सत्य कहानी: पाप का नाश करने के लिए किया गया तप बन गया वरदान

Edited By Updated: 20 Jul, 2016 02:46 PM

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विवस्वानुग्रसेनश्च व्याघ्र आसारणो भृगु:। अनुम्लोचा: शंखपालो नभस्याख्यं नयन्त्यमी।।1।। जगन्निर्माणकत्र्तारं सर्वदिग्व्याप्ततेजसम्। नभोग्रहमहादीपं विवस्वन्तं नमाम्यहम्।। 2।।

विवस्वानुग्रसेनश्च व्याघ्र आसारणो भृगु:। 

अनुम्लोचा: शंखपालो नभस्याख्यं नयन्त्यमी।।1।।

जगन्निर्माणकत्र्तारं सर्वदिग्व्याप्ततेजसम्। 

नभोग्रहमहादीपं विवस्वन्तं नमाम्यहम्।। 2।।

‘भाद्रपद मास में विवस्वान् नामक आदित्य (सूर्य) भृगु ऋषि, अनुम्लोचा अप्सरा, उग्रसेन गन्धर्व, शंखपाल नाग, आसारण यक्ष तथा व्याघ्र राक्षस के साथ अपने रथ पर चलते हैं। मैं जगत् के निर्माणकर्ता, सारी दिशाओं में व्याप्त तेज वाले आकाशचारी ग्रह, महादीप भगवान् विवस्वान् को प्रणाम करता हूं। विवस्वान् सूर्य दस सहस्त्र रश्मियों से तपते हैं, उनका वर्ण भूरा है।

खखोल्कादित्य की कथा

पूर्व काल में दक्ष प्रजापति की दो पुत्रियां कद्रू और विनता मुनिवर कश्यप की पत्नियां थीं। एक दिन खेल-खेल में कद्रू ने अपनी बहन से कहा, ‘‘विनते! सूर्य के रथ में जो उच्चै: श्रवा नामक घोड़ा है उसका रंग कैसा है? हम दोनों शर्त लगाकर इसका निर्णय करें, जो जिससे पराजित हो वह उसकी दासी हो।’’

 

विनता ने उत्तर दिया, ‘‘सफेद है।’’

 

कद्रू ने कहा, ‘‘चितकबरा है।’’

 

कद्रू ने अपने सर्प-पुत्रों को आदेश दिया, ‘‘तुम सब बाल के समान महीन रूप बनाकर उच्चै: श्रवा की पूंछ में लिपट जाओ, जिससे उसके रोएं तुम्हारी विषैली सांसों के प्रभाव से श्याम रंग के हो जाएं।’’

 

माता के शाप के भय से उसके कुछ पुत्रों ने उसकी खोटी बात मान ली और शुक्ल उच्चै: श्रवा को चितकबरा कर दिया। शर्त के अनुसार विनता ने कद्रू की दासी होना स्वीकार कर लिया। एक दिन विनता पुत्र गरुड़ ने अपनी मां को उदास होकर आंसू बहाते हुए देखा। गरुड़ ने पूछा, ‘‘मां! तुम नित्य सवेरे-सवेरे कहां जाती हो और शाम को थकी मांदी कहां से आती हो?’’

 

विनता ने अपने दासी होने का सारा वृत्तांत गरुड़ को बताया। गरुड़ ने सर्पों को अमृत देकर अपनी मां को दासता से मुक्त किया।

 

विनता ने गरुड़ से दासता रूपी पाप की निवृत्ति के लिए काशी जाने की इच्छा प्रकट की। दोनों ने काशी पहुंच कर कठोर तपस्या की। विनता ने खखोल्कादित्य की स्थापना की और गरुड़ ने शाम्भव-लिंग की स्थापना कर कठोर तपस्या शुरू कर दी।

 

गरुड़ द्वारा स्थापित शिवलिंग से भगवान उमानाथ प्रकट हुए और उन्होंने गरुड़ को अनेक दुर्लभ वरदान दिए। उन्होंने कहा, ‘‘पक्षीराज गरुड़! मेरे यथार्थ रहस्य को जिसे देवता भी नहीं जानते, तुम आसानी से जान लोगे। तुम्हारे द्वारा स्थापित यह लिंग गरुड़ेश्वर के नाम से विख्यात होगा।’’ 

 

तदनन्तर विनता के सामने भगवान शिव के ही स्वरूप खखोल्कादित्य नामक सूर्यदेव प्रकट हुए और उन्होंने विनता को शिवज्ञान से युक्त पापनाशक वरदान दिया। खखोल्कादित्य का मंदिर काशी के पाटन-दरवाजा मोहल्ले में कामेश्वर-मंदिर के पास है। उनके दर्शन से मनुष्यों के मनोरथ पूर्ण होते हैं और रोगी निरोग हो जाते हैं। 

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