मणिपुर में जारी हिंसा- आखिर कब थमेगी : मारे जा चुके अब तक 219 लोग

Edited By ,Updated: 02 Mar, 2024 04:38 AM

ongoing violence in manipur  when will it stop

जातीय हिंसा से ग्रस्त मणिपुर की ‘नगा’ और ‘कुकी’ जनजातियां ‘मैतेई’ समुदाय को आरक्षण देने के विरुद्ध हैं क्योंकि बहुसंख्यक ‘मैतेई’ का पहले ही राज्य में नौकरियों एवं सरकार में अधिक प्रतिनिधित्व है तथा ‘नगा’ और ‘कुकियों’ की तुलना में उनकी आर्थिक स्थिति...

जातीय हिंसा से ग्रस्त मणिपुर की ‘नगा’ और ‘कुकी’ जनजातियां ‘मैतेई’ समुदाय को आरक्षण देने के विरुद्ध हैं क्योंकि बहुसंख्यक ‘मैतेई’ का पहले ही राज्य में नौकरियों एवं सरकार में अधिक प्रतिनिधित्व है तथा ‘नगा’ और ‘कुकियों’ की तुलना में उनकी आर्थिक स्थिति भी बेहतर है। ‘नगा’ और ‘कुकियों’ का तर्क है कि अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने से ‘मैतेई’ समुदाय न सिर्फ आवश्यकता से अधिक नौकरियां और लाभ प्राप्त कर लेगा, बल्कि वे ‘नगा’ व ‘कुकियों’ की जंगलों की जमीन पर भी कब्जा कर लेंगे।

इसी कारण 27 मार्च, 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को ‘मैतेई’ समुदाय को अनुसूचित जनजातियों की सूची में शामिल करने पर विचार करने का निर्देश दिया था। इसके बाद 19 अप्रैल, 2023 को ‘मैतेई’ समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग पर अपनी सिफारिशें भेजने का हाईकोर्ट द्वारा निर्देश देने के विरुद्ध ‘आल ट्राइबल स्टूडैंट्स यूनियन मणिपुर’ ने 3 मई को ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला और तभी से वहां भड़की हिंसा अभी तक जारी है।

मणिपुर की राज्यपाल अनुसूइया उईके के अनुसार लगभग 11 महीनों से चले आ रहे इस आंदोलन में अब तक 219 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, अनेकों महिलाओं का बलात्कार हुआ तथा 800 करोड़ रुपए से अधिक की सार्वजनिक सम्पत्ति की भी तबाही हुई है। ऐसे हालात के बीच गत 22 फरवरी को मणिपुर हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति गोलमेई गैफुलशिलु की पीठ ने एक समीक्षा याचिका की सुनवाई के दौरान 27 मार्च, 2023 को दिए फैसले के उस पैराग्राफ को हटाने का आदेश दिया, जिसमें राज्य सरकार से ‘मैतेई’ समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने पर विचार करने को कहा गया था।

इसी निर्देश को मणिपुर में ङ्क्षहसा भड़कने के लिए जिम्मेदार माना जाता है, परंतु अदालत के रुख में बदलाव तथा इससे पूर्व गत वर्ष केंद्र सरकार से पीड़ितों की दी गई राहतों और राज्य के विस्थापितों के लिए 101.75 करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा के बाद भी हिंसा थमी नहीं है।
पिछले चंद दिनों के ही घटनाक्रम पर नजर डालें तो :

  • 23 फरवरी को इम्फाल स्थित ‘ïधनमंजुरी विश्वविद्यालय’ में हुए विस्फोट में एक व्यक्ति की मौत तथा 2 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।
  • 24 फरवरी को मणिपुर पुलिस ने ‘चुराचांदपुर’ जिले के 2 गांवों में तलाशी अभियान के दौरान भारी मात्रा में हथियार, विस्फोटक एवं युद्ध जैसी सामग्री बरामद की है।
  • 27 फरवरी को मणिपुर में ‘अरामबाई तेंगगोल’ नामक ‘मैतेई’ संगठन के 200 सशस्त्र लोग मणिपुर पुलिस के आप्रेशन विंग में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी एम. अमित सिंह के आवास पर हमला करके उनका अपहरण करके ले गए और बाद में दूर ले जाकर उन्हें छोड़ दिया था जो अब अस्पताल में उपचाराधीन हैं। उस समय वहां सुरक्षा बलों के जवान मौजूद थे परंतु उन्हें उपद्रवियों पर गोली नहीं चलाने दी गई। 
  • सुरक्षा बलों में इस बात को लेकर आक्रोष है और 28 फरवरी को उक्त घटना के विरुद्ध इम्फाल घाटी क्षेत्र के 5 जिलों के 1000 कमांडोज ने हथियार नीचे रख कर विरोध जताया। उनका कहना है कि यह इस तरह की अकेली घटना नहीं है। 

इससे 12 दिन पहले भी ‘चुराचांदपुर’ में 300-400 लोगों ने एस.पी. तथा डी.सी. कार्यालय पर हमला कर दिया था और उस समय भी सुरक्षा बलों को ही जान बचा कर भागना पड़ा था। 
हालांकि अभी भी केंद्र सरकार कुकी संगठनों के साथ वार्ता कर रही है परंतु मणिपुर पुलिस के कमांडोज द्वारा हथियार सरैंडर करने के बाद राज्य में हालात फिर तनावपूर्ण हो गए हैं। इस तरह के हालात के बीच 29 फरवरी को मणिपुर विधानसभा ने ‘कुकी’ उग्रवादी संगठनों के साथ जारी ‘सस्पैंशन आफ आप्रेशन’ (एस.ओ.पी.) समझौता रद्द करने का प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया है।

अब यह भी खबर है कि पुलिस के जवानों ने अपने हथियार जमा कराना शुरू कर दिया है तथा ऐसे में प्रदेश सरकार द्वारा केंद्र सरकार से और अधिक सुरक्षा बल भेजने का आग्रह किया गया है। देश के सामरिक रूप से संवेदनशील इस महत्वपूर्ण राज्य में ङ्क्षहसा का लगातार जारी रहना चिंताजनक है। इससे न सिर्फ वहां जान-माल की क्षति होती रहेगी बल्कि इस राज्य का विकास भी अवरुद्ध होगा।

अत: जितनी जल्दी हो सके मणिपुर में व्याप्त जन असंतोष को शांत करने की जरूरत है क्योंकि ऐसा न होने पर इस असंतोष का साथ लगते राज्यों में भी फैलने का खतरा हो सकता है। -विजय कुमार 

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