लंबित मुकदमों व यौन संबंधों को लेकर न्यायपालिका के महत्वपूर्ण सुझाव

Edited By ,Updated: 22 Oct, 2023 04:07 AM

important suggestions from the judiciary regarding pending cases

हम लिखते रहते हैं कि  लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ होने के नाते न्यायपालिका समय-समय पर जनहित से जुड़े मामलों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां और फैसले सुनाती रहती है। इसी सिलसिले में सुप्रीमकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट की 2 महत्वपूर्ण टिप्पणियां और फैसले...

हम लिखते रहते हैं कि  लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तम्भ होने के नाते न्यायपालिका समय-समय पर जनहित से जुड़े मामलों पर महत्वपूर्ण टिप्पणियां और फैसले सुनाती रहती है। इसी सिलसिले में सुप्रीमकोर्ट और कलकत्ता हाईकोर्ट की 2 महत्वपूर्ण टिप्पणियां और फैसले यहां दिए जा रहे हैं। 

लंबित मामलों को लेकर राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के देशव्यापी आंकड़ों का हवाला देते हुए 20 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट के जजों न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्टऔर न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने चेतावनी दी है कि :
‘‘कानूनी प्रक्रिया के कछुए की गति से आगे बढऩे की स्थिति में न्याय मांगने वालों का न्यायिक व्यवस्था से भरोसा उठ सकता है। अत: इस मुद्दे से निपटने के लिए बार एवं बैंच के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है। कुछ मुकद्दमे तो 65 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित हैं। ’’ इसके साथ ही न्यायालय ने पुराने मामलों की तेजी से सुनवाई और निपटान सुनिश्चित करने के लिए कुछ दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।

इसी प्रकार महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों से जुड़े मामले में कलकत्ता हाईकोर्ट के जजों चितरंजन दास और पार्थसारथी सेन पर आधारित खंडपीठ ने एक नाबालिगा से बलात्कार के दोषी ठहराए गए उसके प्रेमी को बरी कर दिया, जिसे मातहत अदालत ने पोक्सो कानून के तहत 20 वर्ष जेल की सजा सुनाई थी। युवक ने इसके विरुद्ध कलकत्ता हाईकोर्ट में अपील की थी। इस पर सुनवाई के दौरान लड़की ने कहा कि दोनों में सहमति से शारीरिक संबंध बने थेे, परंतु भारत में सहमति से शारीरिक संबंध बनाने की आयु 18 वर्ष होने के कारण उनके मामले में यह अपराध माना गया। माननीय न्यायाधीशों ने ऐसे मामलों में पोक्सो के इस्तेमाल पर ङ्क्षचता व्यक्त करते हुए 16 वर्ष से अधिक आयु के किशोरों के बीच सहमति से कायम यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटाने का सुझाव देते हुए लड़कियों और लड़कों के अलावा समाज के लिए कुछ सुझाव भी दिए और कहा : 

‘‘किशोर लड़कियों को 2 मिनट के आनंद के चक्कर में पडऩे की बजाय अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए क्योंकि मुश्किल से 2 मिनट का सुख पाकर लड़कियां समाज की नजरों में गिर जाती हैं। किशोर लड़कों को भी युवा लड़कियों व महिलाओं तथा उनकी गरिमा एवं शारीरिक स्वायत्तता का सम्मान करना चाहिए।’’
‘‘यह युवा लड़कियों की जिम्मेदारी है कि वे अपने शरीर की अखंडता के अधिकार, अपनी गरिमा और अपने आत्मसम्मान की रक्षा करें। अपने समग्र विकास का प्रयास करें और यौन आवेग पर नियंत्रण रखें।’’  
‘‘लड़कों के मामले में उनके माता-पिता को उन्हें यह बताना चाहिए कि किसी महिला का सम्मान, उसकी गरिमा और उनके शरीर की अखंडता की रक्षा किस प्रकार की जाए और यौन इच्छा से उत्तेजित हुए बिना महिला से दोस्ती कैसे की जा सकती है, भले ही दूसरी ओर से पहल की जा रही हो।’’ 
उन्होंने स्कूलों में यौन शिक्षा, स्वास्थ्य और शारीरिक स्वच्छता को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाने पर भी जोर दिया और कामुकता से जुड़े मुद्दों बारे किशोरों को मार्गदर्शन और शिक्षित करने के महत्व पर भी जोर देते हुए कहा : 

‘‘बच्चों, विशेषकर लड़कियों को बुरे स्पर्श, बुरे संकेत, बुरी संगति को पहचानने के लिए माता-पिता का मार्गदर्शन तथा शिक्षा आवश्यक है। उन्हें यह बताना चाहिए कि कानून द्वारा स्वीकृत आयु से पहले यौन संबंध बनाने से उन पर कौन से विपरीत प्रभाव पड़ सकते हैं।’’ ‘‘बच्चों वाले घर में ऐसा अनुकूल माहौल होना चाहिए कि कोई भी बच्चा यह मान कर बड़ा न हो कि महिलाओं से दुव्र्यवहार करना सामान्य बात है।’’ अदालतों में लंबित मुकद्दमों और यौन अपराधों के संबंध में उक्त दोनों ही टिप्पणियों से स्पष्टï है कि न्यायपालिका जनहित से जुड़े मुद्दों को लेकर किस कदर जागरूक और सतर्क है। इन पर संबंधित पक्षों को विचार और अमल करने का प्रयास करना चाहिए।—विजय कुमार 

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