कर्मचारियों का सामाजिक सुरक्षा कवर बढ़ाने के लिये ईपीएफ सकल वेतन के 100 प्रतिशत पर काटा जाए: बीएमएस

Edited By PTI News Agency,Updated: 24 Dec, 2020 09:51 PM

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नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने बृहस्पतिवार को भत्ते समेत सकल वेतन के 100 प्रतिशत पर कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) कटौती की वकालत की। श्रमिक संगठन के अनुसार इससे संगठित...

नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने बृहस्पतिवार को भत्ते समेत सकल वेतन के 100 प्रतिशत पर कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) कटौती की वकालत की। श्रमिक संगठन के अनुसार इससे संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा बढ़ेगी।

अन्य श्रमिक संगठनों ने भी इस बात पर सहमित जतायी है कि मजदूरी संहिता के तहत वेतन की परिभाषा इस रूप से रखी जाए जिससे ईपीएफओ की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के दायरे में आने वाले कर्मचारियों की ईपीएफ कटौती सकल वेतन के आधार पर हो।

हालांकि अन्य संगठनों ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा बृहस्पतिवार को बुलायी गयी त्रिपक्षीय बैठक के दौरान इस बात को स्पष्ट रूप से नहीं रखा। बैठक में नियोक्ताओं के साथ कर्मचचारियों के प्रतिनिधि शामिल हुए।

बीएमएस ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘‘श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की श्रम संहिता नियमों पर परामर्श बैठक में श्रमिक संगठन ने यह मांग की कि वेतन परिभाषा में भत्ते को कुल वेतन का 50 प्रतिशत पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए। क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने 2019 में विवेकानंद विद्यालय मामले में यह आदेश दिया गया है। पूर्व में उच्चतम न्यायालय के ग्रुप 4 सुरक्षा मामले में यह व्यवस्था दी गयी थी कि शत प्रतिशत भत्ते को वेतन का हिस्सा होना चाहिए।’’
वेतन की नई परिभाषा में कहा गया है कि किसी कर्मचारी का भत्ता कुल वेतन का 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। इससे भविष्य निधि समेत सामाजिक सुरक्षा मद में कटौती बढ़ेगी।

फिलहाल नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) द्वारा संचालित सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मूल वेतन का 12-12 प्रतिशत योगदान देना होता है।

वर्तमान में बड़ी संख्या में नियोक्ता वेतन बोझ कम करने के लिये सामाजिक सुरक्षा योजना में योगदान कम करने के लिये वेतन को विभिन्न भत्तों बांट देते हैं। इससे नियोक्ता और कर्मचारी दोनों को लाभ होता है। जहां नियोक्ताओं की भविष्य निधि योगदान देनदारी घटती है वहीं कर्मचारियों के हाथों में अधिक वेतन आता है।

वेतन की नई परिभाषा मजदूरी संहिता, 2019 का हिस्सा है। संसद ने इसे पिछले साल पारित कर दिया।
अब इसे तीन अन्य संहिताओं...औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक स्वास्थ्य सुरक्षा एवं कामकाज की स्थिति संहिता... एक अप्रैल, 2021 से लागू करने की योजना है।

इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अशोक सिंह ने कहा, ‘‘हमने नौ अन्य केंद्रीय श्रमिक संगठनों के साथ वेतन परिभाषा मामले में बृहस्पतिवार को हुई बैठक में स्पष्ट रूप से कोई टिप्पणी नहीं की। हम इसी तर्ज पर (ईपीएफ में उच्च दर से कटौती) पूर्व में सुझाव देते रहे हैं।’’
बीएमएस के अनुसार उसके अलावा इंटक, टीयूसीसी (ट्रेड यूनिन कॉर्डिनेशन सेंटर) और एनएफआईटीयू (नेशनल फ्रंट ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स) समेत अन्य केंद्रीय श्रमिक संगठनें के प्रतिनिधि बैठक में शामिल हुए।

इस बीच, भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने कहा, ‘‘वेतन की परिभाषा में यह कहा गया है कि वेतन को छोड़कर अगर कुछ भत्तों का जोड़ कुल पारितोषिक का 50 प्रतिशत से अधिक है, तब 50 प्रतिशत से अधिक जो भी भत्ता होगा, उसे वेतन की श्रेणी में रखा जाएगा।’’
हालांकि सीआईआई ने कहा कि यह साफ नहीं है कि कुल पारितोषिक में क्या-क्या शामिल होगा।

कुल पारितोषिक को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना चाहिए ताकि कोई भ्रम की स्थिति नहीं रहे और उसे लागू करना आसान हो।

उद्योग मंडल ने वेतन की नई परिभाषा के तहत ग्रेच्युटी आकलन के बारे में भी स्पष्टीकरण मांगा है।



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