सकती है और हर कोई अमीर बन सकता है-  ऐसा लग सकता है। लेकिन सच्चाई बेहद चौंकाने वाली है। इतिहास गवाह है कि कुछ देशों ने जब बिना सोचे-समझे नोटों की बाढ़ बाजार में ला दी, तो नतीजा था हाहाकार। लोग लाखों-करोड़ों लेकर बाजार पहुंचे, लेकिन एक रोटी तक नहीं खरीद पाए। आईए जानते है विस्तार से...

नोट छापना जितना आसान लगता है, उतना होता नहीं
RBI चाहे तो दिन-रात नोट छाप सकता है। लेकिन अर्थव्यवस्था सिर्फ "कागज़ के पैसे" पर नहीं चलती। देश की असली संपत्ति होती है – उत्पादन, सेवाएं, और संसाधन। जब बिना जरूरत के नोट छापकर बाजार में डाले जाते हैं, तो पैसे की मात्रा बढ़ जाती है लेकिन बाजार में सामान और सेवाएं उतनी नहीं बढ़तीं। ऐसे में क्या होता है? चीजों की मांग बढ़ती है, लेकिन आपूर्ति नहीं। इससे महंगाई (Inflation) बढ़ती है, और अगर यह काबू से बाहर हो जाए, तो उसे कहते हैं हाइपर इन्फ्लेशन।

हाइपर इन्फ्लेशन: जब पैसा होते हुए भी लोग गरीब हो जाते हैं
हाइपर इन्फ्लेशन का मतलब है – महंगाई इस हद तक बढ़ जाना कि पैसे की वैल्यू लगभग खत्म हो जाए। यानी आज जो ब्रेड ₹40 में मिलती है, वह कल ₹4,000 में, फिर ₹40,000 में बिकेगी। पैसे तो आपके पास होंगे, लेकिन वे किसी काम के नहीं रह जाएंगे। ऐसे हालात में लोगों की खरीदने की ताकत खत्म हो जाती है और पूरा आर्थिक तंत्र चरमरा जाता है।

जिम्बाब्वे का सबक: ट्रिलियन डॉलर से भी नहीं खरीदी जा सकी ब्रेड
जिम्बाब्वे ने इस गलती की बहुत बड़ी कीमत चुकाई। 2000 के दशक में सरकार ने बजट घाटा पूरा करने और जन कल्याण योजनाओं को चलाने के लिए बेतहाशा नोट छापे। शुरुआत में लगा कि सरकार जनता को राहत दे रही है, लेकिन कुछ ही सालों में वहां हालत ये हो गई कि सरकार ने 100 ट्रिलियन जिम्बाब्वे डॉलर का नोट छापा — और उससे भी एक ब्रेड नहीं खरीदी जा सकी। लोग पैसे के बोरे लेकर बाजार जा रहे थे, लेकिन सामान नहीं खरीद पा रहे थे। अंत में देश की करेंसी पूरी तरह ध्वस्त हो गई और लोगों को अमेरिकी डॉलर जैसे विदेशी मुद्रा का सहारा लेना पड़ा।

वेनेजुएला: तेल से अमीरी तक, और फिर कागज़ी नोटों से तबाही
एक और ताज़ा उदाहरण है वेनेजुएला। 2010 तक वह एक अमीर तेल उत्पादक देश था। लेकिन जब 2014 के बाद वैश्विक बाजार में तेल की कीमतें गिरीं, तो उसकी आमदनी भी कम हो गई। सरकार ने आर्थिक संकट से उबरने के लिए नोट छापने शुरू कर दिए। कुछ समय तक इससे राहत मिली, लेकिन जैसे-जैसे पैसे बढ़े, वैसे-वैसे महंगाई भी बेकाबू हो गई।

2018 तक वेनेजुएला में महंगाई दर 10,00,000% से भी ऊपर पहुंच गई। इसका मतलब है कि एक सामान्य वस्तु जिसकी कीमत ₹100 थी, वो लाखों में पहुंच गई। सरकार को करेंसी का बार-बार रीडिनोमिनेशन करना पड़ा यानी नोटों से कई शून्य हटाने पड़े। इसके बावजूद आम लोगों को जरूरी चीजें तक मिलना मुश्किल हो गया और देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह लड़खड़ा गई।
 

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