भाजपा की 3 राज्यों में और कांग्रेस की 1 राज्य में जीत के सबक

Edited By ,Updated: 04 Dec, 2023 04:40 AM

lessons from bjp s victory in 3 states and congress s victory in 1 state

3 दिसम्बर को 4 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनाव परिणाम घोषित कर दिए गए तथा मिजोरम विधानसभा का चुनाव परिणाम 4 दिसम्बर को घोषित किया जाएगा। राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस को पिछली बार 108 सीटें मिली थीं जो इस बार सिर्फ 69...

3 दिसम्बर को 4 राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनाव परिणाम घोषित कर दिए गए तथा मिजोरम विधानसभा का चुनाव परिणाम 4 दिसम्बर को घोषित किया जाएगा। राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस को पिछली बार 108 सीटें मिली थीं जो इस बार सिर्फ 69 सीटों तक सिमट गई और इसे 39 सीटों का घाटा हुआ जबकि भाजपा पिछली बार की 73 सीटों में 42 सीटों की वृद्धि करके 115 सीटों पर जा पहुंची और यहां बदल-बदल कर सरकारें आने का रिवाज कायम रहा। 

एंटी इंकम्बैंसी के बावजूद मध्य प्रदेश में चौथी बार भाजपा की सरकार बनने जा रही है। एक लिहाज से मध्य प्रदेश तो दूसरा गुजरात बन गया है जहां लगातार भाजपा आ रही है। पिछली बार की 109 सीटों की तुलना में इस बार भाजपा की 55 सीटें बढ़ कर 163 हो गईं जबकि पिछली बार की 116 सीटों की तुलना में यहां कांग्रेस की 50 सीटें घट कर मात्र 66 रह गईं। छत्तीसगढ़ में सत्तारूढ़ कांग्रेस पिछली बार की 68 सीटों की तुलना में  इस बार 35 सीटें ही जीत कर 33 सीटों के घाटे में रही और सत्ता खो बैठी जबकि भाजपा की सीटें पिछली बार की 15 सीटों से 39 सीटें बढ़ कर 54 हो गईं। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की पराजयों की कहानी एक जैसी है। तीनों ही राज्यों के नेता न कोई तालमेल रखते हैं और न वे केंद्रीय नेताओं की बात मानते हैं। इस हालत में तो ऐसे ही नतीजे आएंगे। अत: कांग्रेस नेताओं को भाजपा की भांति एक ही आवाज में बोलने की जरूरत है। 

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान तीन बार मुख्यमंत्री रहने के बावजूद अपनी विजय का श्रेय पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को दे रहे हैं। वहां ज्योतिरादित्य सिंधिया हों या कोई नेता सभी ने एकजुट होकर शिवराज चौहान के नीचे काम किया। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी, जिनके प्रभाव वाले चम्बल क्षेत्र में भाजपा को 16 से अधिक सीटें मिलींं, कोई श्रेय नहीं ले रहे। छत्तीसगढ़ में भी भाजपा का स्थानीय नेतृत्व अपनी भारी विजय का श्रेय केंद्रीय नेतृत्व को ही दे रहा है। राजस्थान में अशोक गहलोत ने मात्र पिछले 6 महीनों के दौरान ही महिला केंद्रित कुछ योजनाएं शुरू कीं जबकि इससे पहले के वर्षों के दौरान उनके और सचिन पायलट के बीच तनातनी ही चलती रही। 

मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने महिलाओं को 1200 रुपए मासिक देने की योजना 2 वर्ष पहले ही शुरू कर दी थी। मध्य प्रदेश सरकार की समाज कल्याण की योजनाओं का लोगों में सकारात्मक संदेश गया। हालांकि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में पैसे देने के बावजूद अशोक गहलोत और भूपेश बघेल की योजनाएं  लोगों को समझ ही नहीं आईं जिससे लोगों में कांग्रेस का विश्वास घटा और इनका कांग्रेस को कोई लाभ नहीं पहुंचा। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का उत्तर भारत में तो कोई प्रभाव नहीं दिखाई दिया परंतु दक्षिण भारत में कांग्रेस का अभी भी कुछ प्रभाव है। जहां तक एकमात्र राज्य तेलंगाना में कांग्रेस को मिली अप्रत्याशित सफलता का संबंध है, वहां मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की पार्टी बी.आर.एस. इस बार पिछली बार की 88 सीटों के मुकाबले 39 सीटें ही जीत पाई तथा इसे 49 सीटों का घाटा हुआ जबकि कांग्रेस गठबंधन को पिछली बार की 21 सीटों के मुकाबले 64 सीटें मिलीं और इसे 43 सीटों का लाभ हुआ। 

इसमें कांग्रेस के चुनावी वादों का बड़ा योगदान रहा जिनमें विवाह पर लड़कियों को 10 ग्राम सोना और 1 लाख रुपए नकद, 500 रुपए में सिलैंडर, महिलाओं को 2500 रुपए मासिक, 200 यूनिट मुफ्त घरेलू बिजली, किसानों को प्रतिवर्ष 15000 रुपए निवेश सहायता आदि शामिल हैं। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की सरकार के भ्रष्टाचार और परिवारवाद की राजनीति ने भी कांग्रेस को सफलता दिलाने में मदद की। वैसे वहां भी भाजपा ने अपना वोट प्रतिशत बढ़ाया है और पिछली बार की एक सीट के मुकाबले इस बार 8 सीटें जीत ली हैं। कांग्रेस को भाजपा नेताओं से तीन बातें सीखनी होंगी। पहली-इसे अपना संगठन री-आर्गेनाईज करने और तालमेल बढ़ाने, दूसरी-इसे भाजपा की भांति लगातार जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकत्र्ताओं व भाजपा की भांति जमीनी स्तर पर संगठन मजबूत करने की जरूरत है और तीसरी-कांग्रेस नेतृत्व को अपना संदेश नीचे के स्तर के लोगों तक प्रभावशाली ढंग से पहुंचाना होगा। 

अशोक गहलोत ने राजस्थान में अनेक जनहितकारी योजनाएं निकालीं परंतु वे मतदाताओं पर प्रभाव नहीं छोड़ पाईं जबकि मध्य प्रदेश में ‘लाडली बहना’ तथा अन्य योजनाओं का मतदाताओं पर प्रभाव पड़ा। एक तो भाजपा की चुनावी मशीनरी अच्छी है और दूसरे इसका नेतृत्व अंतिम क्षण तक बैठकें करने इस पर विचार करने में विश्वास रखता है कि किसे रखना और किसे बदलना है। 2024 के लोकसभा चुनावों से चंद महीने ही पहले हुए उक्त चुनाव अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। चूंकि मतदाताओं के दिमाग में अलग-अलग प्राथमिकताएं रहती हैंं, इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि इन चुनावों के परिणाम लोकसभा के चुनाव परिणामों का संकेत देते हैं परंतु इनसे इतना अवश्य पता चल गया है कि मतदाताओं के मन में क्या चल रहा है। कुल मिलाकर यह भाजपा की रणनीति की जीत और कांग्रेस की रणनीति की हार है। उत्तर भारत में भाजपा की इस जीत ने अगले वर्ष इसके विरुद्ध मुख्य चुनौती के रूप में उभरने की विरोधी दलों के गठबंधन की संभावना को भारी आघात लगाया है जिस पर शीघ्र ही विरोधी दल विचार करेंगे। 

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