उज्जैन बना ‘लावारिस लाशों’ का शहर? 96 अज्ञात शव मिलने से मचा हड़कंप

Edited By Updated: 06 Sep, 2025 03:52 PM

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महाकाल लोक के नाम से मशहूर उज्जैन में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। यहां लावारिस शवों की संख्या में अचानक हुई बढ़ोतरी प्रशासन और समाज दोनों के लिए गंभीर चेतावनी बन गई है। सिर्फ बीते 3 महीनों में 96 अज्ञात शव उज्जैन के विभिन्न थाना क्षेत्रों से...

नेशनल डेस्क: महाकाल लोक के नाम से मशहूर उज्जैन में एक सनसनीखेज मामला सामने आया है। यहां लावारिस शवों की संख्या में अचानक हुई बढ़ोतरी प्रशासन और समाज दोनों के लिए गंभीर चेतावनी बन गई है। सिर्फ बीते 3 महीनों में 96 अज्ञात शव उज्जैन के विभिन्न थाना क्षेत्रों से बरामद किए गए हैं। वहीं, अगस्त से 5 सितंबर के बीच महज 36 दिनों में 30 से अधिक शवों का अंतिम संस्कार किया गया है। यह आंकड़े न सिर्फ डरावने हैं, बल्कि यह दर्शाते हैं कि हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं।

 इन लाशों का अंतिम संस्कार करने वाले समाजसेवी अनिल डागर ने बताया कि पहले साल भर में जितने लावारिस शव मिलते थे, अब उतने कुछ ही महीनों में सामने आ रहे हैं। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नगर निगम और पुलिस विभाग ने इन शवों की जिम्मेदारी तो उनकी संस्था को सौंप दी है, लेकिन न तो संसाधन दिए हैं, न ही कोई स्थायी समाधान तैयार किया गया है।

बाहरी भिक्षुओं की वजह से बिगड़ते हालात
महाकाल लोक के विकास के बाद उज्जैन में अन्य जिलों – जैसे इंदौर, देवास, भोपाल, नीमच और रतलाम – से भिक्षुओं की आमद बढ़ गई है। इनमें से कई भिक्षु बीमार, बेसहारा या अत्यंत दयनीय स्थिति में होते हैं और शहर में सुरक्षित आश्रय या चिकित्सा सुविधा के अभाव में दम तोड़ देते हैं। इनमें से अधिकतर की पहचान नहीं हो पाती, और वे लावारिस शवों में गिने जाते हैं। खास बात यह भी सामने आई है कि इंदौर में पकड़े गए भिक्षुओं को उज्जैन में छोड़ने का चलन शुरू हो गया है, जिससे यहां की स्थिति और अधिक बिगड़ गई है।

इन इलाकों में मिले सबसे ज्यादा शव
उज्जैन के निम्न थाना क्षेत्रों में सबसे अधिक लावारिस शव बरामद किए गए:

थाना क्षेत्र    मिले शवों की संख्या
देवासगेट      18
महाकाल      11
भैरवगढ़       11
कोतवाली      7
जीवाजीगंज    7
तराना           9
चिमनगंज      6
नीलगंगा       5
घट्टिया         4
चिंतामन      3
पंवासा         2
माधवनगर, नागझिरी आदि    1-1
प्रशासनिक उदासीनता पर उठे सवाल

अनिल डागर का आरोप है कि नगर निगम, जनप्रतिनिधि और पुलिस विभाग ने इस संवेदनशील विषय पर कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई है। एक समय में तत्कालीन निगमायुक्त आशीष पाठक ने पुलिस के साथ बैठक कर इस मुद्दे पर कार्रवाई की योजना बनाई थी, लेकिन उनके स्थानांतरण के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया। 

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