राहुल गांधी की बिहार यात्रा से क्या 2025 में पलटेगी बाजी?

Edited By Updated: 01 Sep, 2025 05:36 PM

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बिहार में इंडिया ब्लॉक की 1300 किलोमीटर से भी लंबी 'वोट अधिकार यात्रा' की समाप्ति हो गई है। इंडिया ब्लॉक की इस यात्रा को बिहार में तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और अन्य कई नेताओं का साथ मिला।

नेशनल डेस्क: बिहार में इंडिया ब्लॉक की 1300 किलोमीटर से भी लंबी 'वोट अधिकार यात्रा' की समाप्ति हो गई है। इंडिया ब्लॉक की इस यात्रा को बिहार में तेजस्वी यादव, अखिलेश यादव और अन्य कई नेताओं का साथ मिला। राहुल गांधी ने राहुल गांधी ने यात्रा के दौरान चुनाव आयोग को 'वोट चोरी' का आरोप लगाते हुए घेरा और बीजेपी-जेडीयू गठबंधन पर बड़ी साजिश रचने का आरोप लगाया। यह यात्रा 110 से ज्यादा विधानसभा सीटों से होकर गुज़री, जिनमें से अधिकतर पर एनडीए का कब्जा है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह यात्रा 2025 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन के लिए फायदेमंद साबित होगी?

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कांग्रेस की 'बार्गेनिंग पावर' बढ़ी?

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस यात्रा ने बिहार में कांग्रेस को एक नई जान दी है। काफी समय बाद राहुल गांधी ने खुद फ्रंट सीट पर आकर इस तरह का अभियान चलाया है। इससे बिहार में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में नया जोश देखने को मिला है। यात्रा की सफलता के बाद जब महागठबंधन में सीट बंटवारे पर बातचीत होगी, तो कांग्रेस अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर सकती है। 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन इस बार वह अपनी सियासी अहमियत को भुनाकर ज्यादा सीटों पर दावा कर सकती है।

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उत्तर बिहार और मिथिलांचल पर खास फोकस

यात्रा का रूट मैप बहुत सोच-समझकर तैयार किया गया था। राहुल-तेजस्वी ने खास तौर पर उत्तर बिहार और मिथिलांचल के इलाकों को निशाना बनाया, जो पारंपरिक रूप से एनडीए का गढ़ माने जाते हैं। यात्रा इन इलाकों की लगभग 23 विधानसभा सीटों से होकर गुज़री, जहाँ कांग्रेस पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी या उसका प्रदर्शन अच्छा था। इन क्षेत्रों में दलित, पिछड़ा, अति पिछड़ा और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी तादाद है, जिन पर कांग्रेस अपनी रणनीति केंद्रित कर रही है। कांग्रेस की कोशिश इन सीटों पर अपने उम्मीदवारों को मज़बूती से उतारने की है ताकि एनडीए को सीधी चुनौती दी जा सके।

सीएम चेहरे को लेकर चुप्पी के क्या हैं मायने?

यात्रा के दौरान एक और अहम मुद्दा जो सामने आया, वह था सीएम चेहरे का। जब भी मीडिया ने राहुल गांधी से पूछा कि बिहार में सीएम का चेहरा कौन होगा, तो वे खामोश रहे। जबकि तेजस्वी यादव ने खुलकर राहुल को पीएम उम्मीदवार और खुद को सीएम उम्मीदवार बताया। इस पर राहुल की चुप्पी को एक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस तेजस्वी का नाम घोषित कर गैर-यादव ओबीसी और सवर्ण वोटों को नाराज़ नहीं करना चाहती। इसलिए वह जानबूझकर सीएम चेहरे पर सस्पेंस बनाए हुए है ताकि सभी वर्गों का समर्थन हासिल किया जा सके।

 

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