Edited By jyoti choudhary,Updated: 22 Nov, 2025 05:13 PM

भारत की दस बड़ी ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार के चार नए लेबर कोड को “मजदूरों के साथ धोखा” बताते हुए तत्काल वापस लेने की मांग की है। यूनियनों ने बुधवार को देशभर में विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। ये सभी यूनियन, जो ज्यादातर विपक्षी दलों से...
बिजनेस डेस्कः भारत की दस बड़ी ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार के चार नए लेबर कोड को “मजदूरों के साथ धोखा” बताते हुए तत्काल वापस लेने की मांग की है। यूनियनों ने बुधवार को देशभर में विरोध प्रदर्शन करने का ऐलान किया है। ये सभी यूनियन, जो ज्यादातर विपक्षी दलों से जुड़ी हैं, पिछले 5 वर्षों से इन कानूनों का विरोध कर रही हैं।
ये चारों लेबर कोड संसद द्वारा पांच साल पहले पारित किए गए थे। सरकार का कहना है कि इनसे पुराने, जटिल और ब्रिटिश काल के श्रम कानूनों को सरल बनाया गया है, जिससे निवेश को बढ़ावा मिलेगा और मजदूरों को न्यूनतम वेतन व सामाजिक सुरक्षा जैसे फायदे मिलेंगे लेकिन यूनियनों का आरोप है कि नए कोड कंपनियों को कर्मचारियों को आसानी से हटाने की छूट देते हैं, जो मजदूरों के अधिकारों के खिलाफ है।
क्या बदला इन नए कानूनों से?
- फैक्ट्रियों में शिफ्ट अब लंबी हो सकती है
- महिलाओं के लिए रात की पाली की इजाजत
- छंटनी के लिए सरकारी इजाजत की सीमा 100 से बढ़ाकर 300 कर्मचारी कर दी गई
- छोटी-मझोली कंपनियों को पहले से ज्यादा छूट
नए लेबर कोड लागू होने पर उद्योग जगत के एक बड़े हिस्से ने राहत जताई थी। उनका कहना है कि पुराने श्रम कानून इतने जटिल थे कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की बढ़त रुक जाती थी। यही कारण है कि लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी अभी भी 20% से नीचे है।
हालांकि, सभी उद्योग संगठन इससे सहमत नहीं हैं। छोटे और मध्यम उद्यमों के समूह ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन एंटरप्रेन्योर्स’ ने चेतावनी दी है कि नए नियमों से उनका संचालन खर्च बढ़ सकता है और कई उद्योगों में कामकाज प्रभावित होगा। उन्होंने सरकार से ट्रांजिशन पीरियड में अतिरिक्त सहायता और लचीले नियमों की मांग की है।
BMS का समर्थन
भारतीय मजदूर संघ (BMS) ने इन लेबर कोड का खुलकर समर्थन किया है। संगठन का कहना है कि राज्यों को कुछ विवादित बिंदुओं पर वार्ता के बाद जल्द से जल्द इन्हें लागू कर देना चाहिए।
श्रम मंत्रालय जून 2024 से अब तक यूनियनों के साथ कई बैठकें कर चुका है लेकिन सहमति बनना मुश्किल दिख रहा है। मंत्रालय ने रॉयटर्स के सवालों पर अभी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। अब देशभर के राज्य अपने-अपने स्तर पर इन चार कोड—वेतन, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा—के लिए नियम तैयार करेंगे।