संतानों द्वारा उपेक्षित बुजुर्गों को अब अदालतें दिलवा रहीं उनका हक

Edited By ,Updated: 15 Sep, 2023 03:50 AM

now the courts are getting the rights of the elderly neglected by their children

माता-पिता बच्चों को जन्म देने के बाद उन्हें पाल-पोस और पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर उनकी शादी करते हैं, लेकिन जब जीवन की संध्या में बुजुर्ग मां-बाप के लडख़ड़ाते कदमों को अपने बच्चों के सहारे की जरूरत होती है, चंद संतानें उन्हें सहारा देने वाली...

माता-पिता बच्चों को जन्म देने के बाद उन्हें पाल-पोस और पढ़ा-लिखा कर अपने पैरों पर खड़ा कर उनकी शादी करते हैं, लेकिन जब जीवन की संध्या में बुजुर्ग मां-बाप के लडख़ड़ाते कदमों को अपने बच्चों के सहारे की जरूरत होती है, चंद संतानें उन्हें सहारा देने वाली लाठी बनने की बजाय उनकी सम्पत्ति पर कब्जा करके उनकी कमर तोड़ लाठी बन कर उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर कर देती हैं या वृद्धाश्रमों में छोड़ आती हैं। इनमें से कई बुजुर्ग तो अपनी इस दशा को नियति मान कर स्वीकार कर लेते हैं लेकिन कुछ न्यायालय की शरण में जाकर अपना छीना हुआ हक वापस पाते हैं, जिसके इसी वर्ष के चंद उदाहरण निम्न में दर्ज हैं : 

* 13 सितम्बर को जालंधर में जिला एवं सैशन जज तथा चेयरमैन जिला कानूनी सेवाएं अथारिटी निर्भयो सिंह गिल के आदेश पर वृद्धाश्रम में रहने वाले एक बुजुर्ग जोड़े को उनके बेटों ने पैसों का भुगतान करने पर सहमति जताई। 
* 11 सितम्बर को अपनी मां के साथ बदसलूकी करने वाले युवक को घर खाली करने का निर्देश देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस एस.वी. मारने ने कहा कि उसकी बुजुर्ग मां ही घर की मालिक है और चूंकि वह उसकी बुनियादी जरूरतें पूरी करने में विफल रहा है, अत: घर पर उसका कोई हक नहीं। अदालत ने महिला द्वारा अपने बेटे को उपहार में दिए फ्लैट की डीड भी रद्द कर दी।  
* 31 अगस्त को बल्लारपुर (महाराष्ट्र) की अदालत के प्रथम श्रेणी जज अनुपम शर्मा ने बुजुर्ग पति-पत्नी लक्ष्मण व जानकी को प्रताडि़त करने वाले बेटे जितेन्द्र को अपने माता-पिता का घर खाली करने और उनकी जिंदगी में दखल नहीं देने का आदेश देते हुए प्रतिमास 4000 रुपए गुजारा भत्ता देने का भी आदेश दिया। 

* 19 अगस्त को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अमरावती निवासी एक व्यक्ति को अपनी 75 वर्षीय बूढ़ी मां के जीवन यापन के लिए उसे प्रतिमास एक निश्चित रकम गुजारा भत्ता के रूप में देने का आदेश जारी किया। 
* 14 मई को ङ्क्षभड (मध्य प्रदेश) के एस.डी.एम. उदय सिंह सिकरवार की अदालत ने अपने बुजुर्ग माता-पिता को घर से निकालने की इच्छा से परेशान करने वाले बेटे शम्सुद्दीन को ऐसा करने से रोकने के अलावा हर महीने उन्हें 1500 रुपए खर्च देने का आदेश जारी किया। 
* 27 मार्च को रायपुर (छत्तीसगढ़) में जिला एवं सैशन जज संतोष शर्मा ने भगवान दास शर्मा (94) और उनकी पत्नी चमेली देवी (82) को घर से निकाल कर बेसहारा भटकने के लिए छोड़ देने वाले बेटों को फटकार लगाते हुए न सिर्फ बुजुर्ग दम्पति को उनके घर की चाबी दिलवाई बल्कि गुजारे के लिए प्रतिमास उचित राशि देने का आदेश भी जारी किया। 

* 12 मार्च को रोहिणी कोर्ट की अतिरिक्त जिला न्यायाधीश रुचिका सिंगला की अदालत ने एक बुजुर्ग महिला को उसके बेटे-बहू द्वारा प्रताडि़त करने और उसे डरा-धमका कर उसकी सम्पत्ति पर कब्जा करने के मामले को गंभीरता से लेते हुए बेटे और बहू को शांतिपूर्ण तरीके से बुजुर्ग की सम्पत्ति उन्हें लौटाने का आदेश देते हुए कहा कि वे विवाद खड़ा करने की कोशिश न करें। 
* 28 फरवरी को अपनी मां के साथ बुरा व्यवहार करने पर मृत पिता की सम्पत्ति से बेटों को बेदखल करने के निचली अदालत के फैसले को सही ठहराते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस आर.जी. अवाचट ने कहा कि बुजुर्ग मां को अपने बुढ़ापे में आराम और शांति की जरूरत है, इसलिए वे मकान खाली कर दें। 

* 30 जनवरी, 2023 को अपने बेटे द्वारा घर से निकाले गए एक व्यक्ति को हरिद्वार की एस.डी.एम. कोर्ट के आदेश पर नायब तहसीलदार मधुकर जैन के साथ प्रशासन और पुलिस की टीम ने बहादराबाद स्थित उसके बंद मकान का दरवाजा खुलवाकर कब्जा दिलवाया, जिसका अदालत के आदेश के बावजूद बुजुर्ग का बेटा कब्जा देने से इंकार कर रहा था।
इसीलिए हम अपने लेखों में बार-बार लिखते रहते हैं कि माता-पिता अपनी सम्पत्ति की वसीयत तो अपने बच्चों के नाम कर दें, परंतु उनके नाम पर ट्रांसफर न करें। ऐसा करके वे अपने जीवन की संध्या में आने वाली परेशानियों से बच सकते हैं। परंतु वे यह भूल कर बैठते हैं जिसका खमियाजा उन्हें अपने शेष जीवन तक भुगतना पड़ता है। 

संतानों द्वारा अपने बुजुर्गों की उपेक्षा को रोकने के लिए हिमाचल सरकार ने 2002 में ‘वृद्ध माता-पिता एवं आश्रित भरण-पोषण कानून’ बनाया था। इसके अंतर्गत,‘‘पीड़ित माता-पिता को संबंधित जिला मैजिस्ट्रेट के पास शिकायत करने का अधिकार दिया गया व दोषी पाए जाने पर संतान को माता-पिता की सम्पत्ति से वंचित करने, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरियां न देने व उनके वेतन से समुचित राशि काट कर माता-पिता को देने का प्रावधान है।’’ बाद में केंद्र सरकार व कुछ अन्य राज्य सरकारों ने भी ऐसे कानून बनाए, परंतु बुजुर्गों को उनकी जानकारी न होने के कारण वे इनका लाभ नहीं उठा पाते। अत: इन कानूनों के बारे में बुजुर्गों को जानकारी प्रदान करने के लिए इनका समुचित प्रचार करने की तुरंत आवश्यकता है।—विजय कुमार 

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