युद्धों को रोकने में विफल संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता पर प्रश्नचिन्ह

Edited By ,Updated: 11 Dec, 2023 05:47 AM

question marks relevance of the un that failed to stop wars

अमरीका ने 6 दिसम्बर को गाजा में इसराईल और फिलिस्तीन समूह हमास के बीच युद्ध में तत्काल मानवीय युद्धविराम की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मांग को वीटो कर दिया।

अमरीका ने 6 दिसम्बर को गाजा में इसराईल और फिलिस्तीन समूह हमास के बीच युद्ध में तत्काल मानवीय युद्धविराम की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की मांग को वीटो कर दिया। सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 13 ने शुक्रवार को संयुक्त अरब अमीरात द्वारा प्रस्तुत और 100 अन्य देशों द्वारा सह-प्रायोजित मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया जबकि यूनाइटिड किंगडम अनुपस्थित रहा। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटारेस द्वारा बुधवार को 15 सदस्यीय परिषद को 2 महीने तक चलने वाले युद्ध से होने वाले वैश्विक खतरे के बारे में औपचारिक रूप से चेतावनी देने के लिए एक विरल कदम उठाए जाने के बाद यह मतदान हुआ। 

अमरीका अधिक बंधकों की रिहाई के लिए सुरक्षा परिषद की कार्रवाई की बजाय अपनी खुद की कूटनीति का समर्थन करता है जो उसने हमास के हमले के बाद शुरू किया था जहां इसराईल में 1200 लोग मारे गए थे जबकि गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि फिलिस्तीन पर इसराईली हमले में 17,480 से ज्यादा लोग मारे गए हैं जिनमें 40 प्रतिशत बच्चे शामिल हैं। ये वोट संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 99 के तहत किया गया जिसका उपयोग 1989 के बाद कभी नहीं हुआ। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 99 का आह्वान अत्यंत विरल है। गुटारेस ने पहले ऐसा नहीं किया है। सीरिया, यमन या यूक्रेन में युद्ध के मामले में भी इसे लागू नहीं किया गया है। संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि करीब 80 प्रतिशत आबादी विस्थापित हो गई है और बीमारी के खतरे के साथ-साथ भोजन, ईंधन, पानी और दवा की कमी का सामना कर रही है। 

एंटोनियो गुटारेस ने 8 दिसम्बर, शुक्रवार को पहले परिषद को बताया, ‘‘नागरिकों की कोई प्रभावी सुरक्षा नहीं है। गाजा के लोगों को मानव पिनबॉल की तरह चलने के लिए कहा जा रहा है।’’संयुक्त अरब अमीरात के उपराजदूत मोहम्मद अबूशाहब ने अमरीका के इस कदम पर निराशा जताते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से पूछा है कि, ‘‘यदि हम गाजा पर लगातार बमवर्षा रोकने पर एकजुट नहीं हो सकते तो हम फिलिस्तनियों को क्या संदेश दे रहे हैं। वास्तव में हम दुनिया भर के उन नागरिकों को क्या संदेश दे रहे हैं जो स्वयं को कभी इन परिस्थितियों में पा सकते हैं?’’ पिछले कुछ समय के दौरान यह संयुक्त राष्ट्र की दूसरी विफलता है। इससे पहले संयुक्त राष्ट्र चीन द्वारा वीटो कर दिए जाने के कारण यह रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को रोकने में भी विफल रहा है। 

ऐसे अमानवीय व्यवहार के बीच यदि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में शामिल सब देश मिल कर भी युद्ध को रोकने में सफल नहीं हो सकते तो क्या इसका समाधान नहीं होना चाहिए? बेशक संयुक्त राष्ट्र से पहले ‘लीग आफ नेशन्स’ था परंतु वह तो संयुक्त राष्ट्र से भी कमजोर था और कोई ऐसा मंच नहीं था जहां सभी सदस्य देश  अपनी बात रख सकें कि यह गलत हो रहा है या सही है? सभी देशों को अपनी आवाज उठाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए। अमरीका द्वारा युद्ध विराम प्रस्ताव वीटो करने  का कोई अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा है। इस घटनाक्रम से अपने-अपने स्वार्थों के लिए विभिन्न देशों द्वारा चली जा रही तमाम चालें भी उजागर हो गई हैं। एक चीज सबको प्रभावित कर रही है वह है सोशल मीडिया जो एक्सपोज तो कर सकता है परंतु किसी पर दबाव नहीं डाल सकता। 

युद्धग्रस्त क्षेत्रों में राहत कार्यों के लिए जाने वाले चिकित्सक दल वहां से लौट कर उस जगह की वास्तविक स्थिति की जानकारी देते हैं और यही वे लोग हैं जो एक प्रकार से वहां का इतिहास लिख रहे होते हैं। सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोग चाहे जितना भी छुपाना चाहें सच्चाई सामने आ ही जाती है तो क्या अब यू.एन.ओ. का कोई मतलब या असर रह गया है? क्या उसके स्वरूप को अब बदलने की जरूरत नहीं है? हालांकि बड़ी देर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के संगठनात्मक ढांचे में बदलाव, इसमें अन्य लोगों को शामिल करने और वीटो का अधिकार 5 देशों के स्थान पर अन्य देशों को देने बारे सोचा जा रहा है परंतु इसके स्थायी सदस्य देश किसी अन्य देश को यह अधिकार देने के पक्ष में नहीं हैं। निकट भविष्य में ऐसा हो पाने की कोई संभावना भी दिखाई नहीं देती। अत: फिलहाल न होने से अच्छा है कि संयुक्त राष्ट्र कायम रहे तथा इसके साथ ही इसे और किस प्रकार विश्व का प्रतिनिधित्व संगठन बनाया जा सकता है, इस विषय में जरूर सोचना चाहिए। 

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