नीति आयोग ने की सरकारी बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज, वित्तीय स्वायत्तता की वकालत

Edited By Updated: 03 Aug, 2021 05:45 PM

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नयी दिल्ली, तीन अगस्त (भाषा) नीति आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज और वित्तीय मामलों में अधिक स्वायत्तता की वकालत की है। उसने कहा है कि वितरण कंपनियों की सफलता के लिये कंपनी और राज्य के बीच स्पष्ट विभाजन जरूरी है।

नयी दिल्ली, तीन अगस्त (भाषा) नीति आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनियों के कामकाज और वित्तीय मामलों में अधिक स्वायत्तता की वकालत की है। उसने कहा है कि वितरण कंपनियों की सफलता के लिये कंपनी और राज्य के बीच स्पष्ट विभाजन जरूरी है।

‘बिजली वितरण क्षेत्र में बदलाव’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट में नीति आयोग ने कहा कि राज्य के स्वामित्व वाली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) का प्रदर्शन संबंधित राज्य विद्युत नियामक आयोगों (एसईआरसी) की बार-बार और पर्याप्त रूप से शुल्क दरों में संशोधन की क्षमता से भी निर्धारित होता है।
इसमें कहा गया है, ‘‘...सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली वितरण कंपनी की सफलता के लिये जरूरी है कि कंपनी (डिस्कॉम) और राज्य के बीच स्पष्ट अंतर हो। डिस्कॉम के पास परिचालन और वित्तीय मामलों में स्वायत्तता जरूरी है। स्वतंत्र निदेशकों के उपयोग समेत बेहतर संचालन व्यवस्था से यह अंतर सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।’’
रिपोर्ट के अनुसार एक निश्चित क्षेत्र में राजस्व संग्रह से लेकर सभी वितरण कार्यों के लिये विभिन्न प्रकार की वितरण फ्रेंचाइजी हो सकती हैं।

इसमें कहा गया है, ‘‘यह संभव है कि ग्रामीण क्षेत्रों में निजी निवेशक लाइसेंस लेने को उत्सुक नहीं हो। लेकिन फ्रेंचाइजी मॉडल आकर्षक हो सकता है।’’
रिपोर्ट के अनुसार कई क्षेत्रों में डिस्कॉम का एकाधिकार है। ऐसे में वितरण कंपनियों के लिये लाइसेंस की व्यवस्था समाप्त होने से प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिल सकता है और ग्राहकों के लिये बिजली लेने के लिये कई विकल्प उपलब्ध होंगे।

इसमें कहा गया है, ‘‘यह सुधार चुनौतीपूर्ण हो सकता है और इस मामले में बाजार की रूपरेखा के साथ सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की जरूरत है।’’
नीति आयोग के अनुसार जहां परियोजना को व्यावहारिक बनाने के लिये सरकार से बिना समर्थन के वाणिज्यिक परिचालन मुश्किल है, घाटे वाले उन क्षेत्रों में सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल उपयोगी हो सकता है।

उसने कहा, ‘‘हालांकि देश में घर-घर बिजली पहुंचायी गयी है, लेकिन विद्युत आपूर्ति व्यवस्था में वितरण क्षेत्र लगातार कमजोर कड़ी बना हुआ है।’’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘ज्यादातर वितरण कंपनियां नुकसान में हैं। इसका कारण महंगा दीर्घकालीन बिजली खरीद समझौता, खराब बुनियादी ढांचा और अकुशल संचालन व्यवस्था आदि है।’’
इसके अनुसार, ‘‘नुकसान के कारण वितरण कंपनियां बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता में सुधार के लिये जरूरी निवेश और नवीकरणीय ऊर्जा का बड़े पैमाने पर उपयोग के लिये तैयार नहीं हो पाती।’’
नीति आयोग के अनुसार वितरण कंपनियों के बिजली उत्पादकों को भुगतान नहीं कर पाने से कंपनियों और उनके बैंकों की वित्तीय सेहत पर असर पड़ता है। कुल मिलाकर इसका पूरी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

आयोग ने सुझाव दिया है कि वितरण कंपनियों को उपयुक्त बाजार से बिजली खरीद कर लागत में कमी लानी चाहिए और बाजार के उपयोग से दक्षता बढ़ने पर उन्हें पुरस्कृत करना चाहिए।

नीति आयोग ने कहा कि देश में अधिकतर बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को हर साल घाटा होता है। वित्त वर्ष 2020-21 में कुल नुकसान 90,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।

इसमें कहा गया है कि इस संचयी घाटे के कारण डिस्कॉम समय पर बिजली उत्पादकों का भुगतान नहीं कर पाई। मार्च 2021 की स्थिति के अनुसार उन पर 67,917 करोड़ रुपये पहले का बकाया था।

रिपोर्ट के अनुसार कई राज्य सब्सिडी देते हैं और कभी-कभी कृषि क्षेत्र को मुफ्त बिजली प्रदान करते हैं।

‘‘इससे राजस्व संग्रह पर प्रतिकूल असर पड़ता है और वितरण कंपनियों को नुकसान होता है।’’
आयोग ने कहा कि राजस्थान, आंध्र प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र ने कृषि क्षेत्र के लिये अलग फीडर की व्यवस्था कर राजस्व नुकसान पर अंकुश लगाया है।
रिपोर्ट में वितरण कंपनियों की लागत में कमी लाने के लिये कृषि के लिये सौर पंपों के उपयोग तथा महंगे बिजली खरीद समझौते से बचने का सुझाव दिया गया है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि कारोबार सुगमता तथा जीवन को और आसान बनाने के लिये एक मजबूत एवं कुशल बिजली वितरण क्षेत्र जरूरी है।
रिपोर्ट को नीति आयोग, आरएमआई (रॉकी माउंटेन इंस्टिट्यूट) और आरएमआई इंडिया ने मिलकर तैयार किया है।

आधिकारिक बयान के अनुसार नीति आयोग के सदस्य वी के सारस्वत ने कहा कि यह रिपोर्ट नीति निर्माताओं को वितरण क्षेत्र की दक्षता में सुधार लाने और लाभदायक बनाने के लिये सुधारों के क्षेत्र में कई सारे विकल्प उपलब्ध कराती है।

आरएमआई के प्रबंध निदेशक क्ले स्ट्रेंजर ने कहा, ‘‘डिस्कॉम की समस्याओं के मजबूत और दीर्घकालिक समाधान के लिए नीति में बदलाव के साथ-साथ संगठनात्मक, प्रबंधकीय और तकनीकी सुधारों की आवश्यकता है।’’


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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