न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से ज्यादा होने पर मेडिकल जांच का निर्देश दिया

Edited By Updated: 26 Jan, 2023 09:04 PM

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नयी दिल्ली, 26 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से ज्यादा होने की परिस्थिति में उसकी मेडिकल जांच के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता पर मातृत्व की जिम्मेदारी...

नयी दिल्ली, 26 जनवरी (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने बलात्कार पीड़िता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से ज्यादा होने की परिस्थिति में उसकी मेडिकल जांच के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न की पीड़िता पर मातृत्व की जिम्मेदारी थोपना उसके सम्मानित जीवन जीने के मानवाधिकार के उल्लंघन के समान है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन शोषण करने वाले पुरुष के बच्चे को जन्म देने के लिए पीड़िता को बाध्य करना अकथनीय दुखों का कारण बनेगा और बलात्कार/यौन शोषण के वे मामले जहां पीड़िता गर्भवती हो जाती है बहुत गहरा जख्म देते हैं क्योंकि ऐसे में स्त्री को हर पल अपने साथ हुए उस हादसे के साये में जीना पड़ता है।

उच्च न्यायालय यौन शोषण के कारण गर्भवती हुई 14 साल की बच्ची द्वारा अपने 25 सप्ताह के भ्रूण का गर्भपात कराने का अनुमति मांगने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही है। सामान्य रूप से 24 सप्ताह तक के भ्रूण का गर्भपात कराया जा सकता है, उससे ज्यादा उम्र के भ्रूण का गर्भपात कराने के लिए अदालत की अनुमति आवश्यक है।

अदालत को बताया गया है बच्ची का परिवार निर्माण क्षेत्र में मजदूरी करता है और मां के काम पर जाने के बाद बच्ची के साथ बलात्कार हुआ था।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने बच्ची की मां की स्वीकृति और बच्ची की जांच करने वाले मडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर नाबालिग के गर्भपात की अनुमति दे दी।

अदालत ने बच्ची को शुक्रवार को राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में सक्षम प्राधिकार के समक्ष पेश होने को कहा है ताकि उसका गर्भपात किया जा सके।

यह रेखांकित करते हुए कि 24 सप्ताह या उससे ज्यादा की गर्भावस्था के मामले में मेडिकल बोर्ड द्वारा यौन उत्पीड़न पीड़ित की मेडिकल जांच कराने का आदेश पारित करने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण समय गुजर जाने से उसके जीवन को खतरा बढ़ गया है, उच्च न्यायालय ने जांच अधिकारियों के लिए दिशा-निर्देश जारी किए।

ये दिशा-निर्देश पुलिस आयुक्त के माध्यम से यौन उत्पीड़न पीड़िता के मेडिकल परीक्षण में शामिल अधिकारियों सहित सभी जांच अधिकारियों को मुहैया कराए जाएंगे, इसमें गर्भावस्था का पता लगाने के लिए पेशाब की जांच करना अनिवार्य होगा, क्योंकि देखा गया है कि कई मामलों में यह जांच नहीं की जाती है।

अदालत ने कहा कि अगर यौन उत्पीड़न पीड़िता बालिग है और गर्भपात करना चाहती है तो, जांच एजेंसी को सुनिश्चित करना होगा कि महिला/युवती को उसी दिन मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश किया जाए।

अदालत ने कहा, ‘‘अगर नाबालिग यौन उत्पीड़न पीड़िता गर्भवती है, अगर उसके कानूनी अभिभावक की सहमति है और अभिभावक अगर गर्भपात कराना चाहते हैं तो पीड़िता को मेडिकल बोर्ड के समक्ष पेश किया जाए।’’
अदालत ने कहा, अगर गर्भपात के लिए अदालती अनुमति की जरूरत है तो ऐसी स्थिति में परीक्षण के बाद रिपोर्ट संबंधित अधिकारियों के समक्ष रखी जाए ताकि संबंधित अदालत के पास समय बर्बाद ना हो और वह जल्दी आदेश पारित करने की स्थिति में हो।

अदालत ने कहा कि एमटीपी कानून (चिकित्सकीय सहायता से गर्भपात) के प्रावधानों 3(2सी) और 3(2डी) में कहा गया है कि राज्य सरकार या संघ शासित प्रदेश को अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड का गठन सुनिश्चित करना होगा।

अदालत ने कहा, ‘‘अदालत को सूचित किया गया है कि प्रत्येक जिले के अस्पतालों में ऐसे बोर्ड गठित नहीं है, जिससे जांच अधिकारियों और गर्भपात कराने की इच्छुक या जांच को लेकर पीड़िता को भी परेशानी होती है।’’
अदालत ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने को कहा है एमपीटी कानून के प्रावधानों 3(2सी) और 3(2डी) में दिए गए निर्देशों का पालन हो, ऐसे सभी सरकारी अस्पतालों में मेडिकल बोर्ड का गठन हो जहां एमटीपी केन्द्र हैं और पहले से ऐसे बोर्ड का गठन अनिवार्य होना चाहिए।

अदालत ने कहा कि यह सोच कर ही रूह कांप जाती है कि ऐसे भ्रूण को अपने गर्भ में पाल रही पीड़िता पर क्या गुजरती होगी, जो हर पल उसे अपने साथ हुए बलात्कार का याद दिलाती है।

अदालत ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामले में पीड़िता को मातृत्व की जिम्मेदारी से बांधना उसे सम्मान से जीने के मानवाधिकार से वंचित करने के समान होगा क्योंकि उसे अपने शरीर के संबंध में फैसले लेने का अधिकार है जिसमें उसे मां बनने के लिए ‘‘हां या ना ’’ कहने का अधिकार भी शामिल है।


यह आर्टिकल पंजाब केसरी टीम द्वारा संपादित नहीं है, इसे एजेंसी फीड से ऑटो-अपलोड किया गया है।

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