पंजाब, हरियाणा, हिमाचल के बच्चे पढ़ाई में पीछे और गलत कामों में आगे जा रहे हैं

Edited By ,Updated: 24 May, 2017 12:51 AM

children are going forward in the back and doing wrong things

उत्तरी भारत में पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश प्रगतिशील राज्य माने जाते....

उत्तरी भारत में पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश प्रगतिशील राज्य माने जाते हैं और इस लिहाज से तीनों ही राज्यों के युवाओं से भी जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे रहने की अपेक्षा की जाती है। अन्य क्षेत्रों में इन युवाओं की स्थिति जो भी हो परंतु शिक्षा के क्षेत्र में ये दक्षिणी राज्यों की तुलना में लगातार पिछड़ते चले जा रहे हैं जो हाल ही में घोषित तीनों राज्यों के मैट्रिक के परीक्षा परिणामों से स्पष्ट है। 

हिमाचल बोर्ड का मैट्रिक परीक्षा परिणाम 67.57 प्रतिशत, पंजाब का 57.50 प्रतिशत और हरियाणा का 55 प्रतिशत रहा जो केरल के पिछले साल के 98.5 प्रतिशत व तमिलनाडु के 94.8 प्रतिशत से अत्यंत कम तथा इन तीनों राज्यों में शिक्षा की बुरी हालत का द्योतक है। पंजाब का 57.50  प्रतिशत परीक्षा परिणाम पिछले वर्ष के 72.25 प्रतिशत से 14.75 प्रतिशत कम है जोकि 10 वर्षों के दौरान मैट्रिक के परीक्षा परिणाम में आने वाली सर्वाधिक गिरावट है। बोर्ड के चेयरमैन श्री बलबीर सिंह ढोल ने इसका औचित्य ठहराते हुए कहा है कि ‘‘ग्रेस माक्र्स न देने के कारण ही परिणाम कम आया है।’’ 

चुनाव नतीजे आने के बाद महीनों तक इनमें हार-जीत का विश्लेषण होता रहता है परंतु नतीजों पर स्कूलों में कोई हलचल नहीं होती। हमारे विचार में उक्त राज्यों में शिक्षा के घटिया स्तर के कुछ कारण ये हैं: 

सरकारी स्कूलों में अध्यापकों तथा बुनियादी ढांचे का अभाव है। हरियाणा के अनेक स्कूलों में जहां 11 अध्यापकों की जरूरत है वहां मात्र 2 अध्यापकों से ही काम चलाया जा रहा है। पंजाब तथा हिमाचल के सरकारी स्कूलों की हालत भी कहीं-कहीं ऐसी ही है। अव्वल तो सरकारी स्कूलों में पहले ही अध्यापक कम हैं और जो हैं, वे भी पढ़ाने पर कम तथा दूसरे कामों पर अधिक ध्यान देते हैं। सरकार भी उन्हें अन्य कामों पर लगाए रखती है जिससे बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है। अधिकांश बच्चों के माता-पिता अपनी अन्य व्यस्तताओं के कारण बच्चों की पढ़ाई की ओर पूरा ध्यान नहीं देते जिस कारण बच्चे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं। 

हमारा देश सदा ही उच्च नैतिक मूल्यों का ध्वजारोही रहा है परंतु आज हमारे अध्यापक अपने छात्रों को उच्च संस्कारों आदि की शिक्षा देना तो एक ओर, उन्हें औपचारिक शिक्षा भी नहीं दे रहे। यही कारण है कि आज के युवा अपने पुराने नैतिक मूल्यों और कदरो-कीमतों तथा पढ़ाई-लिखाई दोनों में ही फिसड्डी हो रहे हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए: 

निराशाजनक परिणाम देने वाले अध्यापकों से जवाब तलबी करना और उनके विरुद्ध कार्रवाई करना आवश्यक है। लम्बी छुट्टी लेकर विदेशों में बैठे अध्यापक-अध्यापिकाओं के विरुद्ध उसी प्रकार कार्रवाई करके उनकी सेवाएं समाप्त करना और उनके स्थान पर नई भर्ती करना भी आवश्यक है जैसे पंजाब में लम्बी छुट्टी लेकर विदेशों में बैठे 1200 से अधिक अध्यापकों की सेवाएं समाप्त की गई थीं। 

यही नहीं, समय-समय पर स्कूलों के प्रबंधकों को अपने यहां विभिन्न विषयों के विद्वानों, विशेषज्ञों, सार्वजनिक जीवन की सम्मानित हस्तियों, मेधावी छात्रों और परीक्षाओं में टॉपर छात्रों को आमंत्रित करके उनके लैक्चर एवं छात्रों के साथ प्रश्रोत्तर एवं इंटरैक्शन के सत्र करवाने चाहिएं ताकि छात्रों के ज्ञान तथा पढ़ाई में उनकी रुचि में वृद्धि हो। इसके साथ ही सभी सरकारी स्कूलों के अध्यापक-अध्यापिकाओं के लिए यह भी अनिवार्य करना आवश्यक है कि वे अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में ही पढ़ाएंगे। ऐसा करके ही सरकारी स्कूलों और उनके शिक्षा स्तर में सुधार लाया जा सकेगा। —विजय कुमार 

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